पाक पर भारतीय महिला क्रिकेट टीम की शानदार जीत, लेकिन फिर भी खामोशी?
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पाक पर भारतीय महिला क्रिकेट टीम की शानदार जीत, लेकिन फिर भी खामोशी?

भारतीय क्रिकेट टीम ने पाकिस्तान को 95 रनों से करारी शिकस्त दी, लेकिन इस जीत के बाद इतनी खामोशी क्यों है?

भारतीय क्रिकेट टीम ने पाकिस्तान को 95 रनों से करारी शिकस्त दी, लेकिन इस जीत के बाद इतनी खामोशी क्यों है? कहीं कोई चर्चा नहीं है, किसी ने बधाई नहीं दी... मीडिया में युद्ध स्तर की तैयारी नहीं की गई थी... भारत-पाकिस्तान के मैच को लेकर... आख़िर ऐसा क्या हो गया था? आख़िर ऐसा क्या बदल गया था? 

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ओह! ये तो महिला वर्ल्ड कप चल रहा है. महिला खिलाड़ियों की परवाह किसे है? ये किस देश को हराती हैं इससे किसी को क्या मतलब है? इनका प्रदर्शन कैसा रहता है कौन जानना चाहता था? एकता बिष्ट ने पाकिस्तान के 5 विकेट झटके, लेकिन एकता की पहचान क्या है? 

मैच देखने के लिए दूरदर्शन लगाया तो वहां चित्रहार आ रहा था. मुझे उम्मीद थी कि जिस तरह हमने चैंपियंस ट्रॉफी के मैच दूरदर्शन पर देखे ये मैच भी देख पाएंगे, क्योंकि ये तो वर्ल्ड कप चल रहा है. लेकिन मैं गलत थी ये वर्ल्ड कप नहीं, महिला वर्ल्ड कप चल रहा था जिसे दर्शक नहीं मिलते हैं. बस एक रस्म अदायगी है. 

मीडिया के साथ सोशल मीडिया में भी सन्नाटा पसरा है. कहीं से कोई जश्न की आवाज़ नहीं आई है. गिने-चुने लोगों ने ज़रूर बधाई की रस्म अदायगी की है. लेकिन क्या किसी जाने पहचाने चेहरे ने अपनी खिलाड़ियों का हौसला बढ़ाया है. 
 
क्रिकेट और ग्लैमर साथ-साथ जुड़ गए हैं लेकिन क्या महिलाओं क्रिकेट खिलाड़ियों को उनकी मुनासिब पहचान मिली है. क्या उनको ज़रूरी सुविधाएं मिलती हैं. बीसीसीआई दुनिया का सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड है लेकिन महिला क्रिकेट के लिए वो क्या करता है? 

विराट कोहली, महेंद्र सिंह धोनी से लेकर पूर्व और वर्तमान क्रिकेट खिलाड़ी विज्ञापनों की दुनिया में छाए हुए हैं. ना जाने कितने प्रोडक्ट के ब्रांड एंबेस्डर हैं लेकिन क्या कभी किसी महिला क्रिकेटर को किसी विज्ञापन में देखा है. नहीं देखा क्योंकि जो बिक नहीं रहा है उसे देखेगा कौन, और जो दिख नहीं रहा है उसे खरीदेगा कौन. 

हम महिला क्रिकेट खिलाड़ियों को पहचानते ही नहीं हैं, किसी की दिलचस्पी ही नहीं है इस बात में कि कौन सी खिलाड़ी हमारे टीम की कैप्टन है. हम सिर्फ़ विराट, धोनी, युवराज जैसे नामों के पीछे भागते रहते हैं. मार्केट भी इन्हीं खिलाड़ियों का है. इनकी फीस भी लाखों, करोड़ों में है और विज्ञापन के ज़रिए भी करोड़ों कमा रहे हैं. 

महिला क्रिकेट खिलाड़ियों की कोई पहचान नहीं है. ज़्यादातर लोगों को महिला क्रिकेट टीम की कैप्टन का नाम तक नहीं पता होगा. ना ही ये पता होगा कि विकेट कीपर कौन है. ये हमारी दोहरी मानसिकता है. समाज लड़कियों को बराबरी का दर्जा दिए जाने का दावा ज़रूर करता है लेकिन सच सबके सामने हैं. 

अगर ये महिला खिलाड़ी वर्ल्ड कप जीतकर आती हैं तो भी उनको वो सम्मान वो पैसा नहीं मिलेगा जो पुरुषों की टीम और खिलाड़ियों को मिलेगा. हमें बहुत कुछ बदलना होगा सिर्फ़ कहने से कुछ नहीं होगा कि महिला और पुरुष बराबर हैं. 

बीते कुछ सालों में महिला खिलाड़ियों के प्रति थोड़ी बहुत सोच बदली है. सानिया मिर्ज़ा, पीवी सिंधु, सायना नेहवाल, गीता फोगाट, बबीता फोगाट और मैरी कॉम जैसी खिलाड़ियों ने देश को एक नए मुक़ाम पर पहुंचाया है. लेकिन अब बहुत लंबी दूरी तय करनी है. महिला खिलाड़ियों का संघर्ष बहुत लंबा है. पहले एक लड़की अपने परिवार के साथ संघर्ष करती है अगर परिवार का साथ है तो समाज के साथ उसे दो-चार होना पड़ता है. 

क्रिकेट के अलावा किसी अन्य खेल को लेकर देश में बहुत जागरुकता नहीं है. और अगर बात महिला खिलाड़ियों की हो तो हालात और भी खराब हैं. राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महिला खिलाड़ी देश का नाम रोशन करती आई हैं, लेकिन उन्हें अपने देश में वो शोहरत नहीं मिलती है जो मिलनी चाहिए. 

ना जाने ऐसी कितनी महिला खिलाड़ी हैं जो संघर्ष करती हैं, लड़ती हैं हालातों और जैस तैसे एक मुकाम पर पहुंचती हैं तो उसे हमारी बेरुख़ी निराश कर देती है. पुरुषों के बीच भारत-पाकिस्तान के मैच को लेकर जो उत्साह देश और मीडिया दिखाता है उतनी ही बेरुख़ी महिलाओं के मैच को लेकर दिखाई जाती है. 

इतनी खामोशी बेचैन करती है, कि महिला क्रिकेट को लेकर इतनी उदासीनता क्यों? आखिर पुरुष क्रिकेटरों के जैसे महिला क्रिकेटर्स की पहचान क्यों नहीं हैं? क्यों देश के सिर पर चढ़ कर बोल रहा है महिला क्रिकेटर्स का जादू जबकि वो अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं सोचिए कि हम कहां गलत कर रहे हैं? हम कहां गलत जा रहे हैं?

हमारा साथ लड़कियों को हौसला देता है... हिम्मत देता है... सरकार के साथ हम सबकी ज़िम्मेदारी है कि हम वैसे ही महिला क्रिकेट की जीत का जश्न मनाएं जैसा की पुरुष टीम की जीत का मनाते हैं. 
 
(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक विषयों पर टिप्पणीकार हैं)

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