कांग्रेस के हाथ से दो बड़े राज्य महाराष्ट्र और हरियाणा भी फिसल गए। यह सिलसिला कब थमेगा उसके बारे में फिलहाल कुछ नहीं जा सकता। लेकिन इतना तो साफ है कि कांग्रेस ने अपने नेतृत्व में बदलाव नहीं किया और लोगों से जमीनी स्तर पर नहीं जुडी़ तो वह ऐसी स्थिति में पहुंच जाएगी जहां से उसे दोबारा उठ पाना मुश्किल होगा।
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आलोक कुमार राव
कांग्रेस के हाथ से दो बड़े राज्य महाराष्ट्र और हरियाणा भी फिसल गए। यह सिलसिला कब थमेगा उसके बारे में फिलहाल कुछ नहीं जा सकता। लेकिन इतना तो साफ है कि कांग्रेस ने अपने नेतृत्व में बदलाव नहीं किया और लोगों से जमीनी स्तर पर नहीं जुडी़ तो वह ऐसी स्थिति में पहुंच जाएगी जहां से उसे दोबारा उठ पाना मुश्किल होगा। मौजूदा दौर में कांग्रेस पर नेतृत्व का संकट है। कांग्रेसी नेताओं को राहुल गांधी भले ही तारनहार नजर आते हों लेकिन कांग्रेस कार्यकर्ताओं की पसंद देखी जाए तो उनकी पसंद राहुल नहीं प्रियंका गांधी हैं। चुनावों में कांग्रेस की हार से कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरा हुआ है। उनमें वह उत्साह और जोश नहीं है जो भाजपा कार्यकर्ताओं में है।
एक समय कमोबेश यही हाल भाजपा के कार्यकर्ताओं का था। भाजपा जब पीएम उम्मीदवार के बारे में राय बनाने की कोशिश कर रही थी तो उस समय भाजपा कार्यकर्ता नरेंद्र मोदी को पीएम पद के उम्मीदवार के रूप में देखना चाहते थे। मोदी को भाजपा का पीएम पद का उम्मीदवार बनाए जाने में कार्यकर्ताओं की इच्छा भी एक बड़ा कारण बनी। कार्यकर्ताओं में जोश, जुनून और ऊर्जा भरने का काम मोदी की पीएम पद की उम्मीदवारी ने ही किया। मोदी को पीएम पद का उम्मीदवार बनाए जाने के बाद से भाजपा का प्रदर्शन सबके सामने है। केंद्र में सरकार बनाने के बाद भाजपा एक-एक कर राज्यों को फतह करती जा रही है।
कहा जाता है कि कार्यकर्ता अगर पूरे मन से पार्टी का साथ दें तो चुनाव की आधी जंग पहले ही जीत ली जाती है। ऐसा भी नहीं है कि कांग्रेस को राजनीति की बुनियादी बातों का ज्ञान नहीं है। बल्कि समस्या कहीं और है। महाराष्ट्र और हरियाणा में कांग्रेस की हार के बाद कार्यकर्ताओं ने दिल्ली में नारे लगाए कि कांग्रेस को बचाना है तो प्रियंका को आगे आना होगा। सत्ता की विरासत संजोए रखने की कांग्रेस की परंपरा शायद उसे नेतृत्व बदलने की इजाजत नहीं दे रही है। विरासत की मांग है कि नेतृत्व राहुल के हाथों में हो जबकि कार्यकर्ताओं की आवाज प्रियंका बन गई हैं। कांग्रेस का द्वंद्व राहुल-प्रियंका में से किसी एक को चुनने में भी है।
दूसरा, कांग्रेस को विपक्ष की भूमिका औपचारिक रूप से नहीं बल्कि जमीनी संघर्ष से जुड़कर निभानी होगी। घोटाले, भ्रष्टाचार और अकर्मण्यता के आरोपों से घिरी कांग्रेस को जनता जवाब दे रही है। हो सकता है कि आने वाले समय में उसे जनता के आक्रोश का कोपभाजन बनना पड़े। राजनीति में यही होता है। सत्ता में रहते हुए की गई गलतियों का हिसाब जनता चुनाव में करती है। आज जनता हिसाब बराबर कर रही है।
कांग्रेस को याद रखना होगा कि उसका मुकाबला एक कद्दावर नेता से है। मोदी को करीब-करीब सभी तबकों और युवा वर्ग का समर्थन मिल रहा है। मोदी को जनता से जुड़ने का मंत्र पता है। वह जहीन और महीन हैं। उन्हें चुनौती देने और लोगों में अपने प्रति विश्वास पैदा करने के लिए कांग्रेस को बदलना होगा। कांग्रेस अब तक जिस तरह की राजनीति करती आई है, उससे उसको तिलांजलि देनी होगी। नई सोच और नेतृत्व के साथ उसे जनता के बीच जाना होगा और जनता में खोए हुए अपने भरोसे को फिर से टटोलना होगा। तभी जाकर वह अपनी खोई हुई जमीन दोबारा हासिल कर सकती है। अपने मौजूदा राजनीतिक संरचना एवं हालात में कांग्रेस ने यदि बदलाव नहीं किया तो उसे लंबे अरसे तक विपक्ष में बैठने की आदत डालनी होगी।