गोरखपुर अस्पताल हादसाः ऑक्सीजन की कमी पर बहस को छोड़ें तो भी उठते सवाल...
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गोरखपुर अस्पताल हादसाः ऑक्सीजन की कमी पर बहस को छोड़ें तो भी उठते सवाल...

गोरखपुर बीआरडी अस्पताल हादसे का कारण बीमारी या लापरवाही ?

हरीश मिश्र

गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में बीते कई दिनों से बच्चों की हो रही मौत के मामले में ऑक्सीजन की कमी को वजह बताने को लेकर प्रदेश की भाजपा सरकार और मीडिया रिपोर्ट्स के बीच द्वंद जारी है. सरकार न केवल ऑक्सीजन की कमी को नकारने के लिए पूरी तरह से मोर्चे पर डटी है बल्कि बच्चों की मौत के आंकड़ों को लेकर भी सरकारी तंत्र का खेल जारी है.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बच्चों की मौत का मामला उजागर होने के 24 घंटे बाद सफाई देने पत्रकारों के सामने आए. बेहद संवेदनशील थे. पत्रकारों को भी संवेदनशील होने की नसीहत दी. पर, इन सबसे अलग-थलग यह सोचा जाए कि बच्चों की मौत की वजह ऑक्सीजन की कमी थी या नहीं? मौत का आंकड़ा सरकार के मुताबिक सही है या नहीं ? पर, इस सच्चाई को नकारा नहीं जा सकता कि बच्चों की मौत इतनी बड़ी तादाद में हुई. भले ही ऑक्सीजन की कमी के बजाय उसका कारण कुछ और हो.

गोरखपुर सहित पूर्वांचल के लगभग तीन दर्जन जिलों में, जो हर वर्ष बारिश के मौसम और उसके आस-पास बच्चों पर कहर बनकर टूटने वाली इंसेफ्लाइटिस (जापानी बुखार) जैसी बीमारी व अन्य डेंगू अथवा स्वाइन फ्लू आदि हों. सवाल यही है कि सरकार ने ऐसी जानलेवा बीमारियों से बच्चों को बचाने और उससे निपटने के क्या इंतजामात किए थे. अगर इंतजामात थे तो सप्ताह भर के भीतर 63 बच्चे मौसमी महामारियों के चलते काल के गाल में कैसे समा गए.

गौरतलब है कि बीते लोकसभा चुनाव 2014 और चंद माह पहले हुए विधानसभा चुनावों में देश के प्रधानमंत्री एवं एनडीए के सुपरस्टार प्रचारक नरेंद्र मोदी ने प्रदेश के पूर्वांचल की जनसभाओं में कहा था कि दोनों जगह भाजपा की सरकार बनने के बाद जापानी बुखार की बीमारी से निजात दिलाने में आसानी होगी. प्रधानमंत्री मोदी के इन वादों पर बेहद भरोसा कर प्रदेश के आमजन ने पूरी शिद्दत के साथ भारी बहुमत से भाजपा को ही सत्ता सौंप दी. यहां यह भी उल्लेखनीय है कि गोरखपुर प्रदेश की भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का न केवल गृहनगर है बल्कि उनकी कर्मभूमि भी है. यहीं गोरक्षपीठ भी है जिसके महंत और मुख्य कर्ताधर्ता योगी जी ही हैं. उसके बावजूद बच्चों के साथ हादसा दर हादसा हो रहा. यह बेहद दुखी करने वाला तो है ही साथ ही चकित करने वाला भी है.

केंद्र की मोदी सरकार और प्रदेश की योगी सरकार दोनों को ही बच्चों की इस दुखद मौत के मसले पर कटघरे में खड़ा करता है. मृत बच्चों के परिजनों सहित जनता यह जानने को व्यग्र है कि पूर्वांचल के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में बच्चों की मौतों का सिलसिला क्यों नहीं थम पा रहा. जबकि केंद्र और प्रदेश दोनों ही जगह भाजपा की सरकार है. यही नहीं, मुख्यमंत्री योगी बीते नौ अगस्त को अपने मंत्रियों और संबंधित उच्चाधिकारियों के साथ इंसेफ्लाइटिस और अन्य मौसमी जानलेवा बीमारियों से निपटने की तैयारियों की समीक्षा के लिए बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज में लगभग चार घंटे तक बैठक भी करते रहे. अस्पताल परिसर में निरीक्षण भी किया. मरीजों और उनके परिजनों से भी मिले, पूरा हाल जाना, उस दिन भी नौ मौतें हुई थीं. पर, इसकी भनक मुख्यमंत्री को नहीं लगी. न ही उनके अमले को.

यहां यह भी गौरतलब है कि मुख्यमंत्री जब पत्रकारों के समाने आए तो सफाई में यह बताने से नहीं चूके कि जब वह मेडिकल कॉलेज गए थे तो वहां के प्राचार्य तथा किसी भी डॉक्टर ने ऑक्सीजन की कमी होने जैसी कोई जानकारी उन्हें दी थी. मुख्यमंत्री का कहना था कि ऑक्सीजन प्रकरण अथवा बच्चों के लिए जानलेवा बनी बीमारियों से निपटने में आने वाली किसी भी समस्या की जानकारी उन्हें कॉलेज के प्राचार्य अथवा किसी डॉक्टर द्वारा नहीं दी गई. मुख्यमंत्री की बात को मान लेते हैं. तब भी सवाल बना रहता है कि आखिर भारत की स्वतंत्रता के 70 साल बाद भी इस देश में बच्चों की जान इतनी सस्ती क्यों है? इस शर्मनाक हादसे के बाद सत्ता पक्ष अपना तर्क रख रहा है तो विपक्ष बयानबाजी से अपनी राजनीतिक जमीन तलाशने में जुट गया है. हालांकि विपक्षी दलों के सामने में भी यही बड़ा सवाल है कि इंसेफ्लाइटिस की समस्या गोरखपुर सहित पूर्वांचल में लंबे समय से है. ऐसे में पूर्ववर्ती सरकारों ने इससे निपटने के लिए कोई इंतजाम क्यों नहीं किया?

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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