तिरंगे के नए रंग
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तिरंगे के नए रंग

आज जब लोकतंत्र का तिरंगा जन-जन तक पहुंच गया है, तिरंगे के रंगों की नई व्याख्या की आवश्यकता महसूस की जा रही है. बदलते दौर में केसरिया रंग को युवा भारत का प्रतिनिधित्व करता देखा गया तो हरा पर्यावरण के लिए की जा रही भारत की वैश्विक पहल का और सफेद रंग ऊर्जा और शांति के प्रतीक के रूप में नज़र आता है. जो समाज वक्त के साथ खुद को बदलने का माद्दा रखता है सही मायने में वही विकास कर पाता है. हमारे देश में सिनेमा ने और तिरंगे ने भी इसी तरह बदलाव किया.

जो समाज वक्त के साथ खुद को बदलने का माद्दा रखता है सही मायने में वही विकास कर पाता है.

पंकज रामेन्दु

मनोज कुमार की फिल्म उपकार के एक गीत के बोल है “रंग हरा हरी सिंह नलवे से, रंग लाल है लाल बहादुर से, रंग बना बसंती भगत सिंह, रंग अमन का वीर जवाहर से” आज भी इन पंक्तियों को सुनना रोमांच से भर देता है, जैसे तिरंगा सिर्फ तीन रंगों का नाम नहीं उससे कहीं बढ़कर है. देश की आजादी और सांस्कृतिक इतिहास में तिरंगे के हर रंग का अपना विशिष्ट स्थान है. कहते हैं लालबहादुर शास्त्री के कहने पर ही मनोज कुमार ने उपकार बनाई थी. 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद बनी इस फिल्म के गीत लिखते वक्त गुलशन बावरा को तिरंगे के रंगों की नई व्याख्या देने के लिए तात्कालिक परिस्थितियों ने ही प्रेरित किया होगा.

आज जब लोकतंत्र का तिरंगा जन-जन तक पहुंच गया है, तिरंगे के रंगों की नई व्याख्या की आवश्यकता महसूस की जा रही है. बदलते दौर में केसरिया रंग को युवा भारत का प्रतिनिधित्व करता देखा गया तो हरा पर्यावरण के लिए की जा रही भारत की वैश्विक पहल का और सफेद रंग ऊर्जा और शांति के प्रतीक के रूप में नज़र आता है. जो समाज वक्त के साथ खुद को बदलने का माद्दा रखता है सही मायने में वही विकास कर पाता है. हमारे देश में सिनेमा ने और तिरंगे ने भी इसी तरह बदलाव किया.

भारत के लिए पहला ध्वज : कलकत्ता के ग्रीन पार्क में 7 अगस्त 1906 को फहराया गया था लेकिन वह वर्तमान तिरंगे जैसा नहीं था, उस वक़्त का झंडा लाल, पीले और हरे रंग का था. ये वही साल था जब विश्व को दि स्टोरी ऑफ कैली गैंग के रूप में पहली फुल लेंथ नरैटिव फीचर फिल्म मिली.

1. इससे पहले 1904 में भारत में राष्ट्रीय ध्वज का निर्माण आजादी के लिए अपनी भावनाओं को प्रकट करने के लिए किया गया था जिसे स्वामी विवेकानंद की शिष्य सिस्टर निवेदिता ने बनाया था.
2. ध्वज में लगातार बदलाव होते रहे. इसके तहत दूसरा बदलाव तब हुआ जब इसे पेरिस में मैडम कामा और उनके साथ निर्वासित कुछ क्रांतिकारियों ने फहराया था. उस दौरान इसकी ऊपरी पट्टी पर कमल का फूल बना था. साथ ही सात तारे भी बने थे.
3. तीसरा ध्वज साल 1917 में सामने आया. इसमें 5 लाल और 4 हरी पट्टियां बनी हुई थी. इसके साथ सप्तऋषि के प्रतीक सितारे भी थे. इस ध्वज को डॉ. एनी बेसेंट और लोकमान्य तिलक ने घरेलू आंदोलन के दौरान फहराया था. इसी साल धुंडीराज गोविंद फाल्के ने लंका दहन, कृष्ण जन्म और कालिया मर्दन जैसी फिल्म बनाई और टूरिंग सिनेमा को सफलता मिली.
4. चौथा ध्वज 1921 में सामने आया. इसे आंध्र प्रदेश के पिंगली वैंकेया ने बनाया था. यह ध्वज अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी के लिए बना था.
5. भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का सबसे अहम सफर 1921 से ही शुरू हुआ जब महात्मा गांधी ने भारत देश के लिए झंडे की बात कही थी उस दौरान सिर्फ दो रंग लाल और हरे थे. लाल रंग हिन्दु और हरा रंग मुसलमानों के प्रतीक के रूप में लाया गया था.
ये वही साल था जब वी शांताराम ने सेट बनाने वाले के सहायक के रूप में अपना करियर शुरू किया. इन्हीं शांताराम ने आगे चलकर ‘पड़ोसी’ फिल्म का निर्माण किया जिसमें हिंदु -मुस्लिम एकता को बखूबी दिखाया गया है. अहम बात ये है कि इस फिल्म में हिंदू पात्रों का अभिनय मुसलमान कलाकारों से और मुसलमान पात्रों का अभिनय हिंदू कलाकारों से कराया गया था. इसी साल देश के महान साहित्यकार फणीश्वरनाथ रेणु का जन्म भी हुआ था जिनकी कहानी पर आधारित फिल्म ‘तीसरी कसम’ आज भी भारतीय सिनेमा के क्लासिक्स में गिनी जाती है.

झंडे के बीच में सफेद रंग और चरखा जोड़ने का सुझाव बाद में गांधी जी को लाला हंसराज ने दिया था. सफेद रंग के शामिल होने से सर्वधर्म समान का भाव और चरखे से ध्वज के स्वदेशी होने की झलक भी मिलने लगी. इसके बाद भी झंडे में कई परिवर्तन किए गये.
6. 2 अप्रैल 1931 को जवाहर लाल नेहरू, सरदार पटेल, मौलाना आजाद, मास्टर तारा सिंह, काका कालेलकर, डॉक्टर हार्डेकर और पट्टाभी सितारमैया आदि ने मिलकर तिरंगे को अंतिम रूप दिया और 1931 में ही कराची में होने वाली कांग्रेस कमेटी की बैठक में पिंगली वैंकेया ने नया तिरंगा पेश कर दिया. इसी साल भारतीय सिनेमा को आवाज़ भी मिली जब 14 मार्च 1931 को आर्देशिर इरानी की फिल्म ‘आलमआरा’ प्रदर्शित हुई. इसी साल विश्व के महान नायक चार्ली चैप्लिन और महात्मा गांधी की मुलाकात भी हुई थी. चार्ली चैप्लिन ने महात्मा गांधी के स्वतंत्रता संग्राम का समर्थन भी किया था. इस बात का उल्लेख चार्ली चैप्लिन ने अपनी आत्मकथा में भी किया है.
7. झंडे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने के लिए डॉ. राजेंद्र प्रसाद के नेतृत्व में एक कमेटी का गठन किया गया. भारतीय संविधान सभा में इसे 22 जुलाई 1947 को राष्ट्रीय ध्वज के तौर पर स्वीकृति मिली. इससे एक साल पहले ही 1946 में चेतन आनंद की नीचा नगर फ्रांस के कान अंतर्राष्ट्रीय समारोह में सराही गई और पुरस्कृत भी हुई.
8. झंडे बनाने के लिए मानक भी तय किए जाने थे. 1968 में तिरंगे निर्माण के नियम अत्यंत कड़े थे जिसमें हाथ से काते गए कपड़े से ही झंडा बनाने का नियम भी शामिल था लेकिन संशोधन के बाद इसमे नरमी बरती गयी. भारत में बेंगलुरू से 420 किमी स्थित ‘हुबली’ एक मात्र लाइसेंस प्राप्त संस्थान है जो झंडा बनाने का और सप्लाई करने का काम करता है. बीआईएस झंडे की जांच के बाद ही बाजार में झंडे को बेचने की आज्ञा दी जाती है. इसके अगले साल ही देश को सदी के महानायक के रूप में अमिताभ बच्चन भी मिले जिनकी आवाज़ को दर्शकों ने सूत्रधार के रूप में ‘भुवनशोम’ में सुना और फिर सात हिंदुस्तानी में उन्हें देखा.
9. 26 जनवरी 2002 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारतीय ध्वज संहिता में संशोधन कर देशवासियों को कही भी किसी भी दिन आदर और सम्मान पूर्वक तिरंगा फहराने की अनुमति दें दी.
10. पूरे भारतवर्ष में 21 x 14 फीट के झंडे केवल तीन स्थानों पर ही फहराएं जाते है. वह तीन स्थान कर्नाटक का नारगुंड किला, महाराष्ट्र का पनहाला किले और मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले में स्थित किला है.

चाहे बात सिनेमा के विकास की हो या देश के विकास की, सबसे ज़रूरी बात होती है संतुलन. बगैर संतुलन के कुछ भी नहीं हो सकता है. अगर सही कहानी, अच्छा स्क्रीन प्ले, बेहतरीन कैमरावर्क और संतुलित अभिनय नहीं होता है तो लाख मेहनत करने पर भी फिल्म का फ्लॉप होना तय रहता है, अगर संतुलित तरीके से नहीं चले तो घर का बजट गड़बड़ा जाता है. झंडे के तीन रंगो को भी एक अनुपात के तहत ही रखा गया है जो संतुलन का ही प्रतीक है. अगर युवाओं के जोश, उर्जा की सही व्यवस्था और प्रकृति के साथ तालमेल में हम सही संतुलन बना लेते हैं तो देश को विकास करने से कोई नहीं रोक सकता है और तिरंगा विश्व के मानचित्र पर गौरव के साथ लहरा सकता है. इन सबके बाद ही निर्देशक ज्ञान मुखर्जी की फिल्म ‘बंधन’ जो संभवत: देशप्रेम से जुड़ी पहली हिंदी फिल्म है, उसमें कवि प्रदीप का लिखा गीत ‘चल चल रे नौजवान’ सार्थक हो पाएगा.
 

(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)

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