चौमासा बीतने में अभी डेढ़ महीना बाकी है और देश में 774 लोग बाढ़ और बारिश से मारे जा चुके हैं
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आज गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने संसद को बताया कि इस साल मानसून में अब तक 774 लोगों की मौत हो चुकी है. चौमासा आधिकारिक रूप से सितंबर के अंत में खत्म होता है, यानी बारिश में अभी डेढ़ महीना बाकी है. यह हाल तब है, जब देश में अभी तक सामान्य वर्षा हो रही है. अगर सामान्य बारिश में इतने लोग मर रहे हैं तो फिर जोरदार बारिश का तो भगवान ही मालिक है.
कोच्चि का संकट
इस समय बाढ़ की जो सबसे भयानक तस्वीरें आ रही हैं, वे केरल से आ रही हैं. राज्य में करीब 40 लोग बारिश से जुड़ी आपदा के कारण मारे गए. जिस कोच्चि शहर के आसपास तबाही की सबसे ज्यादा खबरें आ रही हैं, वह एक दिलचस्प और खूबसूरत शहर है. यह शहर क्या है, समुद्र का कटा-फटा तट है. जहां एक इलाके से दूसरे इलाके तक जाने के लिए समुद्र के टुकड़ों पर पुल बने हुए हैं. अगर शहर के एक तरफ कटा-फटा समुद्र तट है तो दूसरी तरफ से नदियां शहर की तरफ आती हैं. यह डेल्टा का भाग है. नदियां धीमी और कई-कई धाराओं में बंटकर शहर को छूते हुए समुद्र की तरफ जाती हैं.
इस भौगोलिक परिस्थिति से समझा जा सकता है कि अगर नदियों के पानी के समुद्र में जाने में जरा सी भी बाधा पैदा हुई तो समुद्र तल के करीब बसे इस शहर में तबाही की कितना अंदेशा है. लेकिन यहां बाढ़ बहुत देखी नहीं गई. इसकी एक वजह तो यह है कि यहां खूब बारिश होती है और यहां लोग अपने साथ छाता लेकर चलने की आदल रखते हैं. छाते की आदत से आशय है कि यहां के नागरिकों और नगर निकाय को हमेशा ही बारिश के साथ रहना होता है और उन्होंने पानी से निपटने के अच्छे उपाय किए हुए हैं. तकरबीन हर घर के ऊपर टीन की पिरामिडनुमा छत बनी हुई है और इसका पानी सड़क पर बहाने के बजाय घर में बने वाटर रीचार्ज कुएं में जाता है. नालियां सामान्य तौर पर साफ रहती हैं. इसके बावजूद बाढ़ आई तो उसका मतलब है कि यहां बहुत जोरदार बारिश हो रही है.
गाजियाबाद का मानव निर्मित संकट
लेकिन पिछले दिनों दिल्ली और गाजियाबाद की बाढ़ समझ से परे है. गाजियाबाद में बारिश के कारण जिस सड़क के भरभराकर पानी में बह जाने के दृश्य देखे गए, वह सड़क मेरे घर के ठीक सामने से गुजरती है. इस घटना से एक घंटे पहले जब में घर से निकला तो मैं जिस सड़क पर गाड़ी मोड़ता उसी तरफ पानी. हाल यह हुआ कि सड़क पर गाड़ी आगे बढ़ाने की गलती की और बोनट तक पानी के बीच किसी तरह गाड़ी निकाली. गाजियाबाद के वसुंधरा का पूरा इलाका ही तालाब बन गया था. जबकि कायदे से ऐसा होना नहीं चाहिए. वसुंधरा का इलाका हिंडन नदी के काफी करीब है और भौगोलिक रूप से पानी तेजी से बहकर नदी में चला जाना चाहिए.
लेकिन पानी भरा इसलिए क्योंकि यहां की सारी खुली हुई नालियों को हम लोगों ने पूरी मेहनत से कचरे से भर दिया है. जहां से सीवर के अंदर पानी जाने के होल हैं, उनके और सड़क के बीच ऊंचे प्लेटफॉर्म बना लिए गए हैं. बहुत सी गहरी नालियां तकरीबन विलुप्त हो गई हैं. कॉलोनियों के अंदर की नालियों का भी यही हाल है.
ऐसे में दो घंटे की अच्छी बारिश में सड़कें झील बन गईं. पानी को जिस तरफ बहना था, वे नालियां बंद थीं, इसलिए पानी उस गहरे गड्ढे की तरफ बढ़ा जिसे सात-आठ साल पहले एक बड़ी इमारत बनने के लिए खोदा गया था. पानी एकदम से इस पचास फीट गहरे फुटबाल मैदान से आधे आकार के गड्ढे की तरफ बढ़ा और अपने साथ सड़क को बहा ले गया. जब टीवी पर देखा तो मुझे लगा कि आधा घंटे पहले यह घटना होती तो मेरी सपरिवार जल समाधि हो चुकी होती.
बिजली के नंगे तार
इस घटना के एक दिन बाद पता चला कि गाजियाबाद के इंदिरापुरम में एक कॉलोनी में एक इंजीनियर की तब मौत हो गई जब वह पार्किंग से गाड़ी निकालने गया था. वहां भरे पानी में करंट उतर गया और वह मर गया. पिछले साल इसी तरह वसुंधरा में गाज गिरने से बिजली के नंगे तार गिर गए. तार गिरने से एक झटके में चार लोग मर गए. इस तरह की घटनाएं अक्सर देखने में आ जाती हैं. यह कौन सी अर्बन प्लानिंग है जहां आज तक नंगे तार झूल रहे हैं.
बिना जड़ों के पेड़
उत्तर भारत में बारिश के दौरान कुछ और तस्वीरें सामने आती है, वह होती हैं किसी गाड़ी के ऊपर पेड़ का गिरना. दरअसल शहरों में सड़क किनारे लगाए गए पेड़ों के पास अपनी जड़ें फैलाने की जगह नहीं होती. हम बड़े-बड़े पेड़ों को बिना जड़ों के ही उगने देते हैं. आंधी पानी में ये पेड़ गिर जाते हैं और राह चलती गाड़ियों के निशाना बनाते हैं.
आपदा की प्लानिंग
यह सारी चीजें क्या बताती हैं. यही न कि हम बात तो आपदा प्रबंधन की करते हैं लेकिन असल में अपने शहरों की प्लानिंग के साथ ही आपदा की प्लानिंग कर ली है. हम नागरिक और सरकार दोनों की हैसियत से उन प्रवृत्तियों को बढ़ा रहे हैं जो बाढ़ और सूखे को बढ़ा रही हैं. दिल्ली में तो अक्षरधाम मंदिर, कॉम्नवेल्थ खेलगांव, डीटीसी का इंद्रप्रस्थ बस डिपो और मेट्रो के कई स्टेशन एक तरह से यमुना नदी के भीतर बना दिए गए हैं. इन बातों को लेकर शुरू में दिल्ली अर्बन आर्ट कमीशन ने आपत्तियां उठाईं, लेकिन उसकी बात को नजरअंदाज कर दिया गया.
दरअसल हम इस तरह की संस्थाओं को विकास विरोधी समझने लगे हैं. हमें लगता है कि वे विकास की रफ्तार को धीमा कर रही हैं. लेकिन असल में ऐसा करके हम विनाश की रफ्तार को तेज कर रहे हैं.
(लेखक जी न्यूज डिजिटल में ओपिनियन एडिटर हैं)
(डिस्क्लेमर: इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)