पश्तून तहाफुज मूवमेंट (पीटीएम) के नेता और वामपंथी विचारों वाले अली वजीर कबायली क्षेत्र की नेशनल असेंबली-50 सीट से पाकिस्तान की संसद के लिए चुने गए.
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कभी किसी भी युग में जुल्म, आतंक और बंदूक के दम पर आवाज को कुचला नहीं जा सका है. पाकिस्तान चुनाव में कबायली इलाके वजीरिस्तार से ताल्लुक रखने वाले मार्क्सवादी नेता अली वजीर के ऊपर यह कहावत एकदम सही बैठती है. पश्तून लोगों के हक-हूकूक, नागरिक अधिकारों, आतंक की भेंट चढ़े पीडि़तों के मुआवजे और लापता लोगों को रिहा करने की मांग करने वाले पश्तून तहाफुज मूवमेंट (पीटीएम) के नेता और वामपंथी विचारों वाले अली वजीर कबायली क्षेत्र की नेशनल असेंबली-50 सीट से पाकिस्तान की संसद के लिए चुने गए.
इस इलाके में धर्म के आधार पर उन्मादी दहशतगर्दों का बोलबाला है. इसके बावजूद उन्होंने धार्मिक पार्टियों से ताल्लुक रखने वाले गठबंधन एमएमए के प्रत्याशी को भारी मतों से शिकस्त दी. पाकिस्तान के वामंपथी धड़े द स्ट्रगल की सेंट्रल कमेटी के मेंबर अली वजीर को इमरान खान ने अपनी पार्टी पीटीआई के बैनर तले लड़ने को कहा था. लेकिन अली ने मना कर दिया और निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में खड़े हुए. हालांकि इनके समर्थन में अली ने अपने प्रत्याशी को इस सीट से खड़ा नहीं किया. पीटीएम से जुड़े दो अन्य नेता भी सांसद बने हैं.
अली वजीर
Asian Marxist Review के मुताबिक साउथ वजीरिस्तान एजेंसी इलाके के हेडक्वार्टर वाना से ताल्लुक रखते हैं. वजीरिस्तान का यही ऐसा इलाका है जहां तालिबानी आतंकियों ने सबसे पहले शरण लेनी शुरू की थी. उसके बाद इस इलाके में अपने नियम-कायदे लागू करने शुरू कर दिए. अली वजीर के पिता उस इलाके की अहमदजई वजीर कबीले के मुखिया थे. उन्होंने आतंकियों की बढ़ती उपस्थिति का विरोध किया. लेकिन 2003 तक नार्थ और साउथ वजीरिस्तान कबायली इलाके में आतंकियों ने जबर्दस्त पैठ बना ली. उसके बाद इन तत्वों का विरोध करने वाले लोगों में सबसे पहले अली वजीर के बड़े भाई फारूक वजीर को आतंकियों ने निशाना बनाया. उसके बाद से लेकर अब तक वजीरिस्तिान में आतंकियों का विरोध करने वाले हजारों पश्तूनों का कत्ल कर दिया गया.
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2005 में अली वजीर जब जेल में ही थे, उसी दौरान उनके पिता, भाईयों, चाचा और चचेरे भाईयों को एक साथ मौत के घाट उतार दिया गया. अली वजीर को उनके जनाजे को कंधा देने के लिए भी छोड़ा गया. वह एक औपनिवेशिक कानून (एफसीआर) की वजह से जेल में रखा गया था जिसके चलते इस क्षेत्र में होने वाली किसी भी एक आपराधिक घटना के लिए पूरे कबीले या क्षेत्र को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता था और जेल में ठूंस दिया जाता था. उसके बाद के वर्षों मे उनके परिवार के छह और लोगों की हत्या कर दी गई. एक ही परिवार के 16 लोगों को कत्ल किए जाने के बावजूद आज तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई. अली वजीर के परिवार के लोग गैस स्टेशनों को चलाते थे. परिवार के सभी अहम पुरुषों की मौत के बाद उन स्टेशनों को चलाना मुश्किल हो गया. वाना में उनके सेब के बगीचों में जहरीले केमिकल से स्प्रे कर दिया. उनके ट्यूबवेलों में मिट्टी डाल दी गई ताकि अली वजीर का परिवार टूट जाए.
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इतना जुल्म सहने के बावजूद अली वजीर की जन आंदोलनों में आस्था बनी रही और वह वर्ग संघर्ष की राजनीति के लिए प्रतिबद्ध रहे. 2008 और 2013 में भी वह चुनाव लड़े. अली वजीर पाकिस्तानी मार्क्सवादी संगठन द स्ट्रगल से जुड़े हैं. यह संगठन लाहौर लेफ्ट फ्रंट से जुड़ा है. देश के सभी लेफ्ट समूहों और संगठनों का ये संयुक्त फ्रंट है.
इमरान खान की पीटीआई 116 सीटों के साथ बनी सबसे बड़ी पार्टी
इस बीच पाकिस्तान चुनाव आयोग की ओर से 28 जुलाई को जारी किए गए अंतिम नतीजों के मुताबिक इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) आम चुनावों में 116 सीटें हासिल कर सबसे बड़ी पार्टी बन गई है. नेशनल असेंबली की कुल 270 सीटों पर चुनाव हुए थे. बीते 25 जुलाई को हुए मतदान के बाद वोटों की धीमी गिनती और चुनावों में धांधली के आरोपों के बीच आयोग ने अंतिम नतीजों का ऐलान किया. चुनाव आयोग को वोटों की गिनती कराने में दो दिन से ज्यादा का वक्त लग गया. पाकिस्तान चुनाव आयोग (ईसीपी) के अनुसार, संसद के निचले सदन नेशनल असेंबली के लिए हुए चुनावों में पीटीआई ने 116 सीटें जीतकर अपनी स्थिति काफी मजबूत कर ली है.
नवाज शरीफ की पार्टी दूसरे नंबर पर खिसकी
भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में बंद पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) 64 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर जबकि पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) 43 सीटों के साथ तीसरे पायदान पर है. मुत्ताहिदा मजलिस-ए-अमल (एमएमएपी) 13 सीटों के साथ चौथे स्थान पर रही. 13 निर्दलीय उम्मीदवारों ने भी जीत दर्ज की है, जिनकी भूमिका अहम होगी क्योंकि पीटीआई को केंद्र में सरकार बनाने के लिए उनके समर्थन की जरूरत होगी. 16,857,035 वोटों के साथ पीटीआई पहले, 12,894,225 वोटों के साथ पीएमएल-एन दूसरे और 6,894,296 वोटों के साथ पीपीपी तीसरे पायदान पर है.
चुनाव आयोग ने कहा कि वोटरों की ओर से डाले गए कुल वोटों के लिहाज से निर्दलीय उम्मीदवार चौथे सबसे बड़े समूह के तौर पर उभरे हैं और उन्हें कुल 6,011,297 वोट मिले हैं. बहरहाल, इमरान की पीटीआई को साधारण बहुमत के लिए जरूरी 137 सीटें नहीं मिल पाई. कराची में दशकों तक शासन करने वाले मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट पाकिस्तान (एमक्यूएमपी) को सिर्फ छह सीटें मिल सकीं. आयोग ने चुनावों में हर पार्टी को मिले वोटों की कुल संख्या भी जारी की है. धार्मिक पार्टियों में एमएमएपी को 2,530452, तहरीक-ए-लबैक पाकिस्तान को 2,191,679 और अल्लाह-ओ-अकबर तहरीक को 171,441 वोट मिले हैं.
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आयोग ने नेशनल असेंबली एवं प्रांतीय विधानसभाओं के लिए हुए चुनावों में वोटरों के अंतिम वोट प्रतिशत भी जारी किए. इसके अनुसार, नेशनल असेंबली (एनए) के लिए हुए चुनाव में 51.7 प्रतिशत, पंजाब विधानसभा चुनाव में 55 प्रतिशत, सिंध विधानसभा चुनाव में 47.6 प्रतिशत, खैबर पख्तूनख्वा विधानसभा चुनाव में 45.5 और बलूचिस्तान विधानसभा चुनाव में 45.2 प्रतिशत वोट पड़े थे.
प्रांतीय विधानसभाओं के लिए हुए चुनावों के नतीजे भी घोषित कर दिए गए. पंजाब में 129 सीटों के साथ पीएमएल-एन जबकि सिंध में 76 सीटों के साथ पीपीपी सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी है. खैबर-पख्तूनख्वा में पीटीआई 66 सीटों के साथ और बलूचिस्तान में बलूचिस्तान अवामी पार्टी 15 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी.
कट्टरपंथी सुन्नी बरेलवी पंथ को मानने वालों की पार्टी तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (टीएलपी) को सिंध विधानसभा में दो सीटें मिली. टीएलपी ने पहली बार चुनावों में हिस्सा लिया था. चुनावों के नतीजों के ऐलान में देरी होने की वजह से हारने वाली पार्टियों में गुस्सा देखा गया. उन्होंने साजिश और धोखाधड़ी के आरोप लगाए.