तालिबान ने अपनी मिलिट्री यूनिट का नाम 'पानीपत' क्‍यों रखा? पढ़ें INSIDE STORY
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तालिबान ने अपनी मिलिट्री यूनिट का नाम 'पानीपत' क्‍यों रखा? पढ़ें INSIDE STORY

Taliban Military Unit: ये बात सही है कि पानीपत के तीसरे युद्ध में मराठाओं को जीत नहीं मिली. लेकिन ये भी उतना ही सच है कि पानीपत की तीसरी लड़ाई एक तरफा लड़ाई नहीं थी. इससे पहले दो और छोटे युद्ध हुए थे, जिनमें अहमद शाह अब्दाली की सेना मराठाओं से हार गई थी.

फाइल फोटो | साभार- पीटीआई.

काबुल: अब हम आपको बताएंगे कि अफगानिस्तान (Afghanistan) की तालिबान (Taliban) सरकार ने भारत (India) की दुखती रग पर हाथ रखने के लिए अपनी एक मिलिट्री यूनिट (Military Unit) का नाम पानीपत (Panipat) रख दिया है. इस सैनिक टुकड़ी का नाम पानीपत रखने के पीछे तालिबान की सोच ये है कि वो वर्ष 1761 में हुए पानीपत युद्ध की याद दिला कर, हिन्दू संस्कृति का अपमान कर सके. पानीपत के इस युद्ध में अफगानिस्तान से आए अहमद शाह अब्दाली की सेना ने मराठा सेनाओं को हरा दिया था और अब तालिबान भारत के 140 करोड़ लोगों को उसी युद्ध की यादें ताजा करवाना चाहता है.

  1. इतिहास की ज्यादातर किताबों में लिया गया अब्दाली का पक्ष
  2. बताया जाता है पानीपत की लड़ाई का अधूरा सच
  3. मुस्लिम शासक अहमद शाह अब्दाली की गोद में जाकर बैठ गए

ईरान तक लगती थीं भारत की सीमाएं

लेकिन तालिबान सरकार ये भूल गई है कि आज की स्थिति में अफगानिस्तान की सेना, भारत की सेना के सामने दो घंटे भी नहीं टिक पाएगी. आज हम आपको बताएंगे कि आज से डेढ़ हजार साल पहले कैसे भारत की सीमाएं अफगानिस्तान के पार, ईरान तक लगती थीं. और एक जमाने में अफगानिस्तान पर हिन्दू राजाओं का शासन होता था. और फिर जैसे-जैसे इस्लाम धर्म का उदय हुआ, वैसे-वैसे हमारा देश सिकुड़ते-सिकुड़ते अफगानिस्तान और ईरान से हट कर, वाघा बॉर्डर तक सिमट गया.

तालिबान ने किया सेना की नई ऑपरेशन यूनिट का गठन

सबसे पहले आपको तालिबान की इस मिलिट्री यूनिट के बारे में बताते हैं. अफगानिस्तान के नांगरहार प्रांत में तालिबान ने सेना की एक नई ऑपरेशन यूनिट का गठन किया है, जिसका नाम है, पानीपत. आम तौर पर तालिबान इस तरह की मिलिट्री यूनिट को इस्लामिक नाम देता है, लेकिन ये पहली बार है, जब उसने भारत के एक ऐसे स्थान के नाम पर अपनी सेना की यूनिट का नाम रखा है, जिसे वो अफगान लोगों के शौर्य और भारत की हार का प्रतीक मानता है. यानी आप कह सकते हैं कि तालिबान ने भारत को नीचा दिखाने और उसे उकसाने के लिए पानीपत नाम से सेना की ये ऑपरेशनल यूनिट बनाई है.

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पानीपत में लड़े गए तीन युद्ध

पानीपत 56 वर्ग किलोमीटर में फैला हरियाणा का एक छोटा सा जिला है और भारत के इतिहास की नजर से ये बहुत ही महत्वपूर्ण जगह है. इस जगह पर भारत ने अपने इतिहास के तीन बड़े युद्ध लड़े, जिनमें पहला युद्ध वर्ष 1526, दूसरा युद्ध वर्ष 1556 और तीसरा युद्ध 1761 में लड़ा गया. और तालिबान ने 1761 में लड़ी गई पानीपत की तीसरी लड़ाई को ही आधार बना कर इस सैन्य टुकड़ी का गठन किया है.

पानीपत के युद्ध का अधूरा सच

इस लड़ाई में अफगानिस्तान के शासक अहमद शाह अब्दाली उर्फ अहमद शाह दुर्रानी ने मराठा साम्राज्य की सेना को हरा दिया था. और अफगानिस्तान मानता है कि ये लड़ाई, हिन्दू धर्म पर इस्लाम धर्म की सबसे बड़ी जीत थी. इस युद्ध को लेकर इतिहास की ज्यादातर किताबों में भी वही पक्ष लिखा गया है, जिसका महिमामंडन अफगानिस्तान द्वारा किया जाता है. लेकिन ये सच आधा अधूरा है और हम आपको इसका पूरा सच बताना चाहते हैं.

दरअसल, 18वीं शताब्दी में जैसे-जैसे भारत में मुगल शासन कमजोर हुआ, वैसे-वैसे कश्मीर, पंजाब और स्वात घाटी के कुछ इलाके अफगानिस्तान के नियंत्रण में चले गए और अहमद शाह अब्दाली ने दिल्ली को जीतने की पूरी योजना बना ली.

मराठा साम्राज्य ने अब्दाली को दी चुनौती

उस समय दिल्ली में मुगलों का शासन था और मुगल भी अहमद शाह अब्दाली से काफी प्रभावित थे. इसलिए मराठा साम्राज्य ने ये तय किया कि वो अहमद शाह अब्दाली को रोकने के लिए अपनी सेना को पुणे से 1500 किलोमीटर उत्तर में एक नया युद्ध लड़ने के लिए भेजेगा, जिसका मकसद होगा हिन्दू धर्म और उसकी रियासतों को विदेशी आक्रमणकारियों से बचाना.

मराठाओं ने अब्दाली के बेटे को भगाया

वर्ष 1750 आते-आते मराठा साम्राज्य पंजाब तक पहुंच गया था. और मराठाओं ने लाहौर किले पर कब्जा करके अहमद शाह अब्दाली के बेटे को वहां से भागने पर मजबूर कर दिया था और लाहौर के किले पर 800 वर्षों के बाद भगवा ध्वज लहरा दिया था. ये एक बहुत बड़ी जीत थी क्योंकि उस समय मुगल और दूसरे मुस्लिम शासक अहमद शाह अब्दाली की गोद में जाकर बैठ गए थे.

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लेकिन इसके बावजूद मराठाओं ने अहमद शाह अब्दाली की सेना से लड़ने का फैसला किया और अहमद शाह अब्दाली ने भी अपने पुत्र के अपमान के बदले में एक लाख सैनिकों की फौज पानीपत के लिए रवाना कर दी.

आपको जानकर हैरानी होगी कि पानीपत की तीसरी लड़ाई सिर्फ एक दिन ही चली थी और ये दिन था, 14 जनवरी वर्ष 1761 का. उस समय युद्ध में दोपहर तक मराठा सेना का पलड़ा भारी था और अफगान सैनिक युद्ध भूमि छोड़ कर भाग रहे थे. लेकिन इस दौरान कुछ रणनीतिक गलतियां हुईं, जिनका फायदा उठा कर अहमद शाह अब्दाली की सेना ने मराठा सेनापति सदाशिव राव भाऊ की हत्या कर दी और इसके बाद मराठा सेना पूरी तरह बिखर गई.

इतिहास में जिस बात का सबसे कम जिक्र होता है, वो ये है कि अहमद शाह अब्दाली से लड़ने के लिए मराठाओं का इसी देश के बहुत सारे लोगों और शासकों ने साथ नहीं दिया. उदाहरण के लिए अवध के नवाब शुजाउ-द्दौला और दोआब के अफगान रोहिला, अहमद शाह अब्दाली के समर्थन में खड़े हो गए थे और उसकी सेना को रसद और दूसरी मदद पहुंचा रहे थे. जबकि दूसरी तरफ मराठाओं को रसद नहीं मिल पा रही थी और उनकी सेना के सामने भूखमरी जैसी नौबत पैदा हो गई थी.

ये बात सही है कि इस युद्ध में मराठाओं को विजय नहीं मिली. लेकिन ये भी उतना ही सच है कि पानीपत की तीसरी लड़ाई, एक तरफा लड़ाई नहीं थी. इससे पहले दो और छोटे युद्ध हुए थे. इनमें पहला युद्ध वर्ष 1760 में करनाल में और दूसरा कुंजपुरा में हुआ था, जो हरियाणा में है. और इन दोनों जगहों पर अहमद शाह अब्दाली की सेना मराठाओं से हार गई थी.

एक और बात, ये जीत अहमद शाह अब्दाली के लिए खोखली साबित हुई और वो भारत से ज्यादा कुछ लूट कर नहीं ले जा सका. यही नहीं इस युद्ध के 10 वर्षों के बाद वर्ष 1771 में मराठाओं ने फिर से अपनी सेना को उत्तर भारत में भेज दिया और वर्ष 1803 तक दिल्ली मराठाओं के नियंत्रण में रही. और शायद यही वजह है कि इस लड़ाई में जीत के बाद भी अहमद शाह अब्दाली ने फिर कभी दिल्ली पर हमला नहीं किया.

इसलिए अफगानिस्तान में तालिबान, अपनी मिलिट्री यूनिट का नाम पानीपत रख कर जो साबित करना चाहता है, वो आधा अधूरा सच है. और हमें लगता है कि आज तालिबान जैसी इस्लामिक कट्टरपंथी ताकतों को अफगानिस्तान का पूरा सच भी जान लेना चाहिए.

प्राचीन काल में अफगानिस्तान, नेपाल, श्रीलंका, म्यांमार, भूटान, पाकिस्तान और बांग्लादेश अखंड भारत का हिस्सा हुआ करते थे. और उस समय भारत की सीमाएं अफगानिस्तान के पार जाकर ईरान को लगती थीं. वर्ष 980 में यानी आज से करीब एक हजार वर्ष पहले अफगानिस्तान पर राजा जयपाल का शासन था और वो एक हिंदू थे. लेकिन मुस्लिम शासकों ने उन पर हमला करके उन्हें सत्ता से बाहर कर दिया और इसके बाद धीरे-धीरे अफगानिस्तान, भारत वर्ष के नक्शे से बाहर चला गया. अब आप जरा विचार कीजिए कि क्या आज की मौजूदा पीढ़ी इस बात पर भरोसा कर सकती है कि अफगानिस्तान में कभी हिंदू बहुसंख्यक थे और वहां के राजा हिंदू हुआ करते थे.

प्राचीन काल में अफगानिस्तान आर्यों की पुरातन भूमि थी, जिसका जिक्र ऋग्वेद में भी मिलता है. ऋग्वेद में अफगानिस्तान की कई नदियों और पहाड़ों का विस्तार से उल्लेख किया गया है, जिनमें काबुल और आमू दरिया जैसी नदियां भी शामिल हैं.

इसके अलावा 700 ईसा पूर्व इसके उत्तरी क्षेत्र में गांधार महाजनपद था, जिसके बारे में महाभारत और अन्य ग्रंथों में वर्णन मिलता है. कौरवों की माता गान्धारी और उनके भाई शकुनि गांधार के ही थे.

लेकिन बाद में यही गांधार, कंधार बन गया और यहां से हिन्दू धर्म पूरी तरह समाप्त हो गया. एक तथ्य ये भी है कि 300 ईसा पूर्व भारत में मौर्य राजवंश की स्थापना हुई थी, जिसकी राजधानी पाटलिपुत्र थी, जिसे आज पटना कहते हैं. और अफगानिस्तान मौर्य साम्राज्य का सबसे उत्तर पश्चिमी प्रांत होता था. उस समय अखंड भारत की सीमाएं कहां तक फैली हुई थीं, ये आप इस नक्शे में देख सकते हैं.

मौर्य साम्राज्य के बाद अफगानिस्तान में कुषाण राजवंश की स्थापना हुई और इस समय भी अफगानिस्तान अखंड भारत का हिस्सा होता था और यहां हिन्दू बहुसंख्यक थे. जबकि इस्लाम धर्म का नामो निशान तक नहीं था. ये बात, पहली और दूसरी शताब्दी की है.

कुषाण साम्राज्य के राजा कनिष्क के शासनकाल के दौरान अफगानिस्तान के शहर सुर्ख कोटल में कई आलिशान और भव्य मन्दिरों का निर्माण कराया गया था और इन मन्दिरों के अवशेष आज तक खुदाई के दौरान मिल जाते हैं. लेकिन इसके बावजूद तालिबान जैसी ताकतें, अफगानिस्तान को इस्लाम धर्म की भूमि बताती हैं जबकि ऐसा नहीं है.

सच ये है कि छठी शताब्दी में यानी आज से करीब 1400 वर्ष पहले इस्लाम धर्म, सऊदी अरब से दुनिया में फैलने लगा और ये ऐतिहासिक सत्य है कि जैसे-जैसे इस्लाम का प्रसार हुआ, वैसे-वैसे भारत की सीमाएं छोटी होती गईं.

आखिरी बार भारत का नक्शा 1947 में बदला, जब पाकिस्तान के रूप में भारत का एक बड़ा हिस्सा, भारत से अलग हो गया. और दुख की बात ये है कि इस्लाम धर्म के नाम पर ही पाकिस्तान का निर्माण हुआ. यानी तब भी भारत के टूटने की वजह इस्लामिक कट्टरता ही थी.

अगर संक्षेप में कहें तो आज से लगभग एक हजार साल पहले तक भारत की सीमाएं अफगानिस्तान तक फैली थीं और हिन्दू धर्म की जड़ें कई देशों में थीं. लेकिन धीरे-धीरे हिन्दू धर्म केवल एक देश तक सीमित रह गया और वो है आज का भारत. और ये सब कैसे हुआ, वो भी आपको समझना चाहिए.

एक जमाने में अफगानिस्तान का गांधार, कौरवों की माता गान्धारी का गृह राज्य था और उनके पुत्र दुर्योधन का ननिहाल था. और यहां हिन्दू धर्म के लोग बहुसंख्यक थे. लेकिन अब यहां मुस्लिम समुदाय के लोग बहुसंख्यक हैं.

इसी तरह राजा दशरथ की पत्नी कैकेई, कैकेई देश की राजकुमारी थी. लेकिन अब ये कैकेई भी पेशावर बन चुका है, जो पाकिस्तान में हैं और यहां भी अब मुस्लिम बहुसंख्यक हैं और हिन्दू अल्पसंख्यक हैं. जबकि पहले ऐसा नहीं था.

इसके अलावा एक और देश था कुंभा. जहां के राजा कुंभकरण थे. और यहां भी अच्छी खासी हिन्दू आबादी थी. लेकिन अब ये कुंभा, काबुल बन चुका है और इस समय तालिबान की सरकार इसी काबुल से चलती है.

पाकिस्तान में स्थित 'तक्षशिला' भी पहले हिन्दू धर्म का बड़ा केन्द्र था. रामायण में उल्लेख मिलता है कि इसे राजा भरत द्वारा राजकुमार तक्ष के नाम पर स्थापित कराया गया था, जो यहां के शासक नियुक्त हुए थे. और चाणक्य इसी तक्षशिला में ज्ञान का प्रचार-प्रसार करते थे. लेकिन अब ये तक्षशिला भी रावलपिंडी बन गया है, जो पाकिस्तान में है.

यानी जो हिन्दू धर्म, आज से कई हजार साल पहले एक बड़े क्षेत्र में फैला था, वो सिकुड़ कर आज एक देश भारत तक सीमित हो गया है. और दुर्भाग्यपूर्ण ये है कि भारत में भी अब कई राज्य ऐसे हैं, जहां हिन्दू धर्म के लोग अल्पसंख्यक वर्ग में आते हैं.

अमेरिका के मशहूर Think Tank, Pew Research Center के मुताबिक, भारत में 7 से ज्यादा ऐसे राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश हैं, जहां हिन्दुओं की आबादी काफी कम रह गई है. जैसे लद्दाख में सिर्फ 8 प्रतिशत हिन्दू बचे हैं. लक्षद्वीप में 3 प्रतिशत हिन्दू बच्चे हैं. वहां मुस्लिम आबादी 97 प्रतिशत हो चुकी है. मिजोरम में 3 प्रतिशत हिन्दू धर्म के लोग रह गए हैं. एक समय में नागालैंड, पांच पांडवों में दूसरे नम्बर के भाई भीम की ससुराल थी, लेकिन अब यहां भी सिर्फ 9 प्रतिशत ही हिन्दू बचे हैं. जबकि मेघालय में 12 प्रतिशत और जम्मू कश्मीर में 28 प्रतिशत हिन्दू आबादी रह गई है.

यानी पहले हिन्दू धर्म, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार, नेपाल, श्रीलंका और भूटान में सीमित हो गया और अब जो भारत नाम का एक देश बचा है, वहां भी कई राज्यों में हिन्दू अल्संख्यक बन चुके हैं. और ऐसा ही रहा तो आने वाले वर्षों में पश्चिम बंगाल, केरल और आन्ध्र प्रदेश जैसे राज्यों में भी हिन्दू एक दिन अल्पसंख्यक बन जाएंगे क्योंकि Pew Research Center के मुताबिक, इन राज्यों में हिन्दू आबादी पिछले कुछ वर्षों में तेजी से कम हुई है जबकि मुस्लिम आबादी उतनी ही रफ्तार से बढ़ रही है.

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