दयाशंकर मिश्र


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इस समय भारत कथित 'डेटा क्रांति' की चपेट में है. हर दिन मीडिया डेटा के इतने ऑफर से लदा पड़ा है कि कभी-कभी लगताहै कि डेटा ही सबसे बड़ी खबर है. इस डेटा का उपयोग हम कैसे कर रहे हैं, इस पर कोई बात नहीं हो रही है. डेटा इस तरह पेश किया जा रहा है, मानो वह हमारी बुनियादी जरूरत है. डेटा जरूरत तो है, लेकिन बुनियादी नहीं. और इससे भी बड़ी बात यह कि अभी एक समाज के रूप में शायद हम डेटा के लिए उतने परिपक्‍व भी नहीं हैं.


मुफ्त में मिलने वाली चीजें अपनी कीमत कई गुना वसूल करती हैं. डेटा के साथ भी हमारे देश में यही होने का अंदेशा है. ऐसालग रहा है जैसे अचानक किसी बच्‍चे के हाथ में ऐसी चीज आ गई हो, जिसका गलत उपयोग उसके लिए ही घातक हो सकता है. यह बात सुनने में 'पुरानी' लग सकती है, लेकिन अगर सबकुछ छोड़कर बच्‍चे, किशोर मोबाइल से चिपके रहेंगे, तो इससे किसका भला होगा. हमारा परिवार, बच्‍चों से संवाद और संबंध दोनों बाधित हो गए हैं. बच्‍चे पिताजी के मोबाइल में बिजी हैं और पिता और मां अपने नए फ्री डेटा प्‍लान को समझने में!


डियर जिंदगी : आपने बाबा भारती की कहानी सुनी है...


इन दिनों 'ब्‍लू व्‍हेल' गेम चर्चा में है. इस खेल के चलते मुंबई में एक बच्‍चे ने आत्‍महत्‍या कर ली है. इसे पूरी दुनिया में सैकड़ों बच्‍चों की आत्‍महत्‍या का कारण माना जा रहा है. 'ब्‍लू व्‍हेल' को रूस में मनोविज्ञान की पढ़ाई बीच में छोड़ने वाले फिलिप बुदेकिन ने तैयार किया है. फिलिप ने इसे गहरी निराशा, कुंठा के पलों में तैयार किया था. यह खेल खेलने वाले का दिमाग नियंत्रित करके उसे खास मनोदशा में ले जाने की कोशिश करता है. फिर धीरे-धीरे इसे खेलने वाला अंतिम पलों में सुसाइड की ओर बढ़ने लगता है.


फिलिप ने इस गेम के जरिए 15 से अधिक लड़कियों को आत्‍महत्‍या के लिए उकसाया था. जिसके लिए वह इस समय जेल में है, लेकिन उसके जेल जाने के बाद भी यह खेल बच्‍चों, किशोर और युवाओं को आत्‍महत्‍या की ओर धकेल रहा है. अपुष्ट सूत्रों के अनुसार अकेले रूस में ही 100 से अधिक बच्चों ने इस गेम के कारण सुसाइड किया है.


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वैसे इंटरनेट पर हजारों तरह के गेम हैं. जिनमें से कई एक से बढ़कर एक रोमांचक हैं. मनोरंजक हैं. इन दिनों माता-पिता की व्‍यस्‍तता और बेहिसाब डेटा के कारण बच्‍चों की मोबाइल तक पहुंच बहुत ही आसान हो गई है. लेकिन बच्‍चे किस खेल में रुचि ले रहे हैं, अगर हम इसके हिसाब से भी दूर हो जाएंगे, तो हमें दुर्भाग्‍य से उन स्थितियों का समाना करना पड़ सकता है, जिससे मुंबई में मनप्रीत के माता-पिता गुजर रहे हैं.


'ब्‍लू व्‍हेल' अकेला नहीं है, इंटरनेट के बहाने ऐसे हजारों खेल हमारे बच्‍चों तक पहुंच रहे हैं. इसलिए समाज, कानून और शिक्षाविदोंके विमर्श में इसे जितनी जल्‍दी शामिल किया जाए, उतना ही बेहतर है.


मोबाइल का जरूरत से अधिक उपयोग हमें किस ओर धकेल रहा है. इसे 'ब्‍लू व्‍हेल' से समझा जा सकता है. एक खेल बच्‍चों को जान देने के लिए उकसा सकता है, क्‍योंकि हमने बच्‍चों को उनकी दुनिया में अकेले छोड़ दिया है. तकनीक, स्‍मार्टफोन औरइंटरनेट बच्‍चों के सहायक हो सकते हैं, उनके दोस्‍त नहीं. यह बात हम जितनी देर से समझेंगे, हम अपना उतना ही नुकसान कर चुके होंगे. सभी लेख पढ़ने के लिए क्लिक करें : डियर जिंदगी


(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)


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