डियर जिंदगी : हम मुश्किलों से लड़ने में कमजोर पड़ रहे हैं!
आत्महत्या के कारण एक दिन में जन्म नहीं लेते, अपवाद स्वरूप कुछ मामले ऐसे हो सकते हैं, लेकिन अधिकांश मामलों में यह कदम नियमित तनाव, अकेलेपन औरजीवन से संघर्ष करने की कम होती प्रतिरोधक भावना के कारण ही उठाया जाता है.
दयाशंकर मिश्र
पुणे, मैसूर और मुंबई! वैसे तो अक्सर ही यह शहर खबरों में बने रहते हैं, लेकिन पिछले एक सप्ताह के भीतर यहां सेकुछ डराने वाली खबरें आ रही हैं. तीनों ही शहर आत्महत्या की खबरों की वजह से चर्चा में हैं. तीनों शहरों में अपने जीवन से हार मानने वाले युवा हैं. इनमें से मुंबई से एक बच्चे ने मोबाइल गेम ‘ब्लू व्हेल’ के कारण जीवन को न कह दिया, जिसके बारे में हमने कल विस्तार से बात की थी. आज हम आत्महत्या के बढ़ते रुझान और उसके कारणों पर बात करते हैं.
‘डियर जिंदगी’ का मूल उद्देश्य ही आत्महत्या और डिप्रेशन पर संवाद है. आत्महत्या के कारण एक दिन में जन्म नहीं लेते, अपवाद स्वरूप कुछ मामले ऐसे हो सकते हैं, लेकिन अधिकांश मामलों में यह कदम नियमित तनाव, अकेलेपन औरजीवन से संघर्ष करने की कम होती प्रतिरोधक भावना के कारण ही उठाया जाता है.
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फोर्टिस हॉस्पिटल ने आठ शहरों में लगभग 2500 लोगों पर तनाव के संबंध में किए गए एक अध्ययन में यह कहा है कि ऐसा होने का मूल कारण पूअर एडॉप्टिव बिहेवियर है. कुल मिलाकर ऐसा व्यवहार जो हमें असली समस्याओं के साथ हीअवचेतन में गढ़ ली गईं काल्पनिक समस्याओं से निपटने में अक्षम बना देता है. यह अध्ययन तनाव के बारे में जोरदेकर कहता है कि आपका तनाव इस बात पर निर्भर करता है कि आपमें स्थितियों का सामना करने की कितनी क्षमताहै. इसके साथ ही यह भी देखा गया है कि अधिकांश लोग तनाव का सामना बिना किसी सलाह, संवाद के करते हैं. जोसमस्या को और अधिक उलझाने वाला कदम होता है.
हम इस बात को ऐसे भी समझ सकते हैं कि अभी हमारे देश में तनाव, मानसिक समस्या, डिप्रेशन को बीमारी माना हीनहीं जाता. इन विषयों पर बात को सीधे उस व्यक्ति के सम्मान से जोड़कर देख लिया जाता है कि ‘आपने ऐसा सोचाकि मैं या मेरी बेटी या बेटा पागल हैं.’
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मजेदार बात है कि हम जुकाम तक को डॉक्टर के पास ले जाते हैं, दवाई से उसे हराने में जुट जाते हैं, लेकिन जहांचेतना, मन और उसके विकार की बात आती है तो हम घबराकर पीछे हट जाते हैं. किसानों, कर्ज में डूबे लोगों कीआत्महत्या को कुल आंकडों से अलग कर दें, तो हम पाएंगे कि अधिकांश मामले व्यक्तिगत संबंध, कामकाजी रिश्तों,नौकरी में संघर्ष, भरोसे, स्नेह में कमी से उपजे हैं.
जिस तेजी से भारत में तनाव बढ़ रहा है, आत्महत्या की खबरें जिस तरह की समस्याओं से जन्म ले रही हैं, उनमें आर्थिक पक्ष की भूमिका सीमित है. अधिकांश मामलों में परिस्थितयों का सामना करने की हमारी मूल क्षमता में आई गिरावट के कारण आत्महत्या को चुना जा रहा है.
जैसे-जैसे मनुष्य का सुविधा संसार बढ़ता जा रहा है, वह खुद और अपने बच्चों के लिए एक ऐसी दुनिया की बुनने कीकोशिश में उलझता जा रहा है, जहां संघर्ष न हो. जहां हर चीज बस हासिल हो जाए. हम यह भूल रहे हैं कि जिंदगी केवल पाने की कहानी नहीं है. जिंदगी का असली सौंदर्य उस यात्रा में है, जहां कुछ हासिल करने के लिए बहुत सारा संघर्ष करना पड़ता है.
जिंदगी ‘प्री पेड’ है, आपको जो आज मिल रहा है, उसके लिए आप ‘कल’ संघर्ष कर चुके हैं. हमें हर आने वाले कल केलिए आज फसल बोनी होगी. जिंदगी ऐसे ही चलती है.
हमारी जिंदगी में तनाव इसलिए भी आता है, क्योंकि हम एक तय नजरिए से ही दुनिया को देखते हैं. दुनिया के प्रतिहमारी एक खास राय है, कि ऐसा ही होना चाहिए. जबकि जिंदगी तो उलटबांसियों का खेल है. दुनिया तो हमारी राय सेअधिक अलग है. हमारे नजरिए से उलटी है. तनाव, समस्या तब ही शुरू होती है, जब हम इसे स्वीकार करने से इंकार कर देते हैं.
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आत्महत्या के विरुद्ध सजग ढंग से खड़े होना ही सबसे बड़ा उपाय है. जीवन और काम के बीच संतुलन, संवाद कौशल केसाथ दूसरे के लिए थोड़ी सी जगह की गुंजाइश रखने से इसके खतरे को बहुत हद तक कम किया जा सकता है.
(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)
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