नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने केन्द्रीय जांच ब्यूरो को शुक्रवार (1 दिसंबर) को निर्देश दिया कि 70,000 करोड़ रुपए की लागत से एयरइंडिया के लिये 111 विमान खरीदने या किराये पर लेने में हुयी कथित अनियमित्ताओं की जांच का काम छह महीने के भीतर पूरा किया जाये. विमानों के लिये यह सौदा उस समय हुआ था जब प्रफुल पटेल नागरिक उड्डयन मंत्री थे. शीर्ष अदालत ने सीबीआई को जांच पूरी करने के लिये अधिक समय देने से इंकार करते हुये कहा, ‘‘जांच का काम सालों में नहीं बल्कि दिनों में पूरा करना होगा.’’ न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल और न्यायमूर्ति उदय यू ललित की पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत ने जांच ब्यूरो को जून तक जांच पूरी करने का निर्देश दिया था लेकिन वह ऐसा करने में विफल रहा.


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पीठ ने कहा, ‘‘शीर्ष अदालत द्वारा पांच जनवरी को दिये गये आदेश को अब करीब एक साल हो गया है. क्या आप हमें यह बता सकते हैं कि आपको अपनी जांच पूरी करने के लिये कितना समय चाहिए.’’ इस पर जांच ब्यूरो की ओर से अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल पी एस नरसिम्हा ने कहा कि जांच ब्यूरो ने इस मामले में प्राथमिकी दर्ज की है और वह इसके सभी पहलुओं की जांच कर रहा है परंतु चूंकि इस मामले के कुछ आरोपी विदेश में हैं, जिनके लिये अनुरोध पत्र भेजने की आवश्यकता है.


उन्होंने कहा, ‘‘जांच पूरी करने के लिये दो साल का समय दिया जाना चाहिए.’’ इस पर पीठ ने कहा, ‘‘नहीं, ऐसा नहीं किया जा सकता, आपको यह जांच अगले छह महीने में पूरी करनी होगा. जांच सालों में नहीं बल्कि दिनों में पूरी करनी होगी.’’ शीर्ष अदालत ने पांच जनवरी को जांच ब्यूरो से कहा था कि वह 111 विमानों की खरीद या उन्हें किराये पर लेने में ‘गंभीर अनियमित्ताओं’ के आरोपों की जांच जून तक पूरी करे. न्यायालय ने यह भी कहा था कि गैर सरकारी संगठन सेन्टर फार पब्लिक इंटरेस्ट लिटीगेशंस के इन नये आरोपों की भी जांच करे कि पटेल ने एयरइंडिया को एक हजार करोड़ रुपए की कीमत से बायोमेट्रिक प्रणाली खरीदने के लिये बाध्य किया.


केन्द्र सरकार ने पहले न्यायालय से कहा था कि याचिका मे लगाये गये अधिकांश आरोप नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक और लोक लेखा समिति की रिपोर्ट में की गयी प्रतिकूल टिप्पणियों का परिणाम है. याचिका में यह भी कहा गया था कि लोकलेखा समिति के अध्यक्ष के रूप में भाजपा के वरिष्ठ नेता डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने फरवरी 2014 में इस मामले में कुछ टिप्पणियां की थी और इस पर नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने 19 जनवरी, 2015 को अपना विस्तृत जवाब भी दाखिल किया था.