Airline: भारत में एयरलाइन उद्योग काफी आगे बढ़ रहा है. हालांकि इससे पहले भारत में कई एयरलाइन कंपनियों को अपना कारोबार बंद करते हुए भी देखा गया है. इन कंपनियों में Kingfisher, Jet Airways और अब Go First का भी नाम शामिल है. गो फर्स्ट ने हाल ही में आर्थिक संकटों के कारण अपना परिचालन बंद कर दिया था. भारत के सबसे बड़े कॉर्पोरेट दिग्गजों के जरिए संचालित तीन प्रमुख एयरलाइंस विजय माल्या की किंगफिशर, नरेश गोयल की जेट एयरवेज और नुस्ली वाडिया की गो फर्स्ट सभी ताश के पत्तों की तरह ढह गई हैं. ऐसे में आइए जानते हैं कि इन एयरलाइन कंपनियों से क्या सबक लोगों को मिलता है.


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कर्ज का जाल
इन एयरलाइन कंपनियों ने बैंकों से कर्ज ले रखा था. किंगफिशर के मामले में बैंकों ने लगभग 7,000 करोड़ रुपये की वसूली की क्योंकि इसके प्रमोटर माल्या ने व्यक्तिगत गारंटी दी थी और पैसा उसके शेयर और विलासिता को बेचकर वसूल किया जा सकता था. गोवा में प्रतिष्ठित किंगफिशर विला सहित कई संपत्तियां बेची गई. इससे बैंकों के बकाये का एक बड़ा हिस्सा वापस आ गया है. हालांकि ऋणदाता अभी भी माल्या का पीछा कर रहे हैं क्योंकि समय पर लोन चुकाने की बजाय शराब कारोबारी माल्या ब्रिटेन भाग गया था और इसलिए ब्याज, जुर्माना और अन्य शुल्क वसूल किए जाएंगे. 


जेट एयरवेज ने 2019 में नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) में दिवालियापन के लिए एप्लाई किया था. बैंकों की ओर से कंपनी को लगभग 8,000 करोड़ रुपये उधार दिए गए थे. वहीं गो फर्स्ट जो इस साल मई में दिवालियापन के लिए स्वेच्छा से आवेदन करने वाली पहली एयरलाइन बन गई, पर 4000 करोड़ रुपये सहित 11000 करोड़ रुपये का बकाया है. एयरलाइन ने बैंकों को मुंबई के ठाणे में 94 एकड़ का प्लॉट सिक्योरिटी के तौर पर दिया है. इस प्लॉट की कीमत 3,000 करोड़ रुपये है. शेष धनराशि सरकार की असुरक्षित आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (ईसीएलजीएस) के तहत थी, जिसे वित्तीय संकट से जूझ रही कंपनियों की मदद के लिए पेश किया गया था. ऐसे में समय पर ये कंपनियां अपना कर्ज नहीं चुका पाई जिससे दिक्कतें बढ़ती चली गई.



कर्मचारियों, यात्रियों और निवेशकों का हित
हालांकि नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) के पास एयरलाइंस की वित्तीय निगरानी करने और दिवालियापन के बारे में प्रारंभिक चेतावनी देने के लिए एक नियामक तंत्र है. हालांकि डीजीसीए ने ऐसा कोई कानून भी नहीं बनाया है जो यह कहता हो कि एयरलाइंस अपना लाइसेंस तभी बरकरार रख सकती हैं जब वे दिखाएं कि उनके बैंक खातों में कम से कम तीन-छह महीने के लिए पर्याप्त कार्यशील पूंजी है. दूसरा, एयरलाइंस के खिलाफ कार्रवाई करना आसान नहीं है. किसी भी एयरलाइन को बंद करने की मंजूरी नहीं दी जा सकती, भले ही यह सर्वविदित हो कि वह आर्थिक रूप से कमजोर है. कोई भी अपने कार्यकाल में ऐसा दाग नहीं चाहता. इसलिए एयरलाइन धीमी गति से चल रही है और सबसे अच्छा जो कर सकते हैं वह है कारण बताओ नोटिस जारी करना या जब सुरक्षा उल्लंघन देखते हैं तो उनके परिचालन को कम कर देते हैं. पिछले साल कुछ हफ्ते में दर्जनों हवाई सुरक्षा घटनाओं के बाद उसके बाद सामान्य परिचालन फिर से शुरू करने की अनुमति दी गई थी, लेकिन एयरलाइन कर्मचारियों, यात्रियों और निवेशकों सहित अन्य हितधारकों के बारे में क्या सही है, इसको लेकर हमेशा सवाल रहता है.


रेड फ्लैग
सभी असुरक्षित हितधारकों को डीजीसीए के जरिए जारी कारण बताओ नोटिस और लगातार वेतन देरी जैसे संकेतों पर नजर रखनी चाहिए. यदि कोई एयरलाइन विमानन नियामक के रडार पर है, तो यात्रियों को एक महीने से अधिक पहले उस पर टिकट बुक करने से बचना चाहिए. इस बीच कर्मचारी किसी एयरलाइन की नेतृत्व टीम से संकेत प्राप्त कर सकते हैं. उदाहरण के लिए, यदि शीर्ष प्रबंधन अधिकारियों के बेटे, बेटियां, दोस्त या परिचित किसी तनावग्रस्त एयरलाइन को छोड़ देते हैं तो यह संभावित रूप से डूबते जहाज का चेतावनी संकेत है. यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि शीर्ष नेतृत्व अधिकारियों को भी चिंतित होना चाहिए.