नई दिल्ली: कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) ने वित्त वर्ष 2017-18 के लिए पीएफ पर ब्याज दर 0.10 फीसदी की कटौती कर 8.55% तय कर दी है. इससे पहले वित्त वर्ष 2016-17 के लिए यह 8.65% थी. यह पहली बार नहीं है जब आपके पैसे यानी पीएफ पर 'हमला' हुआ हो. ऐसा पहली बार नहीं है कि जब ईपीएफओ के सेंट्रल बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज ने पीएफ ब्याज दर पर कैंची चलाई है. आपको बता दें, पीएफ पर मिलने वाली ब्याज दर कभी 12% तक हुआ करती थी. लेकिन, लगातार छोटी बचत योजनाओं पर चलने वाली कैंची से ईपीएफओ पर भी हमला होता रहा है.


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कब कितनी मिलती थी ब्याज दर
1952 में जब भारत सरकार ने कर्मचारी भविष्य निधि संगठन की स्थापना की तब ये ईपीएफ स्कीम 1952 एक्ट को लागू किया गया. यहीं से पीएफ पर मिलने वाले ब्याज की शुरुआत हुआ. शुरुआत में इस पर ब्याज दर महज 3% थी. इसके बाद वित्त वर्ष 1955-56 में इसे पहली बार बढ़ाया गया. दो साल के लिए तय की गई यह ब्याज दर 3.50% रही. इसके बाद 1963-64 में यह बढ़ते हुए 4% पर पहुंची.


1963-64 से हर साल बढ़ाई गई ब्याज दर
वित्त वर्ष 1963-64 के बाद से हर साल इसे 0.25 फीसदी बढ़ाया जाने लगा. 1969-70 तक यह बढ़कर 5.50% पहुंच गई. हालांकि, उसके बाद से इसके लगातार 0.25% पर ब्रेक लगा और ईपीएफओ ने वित्त वर्ष 1970-71 में इसे महज 0.10 फीसदी ही बढ़ाया. 


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पहली बार 8% हुई ब्याज दर
1977-78 में पहली बार ब्याज दर 8% पहुंची थी. उसके बाद से यह इससे ऊपर ही है. लेकिन, 1978-79 में सबसे बड़ा फायदा पीएफधारकों को मिला. जब सरकार ने इसे 8.25% करने के साथ ही 0.5% का बोनस भी दिया. हालांकि, यह बोनस उन लोगों के लिए लिया था, जिन्होंने कभी अपना पीएफ नहीं निकाला हो. बोनस के रूप में मिलने वाली रकम को सिर्फ 1976-1977 और 1977-1978 के पीएफ पर ही दिया गया. 


पहली बार मिला 10% ब्याज
पीएफ पर मिलने वाला ब्याज पहली बार दो डिजिट में 1985-86 में पहुंची. उस दौरान सरकार ने सीधे इसे 9.90% से बढ़ाकर 10.15% कर दिया. इसके बाद और ऊंची छलांग देखने को मिली. जब अगले ही साल 1986-87 के लिए ब्याज दर 11% तय की गई. 


10 साल तक नहीं बदली ब्याज दर
पहली बार ऐसा हुआ जब पीएफ ब्याज दर को 10 साल तक बदला नहीं गया. ईपीएफओ ने 1989-90 में पीएफ पर सबसे अधिकतम ब्याज 12% देने का फैसला किया, लेकिन इसके बाद 2000 तक इसे नहीं बदला गया. वित्त वर्ष 2000-01 तक पीएफ पर 12% ही ब्याज मिलता रहा. लेकिन, इसके बाद लगातार नौकरीपेशा की जेब पर कैंची चलती गई. जुलाई 2001 से इसे घटाकर 11% किया गया. 


फिर हुआ नौकरीपेशा की जेब पर 'हमला'
2004-05 में फिर नौकरीपेशा की जेबल पर हमला हुआ. पीएफ की ब्याज दर सीधे 1% की कटौती की गई और इसे 9.50% से घटाकर 8.50% कर दिया गया. हालांकि, 2010-11 में इसे बढ़ाकर फिर से 9.50% तय किया गया. लेकिन, 2011-12 में फिर एक बार बड़ी कटौती की गई. इसे सीधे 9.50% से घटाकर 8.25% कर दिया गया. 2014-15 में यह फिर से बढ़कर 8.75% पर पहुंची. 2015-16 में इसे फिर बढ़ाया गया और यह दर 8.80% तक पहुंची. लेकिन, उससे बाद से इसमें लगातार दो बार कटौती हो चुकी है. मौजूदा दर 2017-18 के लिए तय की गई है, जो 8.55% तय की गई है. 


क्या है EPF?
एंप्लॉयी प्रोविडेंट फंड एक तरह का निवेश है, जो किसी सरकारी अथवा गैर सरकारी कंपनी में कार्यरत कर्मचारी के लिए होता है. पीएफ हर नौकरीपेशा के भविष्य में सहायक होता है. इस फंड को EPFO (कर्मचारी भविष्य निधि संगठन) मेनटेन रखता है. कानून के नियमानुसार वह कंपनी जिसके पास 20 से ज्यादा व्यक्ति काम करने वाले हैं, उसका पंजीकरण EPFO में होना जरुरी है. इसके तहत वेतन पाने वाले व्यक्ति की सैलरी का कुछ भाग हर महीने में यहां जमा होता है और यह पैसा रिटायरमेंट के समय काम आता है.


PF के रूप में कितना हिस्सा सैलरी से कटता है
EPFO के तहत आने वाली कंपनियों में नौकरी करने वाले कर्मचारी की सैलरी से 12% हिस्सा कटता है. इतना ही हिस्सा कंपनी के खाते से भी जमा होता है. यह ध्यान देने वाली बात यह है कि आपकी सैलरी से कटा पूरा 12% आपके खाते में जाएगा. लेकिन, कंपनी के खाते से कटे 12% हिस्से में से 3.67% हिस्सा PF में और 8.33% EPS (एम्प्लॉयी पेंशन स्कीम) में जमा होता है. उदाहरण के तौर पर आपकी बेसिक सैलरी 6500 से है तो आपकी कंपनी का 8.33% यानि 541 रुपए ही EPS में जमा होंगे. बाकी पैसा EPF में जाएगा. इस तरीके से कुल 24% हिस्सा आपके पीएफ में जमा होता है.