कभी सिर्फ अंग्रेजों के लिए बिस्किट बनाती थी कंपनी, आज घर-घर से जुड़ी हैं कहानियां...दाम भी कम लेकिन मुनाफा छप्परफाड़
टॉफलर के जरिए हासिल किए गए वित्तीय आंकड़ों के अनुसार, बीते वित्त वर्ष में कंपनी का कुल राजस्व 5.31 प्रतिशत बढ़कर 15,085.76 करोड़ रुपये हो गया है.
Parle G: कभी सिर्फ अंग्रेजों के लिए बिस्किट बनाने वाली कंपनी पारले का बीते वित्त वर्ष 2023-24 में मुनाफा दोगुना होकर 1606.95 करोड़ रुपये हो गया है. बिजनेस इंटेलिजेंस प्लेटफॉर्म टॉफलर के जरिए हासिल किए गए वित्तीय आंकड़ों के अनुसार, बीते वर्ष में कंपनी की ऑपरेशनल कॉस्ट दो प्रतिशत बढ़कर 14,349.4 करोड़ रुपये हो गई है.
रिपोर्ट के मुताबिक, बीते वित्त वर्ष में कंपनी का कुल राजस्व 5.31 प्रतिशत बढ़कर 15,085.76 करोड़ रुपये हो गया, जिसमें अन्य आय का भी योगदान है. पारले प्रोडक्ट्स की सहायक कंपनी पारले बिस्कुट ने 2022-23 में 743.66 करोड़ रुपये का एकल लाभ और उत्पादों की बिक्री से 14,068.80 करोड़ रुपये का राजस्व अर्जित किया था.
कभी सिर्फ अंग्रेजों के लिए बिस्किट बनाती थी कंपनी
आज से 95 साल पहले यानी साल 1929 में मोहन दयाल चौहान के परिवार ने पारले ग्रुप की शुरुआत की थी. चूंकि, कंपनी की पहली फैक्ट्री मुंबई के विले पारले में लगाई गई थी. इसलिए कंपनी का नाम पारले रखा गया था. पारले प्रोडक्ट के तौर पर सबसे पहले ऑरेंज कैंडी बनाती थी.
बाद में साल 1939 में कंपनी ने पारले ग्लूको बिस्किट नाम से नए प्रोडक्ट की शुरुआत की. शुरू में इस प्रोडक्ट के साथ सिर्फ 12 लोग जुड़े हुए थे. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, आज 50 हजार से ज्यादा कर्मचारी कार्यरत हैं.
आजादी से पहले यानी साल 1947 तक कंपनी सिर्फ अंग्रेजों के लिए बिस्किट बनाती थी. बाद में पारले ग्लूको बिस्किट को आम लोगों के लिए भी उपलब्ध करा दिया गया. लोगों के बीच प्रोडक्ट को डिफरेंशिएट किया जा सके इसलिए कंपनी ने साल 1985 में पारले ग्लूको बिस्किट का नाम पारले-जी कर दिया.
तीन हिस्सो में बंटा कारोबार
पारले जी का कारोबार मोहनलाल दयाल के पांच बेटों के बीच बांटा गया. जयंतीलाल चौहान ने अपने हिस्से में पारले एग्रो कंपनी बनाई, जो फ्रूटी, बैली और एपी फिज जैसे प्रोडक्ट्स बनाती है. वहीं, रमेश चौहान ने पारले से अलग होकर बिसलेरी ब्रांड की शुरुआत की. शेष तीन भाइयों ने मिलकर पारले नामक कंपनी को आगे बढ़ाया, जो बिस्किट, कैंडी और अन्य प्रोडक्ट्स का बनाती है.