बाजार से क्यों कम होते जा रहे 2000 रुपये के नोट? सरकार ने बताई वजह
साल 2016 में 8 नवंबर को सरकार ने नोटबंदी का फैसला लिया था जिसमें 500 और 1000 के नोट को अवैध करार दिया गया था. इसके बाद 2000 के नए नोट और 500 के नए नोट की बाजार में एंट्री हुई. फिर बाजार में 200 और 100 के भी नए नोट चलन में आ गए.
नई दिल्ली: देश में फिलहाल चलन में सबसे बड़ा नोट दो हजार का है लेकिन बाजार में इन नोटों की संख्या लगातार घटती जा रही है. इस साल नवंबर में बाजार प्रचलन वाले 2,000 रुपये के नोटों की संख्या घटकर 223.3 करोड़ नोट या कुल नोटों (एनआईसी) का 1.75 फीसदी रह गई, जबकि यह संख्या मार्च 2018 में 336.3 करोड़ थी.
राज्य सभा में मंत्री का जवाब
वित्त मंत्रालय में राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने राज्य सभा में एक सवाल के लिखित जवाब में कहा कि विशेष मूल्यवर्ग के बैंक नोटों की छपाई का फैसला सरकार की ओर से रिजर्व बैंक की सलाह पर जनता की लेनदेन संबंधी मांग को आसान बनाने और नोटों की उपलब्धता को बनाए रखने के लिए किया जाता है.
उन्होंने कहा, ‘31 मार्च, 2018 को 2,000 रुपये के 336.3 करोड़ नोट (एमपीसी) चलन में थे जो मात्रा और मूल्य के मामले में एनआईसी का क्रमशः 3.27 प्रतिशत और 37.26 प्रतिशत है. इसके मुकाबले 26 नवंबर, 2021 को 2,233 एमपीसी चलन में थे, जो मात्रा और मूल्य के संदर्भ में एनआईसी का क्रमश: 1.75 प्रतिशत और 15.11 प्रतिशत है.’ चौधरी ने आगे कहा कि वर्ष 2018-19 से नोट के लिए करेंसी प्रिंटिंग प्रेस के पास कोई नया मांगपत्र नहीं रखा गया है.
क्यों कम हुए 2000 के नोट?
उन्होंने कहा, ‘नोटबंदी के बाद जारी किए गए 2,000 रुपये के नोट के चलन में कमी इसलिए है क्योंकि साल 2018-19 से इन नोटों की छपाई के लिए कोई नया ऑर्डर नहीं रखा गया है. इसके अलावा, नोट भी खराब हो जाते हैं क्योंकि वे गंदे/कटे-फटे हो जाते हैं.’ यही वजह है कि नए नोट छापे नहीं जा रहे हैं और पुराने बेकार होकर बाजार से बाहर जा रहे हैं जिसके चलते इन नोटों की कमी हो गई है.
साल 2016 में 8 नवंबर को सरकार ने नोटबंदी का फैसला लिया था जिसमें 500 और 1000 के नोट को अवैध करार दिया गया था. इसके बाद 2000 के नए नोट और 500 के नए नोट की बाजार में एंट्री हुई. फिर बाजार में 200 और 100 के भी नए नोट चलन में आ गए.
ये भी पढ़ें: रेलवे ने बस एक गलती पर यात्रियों से वसूले 100 करोड़ से ज्यादा, आप भी हो जाएं सावधान
एक और सवाल के जवाब में कहा कि करेंसी की डिमांड कई सारे फैक्टर पर निर्भर करती है. इसमें आर्थिक वृद्धि से लेकर ब्यार दर तक शामिल है. खास तौर पर साल 2020-21 के दौरान कोरोना काल में करेंसी को लेकर पब्लिक की डिमांड काफी बढ़ गई थी.