Rule Change from Oct 1: कल यानी 1 अक्टूबर से शेयर मार्केट में तीन महत्वपूर्ण बदलाव लागू होने वाले हैं. इनमें स्टॉक एक्सचेंजों द्वारा रिवाइज्ड ट्रांजेक्शन फी, सिक्यूरिटीज ट्रांजेक्शन टैक्स और शेयर बायबैक पर न्यू टैक्स रुल्स हैं. ऐसे में इन्वेस्टर्स को आने वाली चुनौतियों से निपटने और नए अवसरों का लाभ उठाने के लिए इन नियमों के बारे में जानना जरूरी है.


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रिवाइज्ड ट्रांजेक्शन चार्जेज


1 अक्टूबर से बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज नकदी, वायदा और ऑप्शन्स ट्रेडिंग के लिए नए लेनदेन शुल्क लागू करेंगे. यह नियम भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड यानी सेबी के निर्देशों का पालन है. सेबी ने सभी मार्केट इंफ्रास्ट्रक्चर इंस्ट्यूट के लिए यूनिफॉर्म फ्लैट फी स्ट्रक्चर लागू किया है.


इसे इस तरह समझा जा सकता है जैसे- बीएसई ने इक्विटी डेरिवेटिव सेगमेंट में सेंसेक्स और बैंकेक्स विकल्प अनुबंधों के लिए अपनी लेनदेन शुल्क को 3,250 रुपये प्रति करोड़ प्रीमियम टर्नओवर पर एडजस्ट कर दिया है. इस बीच इस सेगमेंट में अन्य अनुबंधों के लिए लेनदेन शुल्क वहीं रहेंगे. जबकि बीएसई सेंसेक्स 50 विकल्पों और स्टॉक विकल्पों के लिए प्रति करोड़ प्रीमियम टर्नओवर पर 500 रुपये का शुल्क लेगा, जबकि सूचकांक और स्टॉक वायदा पर कोई लेनदेन शुल्क नहीं लगेगा.


प्रतिभूति लेनदेन कर (एसटीटी) में वृद्धि


तेजी से बढ़ते डेरिवेटिव बाजार में सट्टा कारोबार पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस साल की शुरुआत में वायदा और विकल्प कारोबार पर एसटीटी में वृद्धि की घोषणा की थी. 1 अक्टूबर से वायदा पर एसटीटी 0.0125% से बढ़कर 0.02% हो जाएगा, जबकि विकल्प कारोबार में 0.0625% से 0.1% की वृद्धि देखी जाएगी.


हालांकि, विश्लेषकों का कहना है कि इस बढ़ोतरी से बाजार में ट्रेडिंग की मात्रा और गहराई कम हो सकती है, जिससे एक्सचेंज और सेबी के राजस्व पर असर पड़ सकता है. जबकि सरकार का स्पष्ट उद्देश्य है कि हाल के वर्षों में खुदरा डेरिवेटिव व्यापार की विशेषता बनी अत्यधिक अटकलों को नियंत्रित किया जाए.


शेयर बायबैक पर बदले टैक्स नियम


कल से शेयर बाजार में जो अहम बदलाव हो रही है उसमें शेयर बायबैक पर टैक्स को लेकर है. 1 अक्टूबर से बायबैक से होने वाली कमाई को शेयरहोल्डर्स के लिए प्रोफिट क रूप में देखा जाएगा.


इसका मतलब है कि जब कंपनियां अपने शेयरों की दोबारा खरीदेंगी तो शेयरहोल्डर्स पर उनके लागू टैक्स स्लैब के अनुसार टैक्स लगाया जाएगा. यह बदलाव कंपनियों को बायबैक से जुड़ी टैक्स लायबिलिटीज से बाधित होने के बजाय विकास पहल के लिए धन का उपयोग करने में अधिक फ्लैक्सबिलिटी रहेगी.