Vedanta Chairman Anil Agarwal: वेदांता के चेयरमैन अनिल अग्रवाल ने अपने लंबे और सफल कारोबारी जीवन के एक राज का खुलासा पूरी दुनिया से किया है. जिंदगी में काम आए इस टूल को उन्होंने 'एक-चौथाई सिद्धांत' (One Quarter Theory) का नाम दिया. आपको बता दें कि ये वही रामबाण थ्योरी थी जो कि ब्रिटेन (UK) में गेमचेंजर साबित हुई और इसी के दम पर वेदांता (Vedanta) ने अंग्रेजों के देश में मजबूत जड़ें जमाने में कामयाबी हासिल की. ट्विटर पर उनकी कारोबारी यात्रा के किस्से हाथोंहाथ वायरल होते हैं. इससे पहले वह लंदन स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्टिंग की कहानी बता चुके हैं.


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यूथ को मोटिवेशनल मंत्र


अपनी दूर की सोंच और रिस्क लेने की क्षमता से एक बड़े आसामी बने अग्रवाल ने बतौर मोटिवेशनल गुरू देश के सभी युवाओं को सफलता का  नायाब मंत्र दिया है.


परदेश में सामने आईं मुश्किलें


अपने सोशल मीडिया पोस्ट में अग्रवाल ने लिखा, 'पिछले दिनों अलग-अलग मौकों पर मेरी कुछ युवाओं से मुलाकात हुई. हर बार की तरह मुझे उनसे कुछ सीखने को मिला. युवाओं से बातचीत के दौरान मैं उनसे कहता हूं कि कड़ी मेहनत का कोई विकल्प नहीं है. आज, मैं आपको उस 'एक चौथाई के सिद्धांत' के बारे में बताता हूं जिसने लंदन में मुझे टिकने में मदद की. इंग्लैड जाने के बाद कुछ शुरुआती महीने मेरे लिए बड़ी चुनौतियों से भरे थे. लेकिन मैं नए अवसरों को लेकर उत्साहित होने के साथ विदेश में कामयाबी को लेकर आशंकित भी था. उन्हीं दिनों में मैनचेस्टर जाने वाली एक ट्रेन में सफर के दौरान मैंने यह सुना  ड्यूराट्यूब कंपनी दिवालिया हो गई है तो मैं उसे हासिल करने के बारे में सोचने लगा.'


अंग्रेजी से मिली चुनौती


वेदांता के चेयरमैन अनिल अग्रवाल को उस दौर में अंग्रेजी कमजोर होने के वजह से बिजनेस डील से पहले बातचीत में अक्सर परेशानी होती थी. अपनी कहानी में आगे उन्होंने कहा, 'मैनें एक बार HSBC के एक बैंकर को फोन किया और उस कंपनी के बारे में सवाल किया जिसे मैं खरीदना चाहता था. बातचीत के बीच में एक ऐसा मौका आया जब बैंकर ने कहा, आई बेग योर पार्डन. और चुप हो गया. मैं भी चुप था क्योंकि मुझे इसका मतलब नहीं पता था. मैं काफी देर बाद समझा कि वो चाहते थे कि मैं अपना सवाल कुछ सरल शब्दों में रिपीट करूं. दरअसल तब हम दोनों एक दूसरे से कन्फ्यूज्ड थे.'



बेटी को राह दिखाते हुए मिली सीख


अग्रवाल ने अपनी बेटी को दिए एक मंत्र से इस अड़चन को दूर करने में सफलता हासिल की. उन्होंने कहा, 'जल्द ही मुझे महसूस हुआ कि मेरी बेटी, प्रिया भी नए देश की नई समस्याओं से गुजर रही थी. उसे नई जगह में दोस्त बनाने थे और वहां की संस्कृति में घुलना-मिलना था. एक पिता के रूप बेटी को अपने फैसलों की वजह से संघर्ष करते हुए देखना मुझे बहुत बुरा लगा, पर मुझे भरोसा था कि मेरे थोड़े से सहयोग से वो अपने रास्ते की हर चुनौती को दूर करके विजेता बनेगी. मैंने उससे कहा तुम बहुत हिम्मत वाली हो. तुम्हें खुद को बदलने की जरूरत नहीं है. बस अपने सामान्य प्रयासों को हर दिन थोड़ा मजबूत करने पर फोकस करो. भले ही केवल 25 प्रतिशत यानी एक चौथाई ही क्यों न हो. जल्दी ही लोग तुम्हारी तारीफ करेंगे.'


वेदांता चेयरमैन की विनिंग थ्योरी


आगे उन्होंने कहा, 'अनजाने में मेरी बेटी ने मुझे हर दिन जुटे रहने और कोशिश करते रहने का सबक सिखाया, भले ही वह सिर्फ एक चौथाई ही क्यों न हो (One fourth theory). नए देश में संवाद को प्रभावी बनाने के लिए मैंने अपनी अंग्रेजी सुधारने के साथ बिजनेस करने के तरीके सीखने के लिए अतिरिक्त कोशिशें शुरू कीं. हर दिन, मैं या तो स्पोकन इंग्लिश की प्रैक्टिस करता या यूके के बिजनेस कल्चर के बारे में अधिक जानने के लिए एक अतिरिक्त घंटा मेहनत करता. जिस दिन थकान के कारण मैं ऐसा नहीं कर पाता तो अगले दिन एक्स्ट्रा मेहनत करके उस दिन की भरपाई करता. धीरे-धीरे मैं वहां के माहौल में ढ़ल गया और वहां के बैंक से 3 मिलियन पाउंड की फंडिंग हासिल करने में कामयाब रहा. इस तरह ड्यूराट्यूब का अधिग्रहण करते हुए मैं अपनी पहली कंपनी को हासिल कर सका.'


कौन हैं अनिल अग्रवाल?


आपको बता दें कि पटना से अपनी जिंदगी शुरू करने वाले अग्रवाल अब तक कई सफलताओं को हासिल करते हुए कई रिकॉर्ड बना चुके हैं. उनके नाम लंदन स्टॉक एक्सचेंज (London Stock Exchange) में पहली भारतीय कंपनी को लिस्ट कराने का कीर्तिमान भी दर्ज है. मेटल और माइनिंग की दुनिया का वो एक जाना माना चेहरा है.