Big Bridges Over Water: देश-दुनिया में बढ़ती टेक्नोलॉजी के साथ साथ लोगों को फायदे हो रहे हैं. इसी तकनीक ने एक शहर से दूसरे शहर की दूरी को भी घटा दिया है. जी हां आपने बिलकुल सही पढ़ा, तकनीक ने एक शहर से दूसरे शहर की दूरी को भी घटा दिया है. यह सब कैसे हुआ है और किसने किया है इन सबके बारे में आज हम आपको यहां बताने जा रहे हैं. 


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आपने देखा होगा कि जब आप कहीं जाते हैं तो रास्ते में कई बार बड़े बड़े पुल पड़ते हैं. यह पुल या तो नदी या फिर किसी गहरी खाई को पार करने के लिए बनाए जाते हैं और इनसे होकर ही गड़ियां और ट्रेन निकलती हैं. इन्ही की बदौलत एक जगह से दूसरी जगह कम समय में पहुंचना मुमकिन हो पाया है. 


क्या आपने कभी सोचा है कि समुंदर और बड़ी बड़ी नदियों पर बनाए जाने वाले पुल कैसे बनते हैं. एक बार तो आपके दिमाग में जरूर आया होगा कि इन ब्रिज को रोकने वाले पिलर कैसे खड़े किए गए होंगे. इन पिलर्स को बनाने के लिए कई चीजों पर रिसर्च किया जाता है. इसमें पानी के बहाव की रफ्तार, पानी के नीचे की मिट्टी कौन सी है, पुल का कुल वजन, गहराई और उस पर चलने वाले वाहनों समेत वजन पर रिसर्च किया जाता है. इतनी रिसर्च होने के बाद ही काम शुरू होता है. नदियों और समंदर में 3 तरह के ब्रिज बनाए जाते हैं. इनमें सस्‍पेंशन ब्रिज, बीम ब्रिज और आर्क ब्रिज होते हैं. 


गहरे पानी पर कैसे बनाए जाते हैं पुल 
नदियों और समंदर में जो पुल बनाए जाते हैं उनका ज्यादातर मेटेरियल पहले ही तैयारी कर लिया जाता है. 
सिविल इंजीनियरिंग की भाषा में इन्‍हें प्री-कास्‍ट स्‍लैब कहते हैं. इन्हें ही जोड़कर पुल बना लिया जाता है. लेकिन जो पिलर्स होते हैं उन्हें ऑनसाइट ही तैयार किया जाता है. सबसे पहले इन पुलों की भी नींव रखी जाती है और फिर ऊपर का काम होता है. 


ऐसे डालते हैं नदियों में कॉफरडैम
इन पिलर्स की नींव रखने की प्रक्रिया में सबसे पहले कॉफरडैम डालते हैं. कॉफरडैम लोहे का एक बड़ा सा ड्रम होता है जिसे उस जगह पर रखा जाता है जहां पिलर लगाना होता है. इससे पानी को कंट्रोल किया जाता है. जरूरत के मुताबिक इनका आकार गोल या चौकोर कुछ भी रख सकते हैं. इनका साइज पुल की लंबाई, चौड़ाई, पानी की गहराई ओर पानी के बहाव के आधार पर तय किया जाता है.


कैसे काम करते हैं कॉफरडैम
कॉफरडैम से पानी इसके आसपास से बह जाता है. उसके अंदर नहीं जाता. कॉफरडैम में भरे पानी को पाइप्‍स से बाहर निकाल लिया जाता है. जब इसके नीचे मिट्टी दिखाई देने लगती है तो काम शुरू होता है. फिर इंजीनियर्स सीमेंट, कंक्रीट और बार्स के जरिये मजबूत पिलर्स तैयार करते हैं. इसके बाद दूसरी साइट पर तैयार किए गए पुल के प्री-कास्‍ट स्‍लैब्‍स को लाकर पिलर्स पर सैट कर दिया जाता है.


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