Kumari Selja Factor In Haryana: हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे को देखकर कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है. 10 साल बाद सत्ता में वापसी की कोशिश में जुटी कांग्रेस के लिए एग्जिट पोल नहीं बल्कि काउंटिग की शुरुआत होने के कुछ घंटे बाद तक जीत की उम्मीद की जा रही थी हालांकि, बाजी जल्दी ही पलट गई और भाजपा ने लगातार तीसरी बार सरकार बनाने का रास्ता तय कर लिया. वहीं, कांग्रेस लगातार तीसरी बार सत्ता से दूर रहने पर मजबूर हो गई.


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हरियाणा में कांग्रेस के 'हाथ' आते-आते रह गई सत्ता


चुनाव आयोग की वेबसाइट के मुताबिक, कुल 90 विधानसभा सीटों वाले हरियाणा में सत्तारूढ़ भाजपा 51 सीटों पर आगे चल रही है. वहीं, कांग्रेस 34, इनेलो एक, बसपा एक और अन्य दल 4 सीटों पर आगे हैं. हालांकि, 'हाथ' आते-आते रह गई सत्ता के लिए कांग्रेस ने भरपूर कोशिश की थी, लेकिन अंदरखाने की गुटबाजी को कांग्रेस की उम्मीदों के डूबने की बड़ी वजह बताया जा रहा है. 


हरियाणा कांग्रेस के अंदरूनी दो कैंप में सियासी घमासान


हरियाणा कांग्रेस में चर्चित चार अंदरूनी कैंप में से एक की प्रमुख किरण चौधरी ने चुनाव से पहले कांग्रेस का हाथ छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया था. वहीं, भूपेंद्र सिंह हुड्डा का गुट शुरू से अंत तक पूरे चुनाव पर छाया रहा. रणदीप सिंह सूरजेवाला कैंप ज्यादातर खामोश रहा. वहीं, सिरसा लोकसभा सांसद कुमारी शैलजा के कैंप ने चुनाव के दौरान हुड्डा से दूरी बरकरार रखा. इसलिए, कांग्रेस के नुकसान के लिए शैलजा फैक्टर की ओर भी इशारा किया जा रहा है. 


कुमारी शैलजा के अपमान की दलील के जरिए दलित कार्ड


हरियाणा चुनाव के दौरान भाजपा ने शुरुआत से ही कांग्रेस में कुमारी शैलजा के अपमान की दलील के जरिए दलित कार्ड खेला. क्योंकि कांग्रेस में सीनियर महिला नेता और दलित समुदाय से आने वाली नेता को चाहने के बावजूद टिकट नहीं दिए जाने, उनके करीबियों को भी टिकट नहीं मिलने, पार्टी नेता की ओर से अपमानजनक बयान पर सफाई देने में देरी होने और समय पर सीएम फेस को लेकर बढ़े हुड्डा-शैलजा तनाव को कम नहीं किए जाने को भाजपा ने जमकर सियासी मुद्दा बनाया. 


कुमारी शैलजा को भाजपा ने दिया था साथ आने का न्योता


हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और मौजूदा केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने तो खुले मंच से कुमारी शैलजा को भाजपा में आने का न्योता दे दिया था. कांग्रेस की ओर से इसके पलटवार में काफी समय लग गया. शैलजा प्रचार अभियान के लिए बेहद कम बाहर निकलीं. आखिरकार, लोकसभा चुनाव में कुमारी शैलजा के जरिए दलित कार्ड भुनाने वाली कांग्रेस को विधानसभा चुनाव में कुमारी शैलजा फैक्टर के चलते ही भारी नुकसान उठाना पड़ गया. 


हरियाणा में संख्या बल में दूसरे नंबर पर दलित वोटर्स


हरियाणा में जातीय समीकरण देखें तो संख्या बल में दलित वोट दूसरे नंबर पर है. आबादी के लिहाज से जाट के बाद सबसे ज्यादा करीब 21 फीसदी दलित वोटर हैं. राज्य में 17 सीटें दलितों के लिए रिजर्व हैं. साथ ही  35 सीटों पर दलित मतदाताओं का काफी ज्यादा असर है. लोकसभा चुनाव में कांग्रेस गठबंधन को 68 फीसदी दलित वोट मिले थे. वहीं, भाजपा को महज 24 फीसदी दलित वोट मिले थे. 


कांग्रेस में शैलजा के साथ व्यवहार को भाजपा ने बनाया मुद्दा


कांग्रेस के संविधान और लोकतंत्र जैसे मुद्दे पर अपनी ही दलित और महिला नेता का सम्मान नहीं करने, लगातार अपमान करने के काउंटर नैरेटिव के जरिए भाजपा ने आक्रामक सियासी अभियान चलाया. चुनावी नतीजे के बाद यह कहा जा सकता है कि शैलजा फैक्टर ने हरियाणा में दलित वोट बैंक को कांग्रेस से दूर कर दिया. वहीं, भूपेंद्र सिंह हुड्डा के कोर वोट माने जाने वाले जाट वोटर्स को भी कांग्रेस के जीतने पर मुख्यमंत्री कौन बनेगा के सियासी मुद्दे पर कंफ्यूज कर दिया. 


शैलजा फैक्टर से कांग्रेस को लेकर जाट वोटर्स कंफ्यूज


बीच चुनाव में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाने की अफवाह हो, सीएम पद को लेकर हुड्डा से अदावत हो, आलाकमान के हवाले से अपनी बात कहनी हो या फिर गैर जरूरी लंबी निष्क्रियता कुमारी शैलजा हरियाणा चुनाव में चर्चा के केंद्र में रहीं. मतदान से पहले राहुल गांधी के मंच पर हुड्डा के साथ खड़े होने, एएनआई को इंटरव्यू देने और लगातार सीएम पद की दावेदारी से डैमेज कंट्रोल की जगह जाट समुदाय के वोटर्स के सामने असमंजस खड़ा कर दिया कि कांग्रेस के जीतने पर कहीं उन्हें मुख्यमंत्री न बना दिया जाए. 


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हरियाणा में जाट समुदाय की करीब 30 फीसदी आबादी


हरियाणा में आबादी में जाट समुदाय की लगभग 30 फीसदी हिस्सेदारी है. इस समुदाय को कांग्रेस और उसमें भी खासकर भूपेंद्र सिंह हुड्डा का वोट बैंक माना जाता है. हालांकि, भाजपा ने भी कई दिग्गज जाट नेताओं को अपने साथ जोड़कर जातीय संतुलन साधने की कोशिश की. इसी सिलसिले में कांग्रेस में कुमारी शैलजा को सीएम बनाए जाने की आशंका से जाट वोट बैंक का एक बड़ा हिस्सा से कांग्रेस से छिटककर भाजपा के साथ आ गया. वहीं, वोटों के कुछ हिस्से इनेलो और जजपा में भी बंट गए. 


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कंफ्यूजन में कांग्रेस को नहीं मिला जाटों का एकमुश्त वोट


हरियाणा में रोहतक, सोनीपत, कैथल, पानीपत, जींद, सिरसा, झज्जर, फतेहाबाद, हिसार और भिवानी जिले की करीब 4 लोकसभा क्षेत्र और लगभग 36 विधानसभा सीटों पर जाट वोटों का वर्चस्व होने की वजह से जाटलैंड कहा जाता है. 1966 में पंजाब से अलग होकर बने हरियाणा राज्य में 35 साल तक जाट समुदाय से ही मुख्यमंत्री रहे हैं. वहीं, इनके कुछ परिवार हमेशा से राजनीतिक दबदबा रखते आए हैं. इस बार कंफ्यूजन में जाटों का एकमुश्त वोट नहीं मिलने से भी कांग्रेस की नाव किनारे के पास डूबती दिख रही है.


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