Indira Gandhi And Sanjay Gandhi: उत्तर प्रदेश की अमेठी और रायबरेली लोकसभा सीट अक्सर सियासी सुर्खियों में बनी रहती है. गांधी परिवार की पारंपरिक सीट और अजेय गढ़ और दुर्ग वगैरह कही जाने वाली इन दोनों सीटों पर इस बार कांग्रेस उम्मीदवार को लेकर आखिर तक सस्पेंस बना रहा था. लोकसभा चुनाव 2024 में इनमें से एक सीट रायबरेली से राहुल गांधी किस्मत आजमा रहे हैं. पिछली बार वह अपनी अमेठी सीट गवां चुके हैं. 


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अमेठी और रायबरेली दोनों ही सीट पर एक साथ हार का सामना


हालांकि, इससे पहले भी गांधी परिवार और कांग्रेस अमेठी और रायबरेली दोनों ही सीट पर हार का सामना कर चुकी है. तब पूर्व प्रधानमंत्री और पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष इंदिरा गांधी और उनके बेटे संजय गांधी को एक साथ चुनावी शिकस्त मिली थी. आइए, किस्सा कुर्सी का में उस पूरे सियासी वाकए के बारे में जानते हैं कि आखिर क्यों इन दोनों दिग्गज नेताओं को मतदाताओं के जबर्दस्त गुस्से का सामना करना पड़ा था. 


देश में आपातकाल और नसबंदी अभियान से बिगड़ा माहौल
 
चुनाव में सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग के मामले में 1975 में अदालत के फैसले में इंदिरा गांधी की संसद की सदस्यता चली गई थी. इसकी प्रतिक्रिया में उन्होंने आनन-फानन में देश पर आपातकाल लागू कर दिया. भारतीय लोकतंत्र के इस दो साल तक चले काले अध्याय के दौरान विपक्ष के नेताओं का गिरफ्तारी, प्रेस पर सेंसरशिप और लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन जैसी दमन की तमाम कार्रवाइयां हुईं. इसी दौरान संजय गांधी ने नसबंदी अभियान चलाकर लोगों को खौफ से भर दिया था.


अमेठी में गांधी परिवार से चुनाव लड़ने वाले पहले शख्स


इमरजेंसी के दौरान सबसे ताकतवर नेता कहे जाने वाले संजय गांधी के इस प्लान से गांधी परिवार और कांग्रेस के लिए 'एक तो करेला तीखा दूजा नीम चढ़ा' जैसा साइड इफेक्ट हुआ. संयुक्त विपक्ष के आपातकाल विरोधी जन आंदोलनों ने रही-सही कसर पूरी कर दी थी. आपातकाल हटने के बाद 1977 में करवाए गए आम चुनाव में संजय गांधी ने इंदिरा गांधी की रायबरेली लोकसभा सीट के बगल वाली सीट अमेठी को अपने लिए चुन लिया. अमेठी सीट पर गांधी परिवार से चुनाव लड़ने वाले वह पहले शख्स थे.


1977 के आमचुनाव में कांग्रेस के सभी बड़े चेहरे हारे


हालांकि, इंदिरा गांधी को इस बात का अंदाजा था कि सियासत उनके लिए गलत मोड़ ले रही है. अमेठी में चुनाव प्रचार के दौरान संजय गांधी को स्थानीय लोगों और खासकर महिलाओं का गुस्सा झेलना पड़ा था. मेनका गांधी की मौजूदगी में संजय गांधी और कांग्रेस के खिलाफ नारेबाजी की गई थी. चुनाव नतीजे वाले दिन इंदिरा गांधी के आवास पर खाने की मेज पर बैठे पूरे परिवार के सामने सन्नाटा था. आरके धवन ने आकर बताया कि संजय गांधी चुनाव हार चुके हैं. इंदिरा गांधी हार की ओर बढ़ रही हैं. नतीजा सामने आया तो जनता पार्टी की लहर में कांग्रेस के तमाम बड़े चेहरे शिकस्त के मारे उतरे हुए थे.


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अमेठी में हार से शुरू हुआ था गांधी परिवार का रिश्ता


अमेठी में रवींद्र प्रताप सिंह ने संजय गांधी को करीब 75 हजार वोटों से हराया था. इसके तीन साल इसी सीट से संजय गांधी जीतकर संसद पहुंचे थे. हालांकि, इस तरह अमेठी से गांधी परिवार का पहला रिश्ता चुनाव हारने के साथ ही शुरू हुआ और 2019 में राहुल गांधी के हारने और वायनाड जाने के साथ लगभग खत्म हो गया. 2024 में गांधी परिवार का कोई उम्मीदवार अमेठी में नहीं है. 2004 से 2019 तक अमेठी के सांसद रहे राहुल गांधी इस बार बगल की रायबरेली सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार हैं.


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