Lok Sabha Chunav 2024: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वाराणसी लोकसभा सीट पर एक मिमिक्री आर्टिस्ट का नामांकन रद्द होने के बावजूद दो-तीन अजब-गजब कैंडिडेट बाकी हैं. यह पहली बार नहीं है, बल्कि लोकसभा चुनाव 2014 और 2019 में भी ऐसे कुछ उम्मीदवार चर्चा में रहे थे. हालांकि, वाराणसी सीट के अलावा भी कई अनोखे प्रत्याशी सामने आते रहे हैं.
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Strange Candidates: लोकसभा चुनाव 2024 में भी अजब-गजब उम्मीदवारों ने काफी सुर्खियां बटोरी हैं. वहीं, इनमें से कई लंबे समय से लोकतंत्र के महापर्व में अपनी भूमिका निभाते रहते तो कुछ आते-जाते रहते हैं. इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वाराणसी सीट पर जहां एक कॉमेडियन का नामांकन रद्द हो गया. वहीं, बदायूं के 70 वर्षीय एक उम्मीदवार का आखिरी बार चुनाव लड़ने का सपना टूट गया. हरि सिंह नाम के बुजुर्ग इससे पहले 9 बार विभिन्न चुनाव लड़कर हार चुके हैं.
पीएम मोदी के सामने कई अजब-गजब कैंडिडेट
इधर हॉट सीट वाराणसी में पीएम मोदी के सामने अजब-गजब कैंडिडेट के उतरने की एक वजह सुर्खियों में आना भी है. घोड़े पर होकर पहुंचे नामांकन करने विनोद कुमार यादव पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों पर चर्चा चाहते हैं तो जमीन पर बैठकर रोटी और प्याज खाते हुए नामांकन के लिए पहुंचे पूर्वांचल महापंचायत पार्टी के मिंटू सरकार से खफा होने के चलते चुनाव लड़ना चाहते हैं.
वाराणसी में 2014 के मुकाबले दोगुना नामांकन पत्र
वाराणसी में एक प्रत्याशी 'मैं जिंदा हूं' लिखा तख्ती गले में लटकाकर पहुंचा था. संतोष नाम के उम्मीदवार का कहना था कि कागजों में हमें मुर्दा घोषित किया जा चुका है. अब कागजों में जिंदा होने का प्रमाण हासिल करने के लिए चुनाव लड़ना चाहते हैं. राजस्थान और मध्य प्रदेश से भी कुछ उम्मीदवार वहां पहुंचे दिखे. साल 2014 में वाराणसी में 40 प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे. वहीं, 2019 में 26 प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा था. 2024 में 80 से ज्यादा लोग नामांकन पत्र ले चुके थे.
देश भर के ऐसे कुछ और कैंडिडेट के बारे में जानिए
किस्सा कुर्सी का में देश भर के ऐसे कुछ और कैंडिडेट के बारे में जानते हैं, जो सिर्फ हारने के लिए शौक से चुनाव में खड़े होते हैं और उनका मकसद बिल्कुल साफ होता है. उनमें से कई महज सुर्खियों में शामिल होने या सनक के लिए मैदान में उतरते हैं. वहीं, कई लोगों के पास मजबूत तर्क होते हैं जिनमें लोकतंत्र का पर्व, अपने मुद्दे, सरकार से सवाल और जनता तक अपना संदेश पहुंचाने की ललक होती है.
इलेक्शन किंग तमिलनाडु के के पद्मराजन -
तमिलनाडु के के पद्मराजन गर्व से खुद को "इलेक्शन किंग" कहते हैं. चुनाव मैदान में उतरने वाले वह इकलौते और अनोखे उम्मीदवार हैं जो लोगों से उन्हें वोट नहीं देने की अपील करते हैं, ताकि वह "सबसे असफल उम्मीदवार" होने का अपना टैग बरकरार रख सकें. उनका दावा है कि धूमधाम के बीच नामांकन दाखिल करने के खर्च के अलावा उनकी जमानत राशि में अब तक 80 लाख रुपये का नुकसान हुआ है.
उनकी उपलब्धि के बारे में लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड और गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी जिक्र है. अपने 239वें प्रयास के तौर पर 18वें लोकसभा चुनाव के लिए 60 साल के पद्मराजन ने केरल के त्रिशूर और तमिलनाडु के धर्मपुरी से अपना नामांकन दाखिल किया है. जयललिता, एम करुणानिधि, वाईएसआर रेड्डी और एके एंटनी जैसे पूर्व मुख्यमंत्रियों से लेकर फिल्मस्टार हेमा मालिनी और विजयकांत समेत तमाम बड़े लोगों के खिलाफ पद्मराजन चुनाव लड़ चुके हैं.
इंदौर के परमानंद तोलानी -
'इंदौरी धरती पकड़' के नाम से मशहूर परमानंद तोलानी अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं, जिन्होंने तीन दशकों तक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा था. 65 वर्षीय तोलानी ने बताया, "मेरे पिता का 1988 में निधन हो गया और मैं उनकी विरासत को आगे बढ़ा रहा हूं. मैंने अब तक आठ लोकसभा और आठ विधानसभा सहित 18 चुनाव लड़े हैं. मैं आगामी लोकसभा चुनाव भी लड़ूंगा. प्रॉपर्टी डीलर तोलानी ने कहा कि उनके पिता की इच्छा थी कि हमें इस लड़ाई को तब तक नहीं रोकना है जब तक कि परिवार से कोई चुनाव जीत न जाए. अगर तोलानी ऐसा नहीं कर पाते हैं तो उनकी दोनों बेटियां आगे कमान संभालेंगी.
पुणे के विजय प्रकाश कोडेकर -
पुणे के 78 वर्षीय विजय प्रकाश कोडेकर महाराष्ट्र बिजली बोर्ड के रिटायर कर्मचारी हैं. उनका निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने के पीछे शून्य बजट चुनाव अभियान की वकालत करने एजेंडा है. वह लातूर की सड़कों पर स्टील की गाड़ी को धक्का देते हुए लोकसभा चुनाव लड़ने की योजना बना रहे थे. उनके ठेले पर एक फ्लेक्स बोर्ड पर लिखा है "मैं भी प्रधानमंत्री." अब तक 24 चुनाव लड़ चुके ओशो के शिष्य कोडेकर अलग-अलग चुनावों के लिए अलग-अलग नाम का इस्तेमाल करते हैं.
"द पावर ऑफ द बैलट: ट्रैवेल एंड ट्रायम्फ इन द इलेक्शन" पुस्तक में निर्दलीय उम्मीदवारों के अजीब जुनून को दर्शाया गया है. चुनाव में कुछ स्वतंत्र उम्मीदवारों की कहानी के जरिए यह पुस्तक बताती है कि "कुछ लोग हर बार यह जानते हुए भी चुनाव क्यों लड़ते हैं कि वे हार जाएंगे?" इनमें से कुछ बेहतरीन मिसाल हैं.
हैदराबाद के तकनीकी विशेषज्ञ रविंदर उप्पुला - हैदराबाद के तकनीकी विशेषज्ञ रविंदर उप्पुला प्रत्येक लोकसभा चुनाव के लिए अलग-अलग प्रचार रणनीतियों का उपयोग करते हैं. 2014 में भ्रष्टाचार विरोधी मार्च निकाला और 2019 में उन्होंने उपवास किया था.
काका जोगिंदर सिंह, "धरतीपकड़" - काका जोगिंदर सिंह को "धरतीपकड़" के नाम से भी जाना जाता है. एक कपड़ा-दुकान के मालिक काका 300 से अधिक चुनाव लड़े और हारे. 1998 में उनका निधन हो गया था. उन्होंने हमेशा निर्दलीय चुनाव लड़ा और अपनी जमानत गवांई.
नरेंद्र नाथ दुबे "अडिग" - पीएम नरेंद्र मोदी की उम्मीदवारी सेकाफी पहले वाराणसी में नरेंद्र नाथ दुबे "अडिग" थे. काशी के धरतीपकड़ के रूप में जाने जाने वाले अडिग 1984 से हर चुनाव एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में लड़ते, हारते और अपनी जमानत गवांते रहे. साल 2022 में उनका निधन हो गया था.
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