Anujesh Yadav Vs Tej Pratap Yadav: समाजवादी पार्टी की परंपरागत सीट करहल में इसबार बीजेपी ने अखिलेश यादव के सामने बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है. सैफई परिवार की तरफ से तेज प्रताप यादव मैदान में हैं, जबकि बीजेपी ने अनुजेश यादव को प्रत्याशी बना दिया है. वो दूर के रिश्ते में अखिलेश के बहनोई लगते हैं. दोनों ताल ठोक रहे हैं कि इसबार तो परिवार ही आपस में उलझ पड़ा है. ऐसे में बीजेपी को फूट का कितना फायदा मिलने जा रहा है, चलिए जानते हैं.


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अनुजेश को बीजेपी ने दिया टिकट


क्या अखिलेश यादव अपने ही गढ़ में फंस गए? क्या करहल की सीट पर योगी की गुगली काम कर गई?  समाजवादी पार्टी का सबसे मजबूत गढ़ कही जाने वाली करहल विधानसभा सीट पर इसबार मुकाबला बेहद रोचक हो गया. वजह ये कि सैफई परिवार की तरफ से तेज प्रताप यादव के सामने बीजेपी ने अनुजेश यादव को प्रत्याशी बना दिया है. अनुजेश अखिलेश यादव के रिश्तेदार हैं. बीजेपी उम्मीदवार अनुजेश यादव एसपी सांसद धर्मेंद्र यादव के सगे बहनोई हैं.


अनुजेश की पत्नी और सांसद धर्मेंद्र यादव की बहन बेबी यादव मैनपुरी से जिला पंचायत अध्यक्ष भी रह चुकी हैं. वहीं अनुजेश की मां उर्मिला यादव भी विधायक रह चुकी हैं. यानी मुकाबला बेहद कड़ा है.दोनों ही जीत का दावा कर रहे हैं.


करहल विधानसभा में सबसे ज्यादा यादव मतदाता हैं, जिनकी तादाद 30 फीसदी है, यहां पर एसपी और बीजेपी दोनों के प्रत्याशी यादव वर्ग से हैं. इसके अलावा दो और उम्मीदवार भी यादव ही है. राजनीतिक विश्लेषक का दावा है कि इसबार यादव वोट कन्फूज हैं.


क्या है करहल का जातिगत समीकरण


जानकारों की माने तो बीजेपी ने अखिलेश यादव को फंसा दिया है.वोटों का समीकरण समझिए. करहल सीट पर यादव 30 फीसदी, शाक्य 15 फीसदी, ठाकुर 9 फीसदी, ब्राह्मण 6 फीसदी, लोधी 3 फीसदी, एससी 14 फीसदी, मुस्लिम 5 फीसदी और दूसरे और मतदाता 18 फीसदी हैं.


बीजेपी की रणनीति यादव वोट बैंक में सेंध लगाने की है. अगर यादव वोट बंटा तो अखिलेश के फंस जाएंगे. यही वजह है कि पार्टी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है.


क्या फंस सकता है मामला?


बीएसपी ने डॉक्टर अवनीश शाक्य को टिकट देकर मुकाबला त्रिकोणीय करने की कोशिश की है. अगर यादव वर्ग के मतदाता विभाजित हुए तो 15 फीसदी शाक्य और 14 फीसदी दलित वोट नया समीकरण बना सकते हैं. हालांकि लोगों का दावा है कि मुकाबला फूफा और भतीजे के बीच ही है.


दावे अपने-अपने लेकिन बीजेपी ने अखिलेश के सामन बड़ी चुनौती खड़ी जरूर कर दी है. 22 साल पहले एक बार ही इस सीट पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी.


अब वो इतिहास दोहराना चाहती है. अयोध्या की हार का बदला करहल की जीत के साथ लेने का बड़ा दांव बीजेपी ने चला है. हालांकि ये कहना जल्दबाजी होगी कि करहल के यादव मुलायम सिंह के बेटे का साथ छोड़ देंगे.