Madhur Bhandarkar Film: इंडिया लॉकडाउन का विषय कुछ उस तरह का है, जैसा आप निर्देशक मधुर भंडारकर की फिल्मों से उम्मीद करते हैं. काफी समय बाद उन्होंने यहां-वहां भटकने के बजाय अपने समय की नब्ज पर हाथ रखा है और बात कहने में कुछ हद तक सफल रहे हैं. कोरोना काल में देश में लगा लॉकडाउन ऐसी घटना है, जिसे लोग आने वाले कई वर्षों तक शिद्दत से याद रखेंगे. लॉकडाउन से जुड़ी हर घर की अपनी कहानी है और उनके पास भी कहानियां कम नहीं, जिन्हें इस लॉकडाउन ने बेघर कर दिया. जो कई-कई दिन और हफ्तों तक अपना घर कंधों पर लेकर मीलों पैदल चले. वे इसे जिंदगी भर भूल नहीं पाएंगे. मधुर की इंडिया लॉकडाउन उन्हीं दिनों में पांच लोगों को केंद्र में रख कर, उनकी जिंदगियां समानांतर दिखाती है. हालांकि इसमें तीन किरदार लगभग उच्चवर्ग से आते हैं, जिनकी जिंदगी कोरोना या लॉकडाउन से बड़े पैमाने पर सीधी प्रभावित नहीं हुई बल्कि फिल्म उनकी निजी जिंदगी को यहां दिखाती है.


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विविधता लॉकडाउन की
इंडिया लॉकडाउन में मधुर ने मुंबई की कहानी कही है. यहां एक तरफ वेश्यावृत्ति करने वाली मेहरू (श्वेता प्रसाद बसु) और सड़क किनारे चाट का ठेला लगाने वाले माधव (प्रतीक बब्बर) की दुनिया है. लॉकडाउन लगते ही जिनकी रोजी-रोटे के लाले पड़ गए. दूसरी तरफ नागेश्वर राव (प्रकाश बेलावड़ी), मून अल्वेस (आहना कुमरा) और देव (सात्विक भाटिया) हैं, जो बहुमंजिला इमारत के पॉश फ्लैटों में रहते हैं. इनकी परेशानियां निजी हैं. मधुर ने सारी कहानियों में संतुलन रखा है और अत्यधिक ड्रामा से बचे हैं. उनकी कोशिश रही है कि अपने अंदाज में सिर्फ सच को सामने रख दें. यूं तो तमाम किरदारों की कहानियां जानी-पहचानी लगती हैं लेकिन जिस तरह से कमाठीपुरा में वेश्यावृत्ति करने वाली लड़कियों के जीवन को मधुर ने दिखाया, वह चौंकाता है. यहां उन्होंने कुछ ऐसे दृश्य रचे हैं, जो परिवार के साथ लॉकडाउन काटने वालों को यह फिल्म सपरिवार देखने से रोकेंगे. हालांकि मुख्य किरदारों में एक प्रकाश बेलावड़ी की का ट्रेक छोड़ दें तो मधुर ने बाकी चारों कहानियों में सेक्स के सूत्र पिरोए हैं. इससे इंडिया लॉकडाउन की विविधता खो गई है और यह बात फिल्म को ऊंची उड़ान नहीं भरने देती.



उम्मीद की किरण
फिल्म में मेहरू गांव में रहने वाली अपनी मां से झूठ बोलती है कि वह मुंबई के अस्पताल में नर्स है. इसी ट्रेक में दलाल टीपू (सानंद वर्मा) किशोरवय तितली (चाहत तेवनी) का सौदा एक रसूखदार से करता है, जिससे लॉकडाउन में उसे अच्छी रकम मिलेगी. मेहरू के माध्यम से मधुर बताते हैं कि गरीबों ने मुश्किल दौर में भी इंसानियत नहीं खोई. जबकि जिनसे इंसानियत की उम्मीद थी, उनमें से कुछ हैवानियत में पीछे नहीं रहे. इसी तरह से माधव, उसकी पत्नी फूलमती (सई ताम्हणकर) और दो बच्चों का लॉकडाउन में लंबा पैदल सफर दिल को पिघलाता है. प्रतीक अपने अभिनय से कुछ दृश्यों में दिल को छूते हैं. माधव-फूलमती की कहानी के साथ नागेश्वर राव की कहानी को मधुर ने अच्छे से जोड़ा है परंतु यह थोड़ा फिल्मी भी लगता है.


एक महानगर की कहानियां
आहना कुमरा, सात्विक भाटिया और जरीन शिहाब की कहानी पूरी तरह से मॉडर्न इंडिया को दिखाती है. यह मुंबई का एक चेहरा है. हालांकि इस कहानी में मधुर ने रिलेशनशिप को नैतिकता की डोर से बांध दिया है. जबकि आम तौर पर वह अपने सिनेमा को ऐसी बातों से प्रभावित नहीं होने देते. इसमें संदेह नहीं कि इंडिया लॉकडाउन मधुर की पिछली फिल्म बबली बाउंसर से कहीं बेहतर हैं. यह उनके फैन्स के लिए राहत की बात है. यह एक महानगर की कहानियां हैं और इनमें पूरा भारत नहीं है. इसके बावजूद फिल्म उन दिनों से रू-ब-रू कराती है. सभी ऐक्टरों का काम अच्छा है मगर प्रकाश बेलावड़ी अलग निखरते हैं, जबकि उन्हें अपनी कहानी में किसी अन्य कलाकार का सपोर्ट नहीं है. आहना कुमरा ने अपने किरदार को अच्छे ढंग से निभाया है और सात्विक भाटिया की मुस्कान आकर्षित करती है. श्वेता प्रसाद बसु यहां निःसंदेह सबसे बोल्ड और सबसे अलग हैं. आप उन्हें नजरअंदाज नहीं कर पाएंगे. अगर आप बगैर ड्रामाई अंदाज से भरे, लॉकडाउन के दिनों की झलक देखना चाहते हैं तो मधुर भंडारकर की यह फिल्म निराश नहीं करेगी.


निर्देशकः मधुर भंडारकर
सितारेः प्रतीक बब्बर, श्वेता प्रसाद बसु, सई ताम्हणकर, प्रकाश बेलावड़ी, आहना कुमरा, सात्विक भाटिया, सानंद वर्मा
रेटिंग ***


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