Jawan Review: फैन्स के कंधों पर शाहरुख ने डाली बड़ी जिम्मेदारी, मनोरंजन के साथ दिया मैसेज का भी प्रसाद
Jawan Film Review: फिल्म क्यों देखेंॽ किसी फिल्म को देखने से पहले दर्शक यह जरूर सोचते हैं. शाहरुख खान (Shah Rukh Khan) की जवान के लिए थिएटर में जाने से पहले भी आपको सोचना चाहिए. इस फिल्म में मनोरंजन है, तो मैसेज भी मिलेगा. ज्यादा डीटेल में जानना है, तो फिर यह रिव्यू पढ़ें...
Jawan Movie Review: शाहरुख खान फैन्स से ‘मन की बात’ (Mann Ki Maat) कर रहे हैं. मगर यह बात फैन्स को कनफ्यूज कर सकती है. शाहरुख से एंटरटेनमेंट लें या फिर जवान में दिया गया मैसेज. सिनेमा से क्रांति नहीं आती, यह बात खुद सिनेमावाले मानते हैं. लेकिन शाहरुख की यह फिल्म वर्तमान दौर में बदलाव करने के लिए खड़े होने का आह्वान करती है. भ्रष्टाचार के खिलाफ. अराजकता के खिलाफ. नेताओं की मनमानी के खिलाफ. सत्ता और बिजनेसमैनों के गठजोड़ के खिलाफ. रोचक बात है कि एक समय में पर्दे पर राजनीति और अपराधी एक पाले में होते थे. जनता और उसके हीरो दूसरे पाले में. आज राजनीति और बिजनेसमैन हाथ मिलाए खड़े हैं. जवान का हीरो अपील करता है कि लोग उनके खिलाफ उठकर खड़े हों.
सही उंगली की अपील
जवान जिस अंदाज में शुरू होती है, वह रोचक लगता है. लेकिन कुछ देर बाद आपको 2014 में आई फिल्म उंगली (Film Ungli) की याद आने लगती है. रंग दे बसंती (Rang De Basanti) जैसी फिल्म के राइटरों में शामिल रेंसिल डिसिल्वा की इस फिल्म में इमरान हाशमी, कंगना रनौत (Kangna Ranaut), रणदीप हुड्डा, अंगद बेदी और नेहा धूपिया के साथ संजय दत्त (Sanjay Dutt) थे. फिल्म ऐसे स्मार्ट पुलिस अफसर (संजय दत्त) की कहानी थी, जो युवाओं के एक गैंग के पीछे लगा है. यह गैंग नकाब पहनकर समाज-सत्ता के भ्रष्टाचारियों को सबक सिखाता है. गैंग का नाम है, उंगली. जवान में रूप बदलकर शाहरुख भ्रष्टाचारियों को सबक सिखाने वाले गैंग के लीडर हैं. जबकि नयनतारा वह पुलिस अफसर, जो गैंग के पीछे है. उंगली की याद तब हकीकत में बदल जाती है, जब शाहरुख एक सीन में पूरे स्क्रीन पर छाते हुए लगभग भाषण देते हैं कि जब आप हर छोटी-मोटी चीज खरीदते हुए उंगली करते हैं यानी बाल की खाल निकालकर जानकारी लेते हैं, तो वोट देने से पहले क्यों ऐसा नहीं करते. वहां सही उंगली कीजिए.
फिल्म का एंगल
जवान मनोरंजन के संग मैसेज अपने साथ ले जाने की जिम्मेदारी दर्शकों पर डाल देती है. सवाल यह कि कितने लोग इस गंभीरता के लिए फिल्म में आते हैंॽ जो शाहरुख के नाम पर शुद्ध मनोरंजन के इरादे से उनकी फिल्म देखते हैं, उन्हें ये बातें हजम करने में जरा मुश्किल होगी. वास्तव में निर्देशक एटली की यह फिल्म दो विपरीत छोरों पर साथ चलती है. एक तरफ तो वह किसानों की आत्महत्या, सरकारी अस्पतालों की बेहाली, हर तरफ भ्रष्टाचार, पूंजीपतियों की सत्ता पर पकड़ और सत्ताधारियों की अकड़ जैसे बेहद गंभीर मुद्दों को उठाती है. दूसरी तरफ वह तर्कों को ताक पर रखते हुए ऐसे सीन गढ़ती है कि लगता है कि उन्हें यह मानते हुए लिखा-रचा गया कि दर्शक के पास बुद्धि नहीं है. वह दिमाग बाहर छोड़कर शाहरुख को देखने आएगा.
पहले बाप से बात
फिल्म में शाहरुख का डबल रोल (Shah Rukh Khan Double Role) है. एक में वह विक्रम सिंह राठौड़ हैं, तो दूसरे में आजाद. विक्रम सेना में था और उसे हथियारों के सौदागरों ने देशद्रोही घोषित करा दिया. वहीं आजाद एक जेलर है. करीब 12 साल से महिला कैदियों (Women Jail Prisoners) की एक जेल की व्यवस्था संभाल रहा है. इस जेल की महिला कैदी कपड़े सीने से लेकर प्रोस्थेटिक्स बनाती हैं, जिनसे जेल के बाहर दूसरों की जिंदगी को संबल मिले. इन्हीं में छह पढ़ी-लिखी हाई-टेक युवतियां हैं, जिन्हें लेकर आजाद ने गैंग बना रखा है, जो भ्रष्टाचारियों को सबक सिखाता है. आजाद अपनी पहचान छुपाता है और विक्रम सिंह राठौर के नाम से भ्रष्टाचारी नेताओं के खिलाफ लड़ते हुए पूरे देश में टीवी-मोबाइल पर लाइव नजर आता है. इंटरवेल से ठीक पहले विक्रम की एंट्री होती है, जो बाद में यह डायलॉग बोलता हैः बेटे को हाथ लगाने से पहले, बाप से बात कर.
खलनायक का कद
शाहरुख ने दोनों भूमिकाओं में अपना काम अच्छे से किया है. लेकिन सीनियर शाहरुख की भूमिका कई मौकों पर गढ़ी हुई लगती है. उसमें सहजता नजर नहीं आती. इसी तरह से निर्देशक ने बार-बार शाहरुख का लुक बदलने पर खूब ध्यान दिया है. वह लुक से चौंकाने की कोशिश करते हैं. पूरी फिल्म शाहरुख के आस-पास घूमती है. इससे सिर्फ दो ही लोगों को कुछ ठीक जगह मिल पाई. नयनतारा (Nayanthara) और विजय सेतुपति (Vijay Sethupati). नयनतारा अपने रोल में अच्छी लगी हैं और हथियारों के चालाक सौदागर बने विजय सेतुपति की खलनायकी की भी बढ़िया है. बावजूद इसके यह कहना होगा कि यह खलनायक देखने वालों के मन में खौफ नहीं पैदा कर पाता. बॉलीवुड में खलनायकी (Bollywood Villains) करने वाले लगभग खत्म हो चुके हैं. साउथ में विजय सेतुपति की खोज के साथ भी यह तलाश पूरी होती नहीं दिखती. दीपिका पादुकोण (Deepika Padukone) और संजय दत्त के कैमियो निराश करते हैं. सान्या मल्होत्रा, प्रियामणि, सुनील ग्रोवर जैसे ऐक्टर शाहरुख के आभामंडल में छुप जाते हैं. उनके हिस्से ढंग के दो संवाद तक नहीं आए.
एंटरटेनमेंट एंटरटेनमेंट एंटरटेनमेंट
फिल्म में एक्शन और रोमांस दोनों है. पहले हिस्से में एक्शन की जो कमी महसूस होती है, उसकी भरपाई दूसरे हिस्से में हो जाती है. कैमरावर्क बढ़िया है. लेकिन म्यूजिक के मामले में कमी खटकती है. जैसा कि ज्यादातर बॉलीवुड फिल्मों में होता है, राइटिंग डिपार्टमेंट कमजोर रह जाता है. वही जवान के साथ है. फिल्म चूंकि दो स्तरों पर चलती है, इसलिए थिएटर में जाने से पहले तय कर लीजिए कि दिमाग साथ रखकर शाहरुख द्वारा उठाए मुद्दों पर सोचें या बिना सोचे-समझे जाएं और सिर्फ एंटरटेन होकर बाहर आएं. दोनों स्तरों पर समस्या है. फिल्म में उठाए मुद्दों पर गंभीरता से न सोचें, अमल न करें तो फिल्म बनाना ही बेकार गया और अगर मुद्दों पर ध्यान लगाया तो एंटरटेनमेंट में खलल पड़ता है. बेहतर यही है कि आप इन दो बातों को छोड़िए और इस तीसरी बात पर गौर कीजिए. फिल्में सिर्फ तीन चीजों की वजह से चलती है... एंटरटेनमेंट एंटरटेनमेंट एंटरटेनमेंट. सिनेमा की प्राथमिकता यही है.
निर्देशकः एटली
सितारे: शाहरुख खान, नयनतारा, विजय सेतुपति, दीपिका पादुकोण
रेटिंग***