Adaptation Of Forrest Gump 2022: गोलगप्पे का मजा लेने के लिए सिर्फ मैदे या आटे की छोटी-छोटी गोल पूरी से बात नहीं बनती. मसालेदार पानी, चटनी, पुदीना, इमली, आलू, बूंदी, खटाई और भी बहुत कुछ चाहिए स्वाद के लिए. आमिर खान की लाल सिंह चड्ढा सिर्फ करारी पूरी है. बाकी स्वाद की चीजें इसमें गायब है. पौने तीन घंटे की बहुत धीमी और लंबी फिल्म, जो दर्शक के धीरज की कड़ी परीक्षा लेती है और अंततः उबा देती है. आज जब भागदौड़ भरी जिंदगी में लोगों को ढंग से सांस लेने की फुर्सत नहीं है, लोग जी-जान से मेहनत करके भी पिसे जा रहे हैं, ठीक से अपनी और परिवार की जरूरतें पूरी नहीं कर पा रहे, आमिर खान एक ऐसे आदमी की कहानी लाए हैं, जो लभगभग मंदबुद्धि है लेकिन किस्मत कहिए या चमत्कार, वह हंसते-मुस्कराते जिंदगी में सब कुछ पाता चला जाता है. आमिर खान के नाम पर एक अच्छी फिल्म की उम्मीद लेकर जाने वाले को यही लगता है कि गोलगप्पा मुंह तक आते-आते फच्च से फूट गया.


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सौ साल की यात्रा
कोई भी फिल्म सिर्फ एक्टर की अच्छी एक्टिंग के लिए नहीं देखी जा सकती है. हॉलीवुड में फॉरेस्ट गंप को बने 28 साल हो चुके हैं. दुनिया की कहानियां बहुत बदल चुकी हैं. लेकिन बॉलीवुड के मेकर्स को लगता है कि हिंदुस्तानी दर्शक का मानसिक विकास नहीं हुआ. लाल सिंह चड्ढा (आमिर खान) की मां उसे नाना-परनाना के किस्सों में पीछे प्रथम विश्वयुद्ध (1914-18) तक ले जाती है. जबकि लाल की जिंदगी अबकी बार मोदी सरकार (2014) तक आती है. लगभग सौ साल के दौर को फिल्म में दिखाने की कोशिश की कोई तुक नजर नहीं आती. वास्तव में यह पूरी शताब्दी पर्दे पर कहीं भी गहराई से नहीं दिखी है. कारगिल युद्ध के प्रकरण को छोड़ दें तो ऐसा लगता है कि लाल सिंह चड्ढा एक व्यक्ति है, जिसकी जिंदगी पर बना कोई डॉक्युड्रामा आप देख रहे हैं. उसमें आने वाली बड़ी घटनाएं बस, कहने के लिए यहां दर्ज की गई हैं. वह भावनात्मक रूप से आपको किसी स्तर पर नहीं छूती हैं.


मम्मी कहती हैं
लाल सिंह चड्ढा की एक बड़ी समस्या यह है कि इसमें आमिर खान का जोर कहानी सुनाने पर ज्यादा है, दिखाने पर कम. जहां-जहां घटनाएं दिखाई जा रही हैं, वहां भी आमिर दर्शक को मामला समझा रहे होते हैं. जैसे आप उसे देखकर समझ नहीं सकते. एक्टिंग के मामले में आमिर यहां थ्री इडियट्स और पीके की तरह आंखें चौड़ी करके, हर पल चौंकते हैं या बात-बात पर मुस्करा देते हैं. उनका नया रूप नहीं दिखता. हां, सरदारजी के रूप में जरूर वह स्मार्ट और अलग दिखे हैं. लाल सिंह चड्ढा की कहानी भले ही भावुक करे, लेकिन इसका स्क्रीन प्ले बहुत धीमी गति से चलता है. लाल सिंह की बातों में दोहराव हैं. चाहे हर बार मम्मी कहती हैं वाली बात हो या फिर बार-बार रूपा (करीना कपूर खान) का उसकी जिंदगी में आना-जाना.



कहानी रिटायर है
फिल्म की कहानी यह है कि लाल सिंह चड्ढा एक बच्चा है, जो पंजाब के एक छोटे शहर में रहता है. वह चीजों को बहुत धीमी गति से समझता है. लेकिन मां (मोना सिंह) लगातार उसे समझाती है कि वह किसी से कम नहीं. बचपन में लाल सिंह चड्ढा अपने पैरों में लगे ब्रेसेस के सहारे चल पाता है. बचपन में ही उसे स्कूल में रूपा डिसूजा से प्यार हो जाता है और वह पूछता है क्या वह उससे ब्याह करेगी. लेकिन एक टूटे हुए परिवार की रूपा को जिंदगी में खूब पैसा कमाना है. मुंबई जाकर हीरोइन बनना है. लाल बहुत तेज दौड़ता है और नाना-परनाना की तरह आर्मी में भर्ती हो जाता है. कारगिल युद्ध में हिस्सा लेकर वह अपने पांच सिपाहियों की जान बचाता है. उसे राष्ट्रपति के हाथों वीरता पुरस्कार मिलता है. वहां से रिटायर होकर वह घर लौटता है. अब उसे रूपा का इंतजार है. इस बीच सेना में मिले दोस्त बाला (नागा चैतन्य) और पाकिस्तानी आतंकी मोहम्मद भाई (मानव विज) का भी ट्रेक बीच में आता-जाता है. क्या अंत में लाल की जिंदगी में रूपा लौटेगी? क्या वह हीरोइन बन पाएगी? इन सवालों के जवाब कहानी देती है.


मोहम्मद भाई कौन है
लाल सिंह चड्ढा पहले हिस्से में तो ठीक है, लेकिन दूसरा हिस्सा तमाम बातों को खींचता चला जाता है. इसमें संदेह नहीं कि कई जगहों पर आमिर की एक्टिंग बहुत शानदार है. बाला के सेना से रिटायर होकर चड्डी-बनियान बेचने की योजना का ट्रेक भी हल्का-फुल्का-कॉमिक है मगर मोहम्मद भाई की कहानी गले उतारना मुश्किल होता है. पाकिस्तानी सेना या आतंकवादी संगठन की तरफ से कारगिल में लड़ रहे इस आदमी को लाल बचाता है. मगर उसका कोई रिकॉर्ड सेना या सुरक्षा बलों के पास नहीं है. अस्पताल से छुट्टी होने के बाद वह खुला घूमता है और मुंबई में रहता है. लाल सिंह उसके साथ मिलकर चड्डी-बनियान का बिजनेस करता है और दोनों इतने बड़े आंत्रप्रेन्योर बन जाते हैं कि एक नेशनल पत्रिका के कवर पर छपते हैं. फिर एक दिन मोहम्मद भाई वापस पाकिस्तान भी लौट जाता है. कई मिनटों तक देश की सड़कों पर बेवजह दौड़ते लाल सिंह का लंबा दृश्य कहानी में कोई पते की बात नहीं कहता.


थोड़ा दर्शन, थोड़ा इमोशन
कहानी में न ठीक ढंग से रोमांस है, न कॉमेडी और न एक्शन. इमोशन भी ऊंचाई तक नहीं ले जाते. करीना कपूर फिल्म के आखिरी दृश्यों में अच्छी लगी हैं, जबकि बाकी दृश्यों में बेहत औसत. कहानी में वह बीच-बीच में आती-जाती हैं. उनके जीवन का द्वंद्व ढंग से नहीं उभरता. निर्देशक अद्वैत चंदन के बारे में कह सकते हैं कि वह सिनेमा की कला जानते हैं, लेकिन अपने समय की कहानी का चयन करने में चूक गए. फॉरेस्ट गंप का हिंदी रूपांतरण अतुल कुलकर्णी ने किया है. उन्होंने कथा-पटकथा में कसावट का ध्यान नहीं रखा. यह फिल्म की बड़ी कमजोरी है. टाइटल गीत ‘कहानी’ जीवन दर्शन से भरा और सुनने में अच्छा है. जबकि बाकी संगीत कुछ खास नहीं है. पूरी फिल्म के संवादों का टोन ठेठ पंजाबी है. हालांकि आप उन्हें आसानी से समझ सकते हैं. कुल मिलाकर लाल सिंह चड्ढा ऐसी फिल्म नहीं है, जिसमें आपको अपना समय दिखाई दे. वह आमिर खान भी यहां नजर नहीं आते, जो एंटरटेनर हैं. जो हंसाते-रुलाते गंभीर बात कह जाते हैं.
 


निर्देशकः अद्वैत चंदन
सितारेः आमिर खान, करीना कपूर खान, मोना सिंह, नागा चैतन्य, मानव विज
रेटिंग **1/2


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