Horror Comedy: न हॉरर और न कॉमेडी. फोन भूत में आपको दोनों ही बातें नहीं मिलती. उस पर आखिर में यह और कहा जाता है कि सीक्वल बनेगा तो जरूर देखिएगा. लेकिन मुद्दा यह कि जब फिल्म में न कहानी, न किरदार, न कोई लॉजिक, न कोई फैंटेसी है, तो दर्शक क्यों इसे देखेॽ ऐसी फिल्म का सीक्वल हुआ भी, तो उसमें क्या बनेगाॽ निर्माता-निर्देशक-लेखक को यह बताना चाहिए. हाल के दिनों में ऐसा लगने लगा है कि बॉलीवुड ने अब वीएफएक्स को ही सिनेमा समझ लिया है. उसे लगता है कि बस चीजें हवा में उड़ा दो, लोग देखने आएंगे. सच यह है कि ऐसी फिल्म बनाने वालों की सोच और कल्पना के पास पंख नहीं हैं. वीएफएक्स तभी काम कर सकता है, जबकि आपके पास एक जादुई दुनिया का ईमानदार आइडिया हो. न कि हॉलीवुड फिल्मों से उड़ा दिए गए सीन और आइडिये.


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तीन लाइन की कहानी
फोन भूत में गुल्लू (ईशान) और मेजर (सिद्धांत चतुर्वेदी) नाम के दो निकम्मे-निठलल्ले लड़कों (सिद्धांत चतुर्वेदी-ईशान) को रागिनी (कैटरीना कैफ) नाम की एक भूतनी दिखने लगती है. वह आइडिया देती है कि मेरे साथ मिलकर काम करो. मैं भूत बनकर किसी को परेशान करूंगी और तुम उसे भूत से मुक्त करना. पैसे कमाना! बदले में भूतनी चाहती है अपने भूत आशिक के लिए मोक्ष. जिसे एक तांत्रिक आत्माराम (जैकी श्रॉफ) ने कैद कर रखा है. फिल्म बनाने के लिए तीन लाइन की कहानी लिखने से आगे भी प्रतिभा की जरूरत पड़ती है, परंतु बॉलीवुड यह नहीं मानता. राइटिंग डिपार्टमेंट का पैसा बचाया जाता है और समझा जाता है कि बॉक्स ऑफिस पर पैसों की बारिश होगी. जनता सिनेमाघरों में टूट पड़ेगी. फोन भूत बेसिर-पैर की कहानी होने के साथ हर डिपार्टमेंट में कमजोर है. सबसे पहले तो लिखने वालों ने ऐसे लिखा है, जैसे कहानी नहीं एक आइडिये पर अलग-अलग टुकड़े लिख रहे हैं. संवादों को चुटीला बनाने के नाम पर पुरानी फिल्मों और गानों के रेफरेंस डाले गए हैं. जैसे स्पूफ. यह घिसा हुआ फार्मूला है.


ये है फिल्म का लेवल
फिल्म के तीन लीड एक्टरों में से एक भी प्रभावित नहीं करता. एक की भी कॉमिक टाइमिंग और रिएक्शन गुदगुदा नहीं पाते. हालांकि कहा यह गया था कि सिद्धांत-ईशान की जोड़ी फिल्म अंदाज अपना अपना (1994) वाले सलमान-आमिर खान वाला जादू पैदा करेगी. फिल्म खत्म होने पर यह बात सोच कर जरूर हंसी आती है कि यह कॉमेडी है! ईशान ने इससे पहले इक्का-दुक्का फिल्मों में अच्छा परफॉर्म किया है लेकिन यहां वह फीके हैं. जबकि सिद्धांत किसी स्तर पर अभी तक चमक नहीं छोड़ सके हैं और यहां भी उनका वही हाल है. कैटरीना कैफ हर फिल्म की तरह ही यहां दिखी हैं. उन्हें देख कर फिल्म के दोनों नायकों को विश्वास नहीं होता कि वह भूत हैं, आप भी भरोसा नहीं कर सकेंगे कि वह भूतनी का रोल निभा रही हैं. कहीं-कहीं ईशान को छोड़ दें तो बाकी कोई एक्टर अच्छे अभिनय की कोशिश करता भी नजर नहीं आता. कहानी और एक्टिंग के स्तर पर फिल्म बहुत निराश करती है.



कच्चे हाथों का काम
फोन भूत को वीएफएक्स के सहारा खड़ा किया गया है, लेकिन यह भी बहुत कमजोर और कई जगहों पर बचकाना साबित होता है. ऐसा लगता है कि आप टेलीविजन का कोई सीरियल देख रहे हैं. चाहे दोनों लड़कों के सबसे पहली बार एक लड़की को भूत से आजाद करने का सीन हो या फिर क्लाइमेक्स में उड़ते हुए भूत या फिर तांत्रिक के पाताल की आग में गिरने का सीन, सब कुछ कच्चे हाथों से किया गया काम लगता है. सैट जरूर यहां अच्छे ढंग से डिजाइन किए गए हैं और कुछ दृश्यों में आर्ट डायरेक्टर का काम भी उभर कर आता है. भूतों के नाम पर हेलोवीन के डरावने चेहरे दिखाए गए हैं. ऐसा लगता है कि यह फिल्म भूतों की दुनिया नहीं, हेलोवीन की पार्टी है. फिल्म के गीत-संगीत में कहीं जान नहीं है.


फोन पर एंटरटेनमेंट
फोन भूत इतना निराश करती है कि फिल्म देखते हुए बीच-बीच में अपना फोन को चैक कर लेना ज्यादा मनोरंजक लगता है. निर्देशक गुरमीत सिंह यह कोशिश करते नजर आते हैं कि वह कहानी और किरदारों पर नियंत्रण रखने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उनकी हर कोशिश बेकार जाती है. फिल्म की एडिटिंग में कसावट नहीं है. जबकि कुछ दृश्य सिर्फ भर्ती के दिखते हैं. ऐसे में अगर आप हॉरर या कॉमेडी फिल्मों में से किसी के भी शौकीन हैं, तो फोन भूत से बेहतर कहानियां आपको ओटीटी और टीवी पर मिलेंगी.


निर्देशकः गुरमीत सिंह
सितारेः कैटरीना कैफ, ईशान, सिद्धांत चतुर्वेदी, जैकी श्रॉफ
रेटिंग *1/2