The Great Indian Family Movie Review: ऐसे दौर में जबकि भारतीय परिवार सिंगल होकर सिमटते चले जा रहे हैं, समाज में हिंदू-मुसलमान चल रहा है; लेखक-निर्देशक विजय कृष्ण आचार्य इन दोनों बातों को चुनौती देने वाली फिल्म लाए हैं. मगर समस्या तब आती है जब फिल्म आपको ‘दिखाने’ के बजाय ‘सिखाने’ लग जाती हैं. द ग्रेट इंडियन फैमिली में तब उथल-पुथल मचती है, जब पता चलता है कि पंडित वेद व्यास त्रिपाठी उर्फ बिल्लू उर्फ भजन कुमार (विक्की कौशल) पैदाइशी मुस्लिम है, मगर उसे पंडित सियाराम त्रिपाठी (कुमुद मिश्रा) ने अपने बच्चे की तरह पाला. यह फिल्म का केंद्रीय आइडिया है, बाकी चीजें इस बात के चारों तरफ बुनी गई है. लेकिन जैसे-जैसे बातें खुलती हैं, कसावट ढीली होने लगती हैं.


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बातें धर्म-कर्म की
साल 2007 में निर्देशक भावना तलवार की फिल्म आई थी, धर्म. जिसमें कट्टर ब्राह्मण पुजारी पंडित चतुर्वेदी (पंकज कपूर) की पत्नी एक अनाथ दुधमुंहे बच्चे को घर में पाल लेती है. पंडित नाराज होता है, मगर धीरे-धीरे बच्चे को अपना लेता है. बच्चे से उसका दिल लग जाता है. लेकिन उसे तब जबर्दस्त झटका लगता है, जब बच्चे का धर्म मालूम पड़ता है. बच्चा मुस्लिम है. इसके बाद भी यहां बहुत कुछ होता है और फिल्म इंसानियत को सबसे ऊंचे धर्म के रूप में स्थापित करती है. फिल्म को नर्गिस दत्त राष्ट्रीय अवार्ड मिला था. द ग्रेड इंडियन फैमिली अपने अंदर बुने हुए इंसानियत के मैसेज के बावजूद खास असर नहीं छोड़ती और अपने मकसद में नाकाम रहती है.


बढ़ा हुआ संकट
ऐसा नहीं है कि जो बात द ग्रेट इंडियन फैमिली कह रही है, उसकी आज जरूरत नहीं है. मगर कहानी की बुनावट और फिल्म की मेकिंग में यह रूटीन बॉलीवुड ड्रामा बन जाती है. फिल्म देखकर लगता है कि आप इसके परिवेश को छोड़ दें, ड्रामा-डायलॉग्स में चालीस-पचास साल पीछे की बातें हो रही हैं. पूरी कहानी भजन कुमार आपको सुना रहा है. उसके संयुक्त परिवार में मां-पिता, चाचा-चाजी, बुआ-बहन की बातों के साथ यह भी सामने आता है कि कैसे बलरामपुर नाम के शहर के सबसे प्रतिष्ठित पंडित परिवार में एक चिट्ठी से संकट पैदा हो जाता है, जो बताती है कि स्टार भजन सिंगर भजनकुमार पैदाइश से मुसलमान है. परिवार के सामने संकट इसलिए बड़ा हो जाता है कि उसके मुखिया पंडित सियाराम त्रिपाठी मार्गदर्शन के लिए नहीं हैं. वह तीर्थयात्रा के लिए गए हुए हैं. जब तक त्रिपाठीजी लौटते नहीं, तब तक कई बातें अधर में लटकी रहती हैं.


मानुषी क्या करें
लेखक-निर्देशक ने इस फैमिली ड्रामा को फिल्मी रंग देने के लिए त्रिपाठी परिवार के मुकाबले में एक अन्य पंडित परिवार के रूप में यशपाल शर्मा और उनके बेटे (आसिफ खान) को रखा है. फिल्म में टकराव का ड्रामा शहर के एक रसूखदार परिवार में पंडिताई से होता है और कहानी के सिरे खुलते जाते हैं. जिसमें आगे चलकर हिंदू-मुसलमान पर काफी बातें होती हैं. फिल्म की हीरोइन पंजाबी है, जिससे भजनकुमार को प्यार हो जाता है. जसमीत (मानुषी छिल्लर) भी कहानी में हीरो तथा उसके दोस्तों को धार्मिक सद्भाव पर काफी कुछ सबक सिखाती है. समस्या यह है कि मानुषी छिल्लर के हिस्से कहानी में ऐसा ग्राफ नहीं आया, जो ऊपर की ओर बढ़ता है. न ही विक्की कौशल के साथ उनकी जोड़ जमती है.



नो रिस्क, नो गेन
द ग्रेट इंडियन फैमिली आखिर में संयुक्त परिवार के हक में बात करती है कि कुछ हो जाए, अंत में रिश्तों के जोड़ कभी टूट नहीं सकते. भारत विविधताओं से भरा हुआ, एक विशाल संयुक्त परिवार है. जिसमें हिंदू-मुस्लिम-सिख-ईसाई-पारसी सभी भाई-भाई हैं. विजय कृष्ण आचार्य करीब पांच साल बाद लौटे हैं. इससे पहले उन्होंने ठग्स ऑफ हिंदुस्तान बनाई थी, जो बड़ी फ्लॉप थी. वह धूम सीरीज की फिल्में लिख चुके हैं. द ग्रेट इंडियन फैमिली में वह गंभीर बातों को सामने रखते हुए कॉमेडी पैदा करने की कोशिश करते हैं. कुछ सीन उन्होंने सिर्फ हंसाने के लिए रखे हैं, परंतु हंसी नहीं आती. गंभीर मुद्दा उठाकर आचार्य ने उसे हल्के हाथ से खेला है. रिस्क नहीं लिया. नतीजा यह कि फिल्म से कुछ खास हासिल नहीं होता. जबकि इस आइडिये पर वह आज के समय की महत्वपूर्ण फिल्म बना सकते थे.


थोड़ा इंतजार
फिल्म कुछ हद तक अगर देखने योग्य बनती है तो इसके एक्टरों की वजह से. विक्की कौशल का काम अच्छा है, मगर यह भी दिखता है कि उनकी अपनी सीमाएं हैं. कुमुद मिश्रा, मनोज पाहवा और यशपाल शर्मा ने अपनी-अपनी भूमिकाएं बढ़िया ढंग से निभाई हैं और विक्की कौशल को अच्छा सपोर्ट दिया है. फिल्म में ‘भजनकुमार’ की मौजूदगी के कारण कर्णप्रिय म्यूजिक का काफी स्कोप था, लेकिन निर्देशक मौके का फायदा नहीं उठा सके. 112 मिनिट की इस फिल्म को थिएटर में देखना चाहें तो आपकी इच्छा, मगर ओटीटी पर इंतजार करने में भी कुछ बुराई नहीं है.


निर्देशकः विजय कृष्ण आचार्य
सितारे: विक्की कौशल, मानुषी छिल्लर, मनोज पाहवा, कुमुद मिश्रा, यशपाल शर्मा
रेटिंग**1/2