निर्देशक :  अक्षय रॉय 
स्टार कास्ट: अनुपम खेर, चंकी पांडेय, गुड्डी मारुति, ब्रजेश हीरजी, मिहिर, एकबली खन्ना आदि 
कहाँ देख सकते हैं : नेटफ़्लिक्स पर 
स्टार रेटिंग: 2.5 


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माना जाता है कि देवानंद और आमिर खान जैसे कई हीरो अपनी तमाम फिल्मों के ‘घोस्ट डायरेक्टर’ रहे, यानी नाम के लिए कोई और डायरेक्टर होता था लेकिन वो अपनी फ़िल्म के हर पक्ष, हर पहलू पर ध्यान देते रहे और उनकी फिल्में सुपरहिट होती रहीं. भले ही उनकी कितनी भी आलोचना उन दिनों हुई हो लेकिन अनुपम खेर की नेटफ़्लिक्स पर रिलीज़ हुई ताजा फिल्म ‘विजय69’ देखकर लगता है कि आमिर खान  और देवानंद साहब ने जो किया, वही इस मूवी में अनुपम खेर ने किया होता तो आज ये मूवी भी ‘सारांश’ की तरह ही अनुपम की यादगार फ़िल्मों में शामिल होने की दावेदार होती.


‘विजय69’ कहानी है विजय मैथ्यू (अनुपम खेर) की, जिनका फ्लैट अपनी उस पत्नी ऐना मैथ्यू की यादों से सजा है, जो कैंसर से अपनी जान गंवा बैठीं और इस दुनिया में वो अकेली थीं जो विजय की क्षमताओं पर पूरा भरोसा करती थीं. 69 साल के विजय कभी स्विमिंग चैंपियन थे और नेशनल में कांस्य पदक जीत चुके थे लेकिन  मजबूरी के चलते स्विमिंग कोच बन गये.  अब उनके इकलौते रिश्तेदार उनकी बेटी, दामाद और  धेवता ही थे.


‘विजय69’ की कहानी
इस उम्र में भी कुछ घटनाओं से विजय को लगता था कि वो अपनी पत्नी का गोल्ड मेडल लाने का सपना तो पूरा नहीं कर पाया लेकिन कुछ ऐसा अनोखा किया जा सकता है, जो ना केवल उनकी पहचान बना सकता है बल्कि उनकी पत्नी का सपना भी पूरा कर सकता है. बेटी से लेकर दोस्त तक उनकी इस जिद का मजाक उड़ाते हैं लेकिन वो हार नहीं मानता और ट्रायथलन प्रतियोगिता में सबसे अधिक उम्र का विजेता बनने के लिए मैदान में उतर जाता है.


फ़िल्म में ‘सारांश’ जैसी ही एक वृद्ध की सिस्टम से लड़ाई है, लेकिन यहां 69 के विजय को ना केवल सिस्टम से बल्कि अपने परिवार और दोस्तों से भी लड़ना पड़ता है. ये फ़िल्म भी इस लड़ाई से चर्चा में आती लेकिन दिक़्क़त तब आती है जब फ़िल्म को लेखक और निर्देशक  अक्षय रॉय ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ बना डालते हैं यानी केवल कॉमेडी नहीं बल्कि बिना तर्कों की भोले भाले लोगों की कॉमेडी जो ‘ईसबगोल के रसगुल्ले’ कहने पर ही आधा घंटा हंसते रहें.


‘विजय69’ में कहां रह गई कमी
हाल ही में ‘स्त्री2’ जैसी कई फ़िल्में आई हैं, जिनकी हर लाइन में मारक कॉमिक पंच हैं. इस मूवी में ये कमी कड़ी महसूस होती है. हालांकि डायरेक्टर ने विजय के दोस्त के तौर पर पारसी किरदार में चंकी पांडे सहित गुड्डी मारुति,  ब्रजेश हीरजी,  सानंद वर्मा, राज शर्मा जैसे कई कॉमेडी कलाकार लिए हैं. लेकिन अब्बास टायरवाला के होने के बावजूद डॉयलॉग्स में वो बात नहीं आ पायी. 


हां मूवी का इमोशनल हिस्सा जो उनकी पत्नी ऐना (एकवली खन्ना) के साथ फ़िल्माया गया है, वो बेहतरीन है.  अनुपम खेर ने तो मानो अपनी जान ही इस मूवी में लगा दी है, लेकिन कहानी को 112 मिनट खींचना काफ़ी भारी पड़ गया लगता है. ऐसे में मीडिया वालों को जोकर की तरह पेश करना, और अनुपम व मिहिर आहूजा की नक़ली लड़ाई मूवी को पूरा उल्टा चश्मा बना देती है, हँसें या रोयें समझ नहीं आता.  कई दृश्यों को जानबूझकर लंबा खींचा गया है, कई किरदार ग़ैर ज़रूरी नजर आते हैं.


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ये बात आएगी पसंद
बावजूद इसके क्लाइमेक्स आपको इमोशनल अपील के चलते पसंद आ सकता है, अनुपम भी इस सीन में ‘जो जीता वही सिकंदर’ के आमिर खान को मात देते लग रहे हैं. लेकिन अकेले अनुपम भी इस मूवी को नहीं बचा सकते, शायद इसलिए मूवी सिनेमा हॉल्स में रिलीज़ ही नहीं की गई.  हालाँकि सूरज बडजात्या की पिछले साल आयी मूवी ‘ऊँचाई’ में कुछ ऐसा ही रोल करने वाले अनुपम खेर ने ये रोल क्यों किया, ये बात ही समझना मुश्किल है. यूँ 2021 में आयी बंगाली मूवी ‘टॉनिक’ की भी कुछ ऐसी ही कहानी थी और इन दोनों की ही नेशनल अवार्ड व IFFI में काफी चर्चा रही.