UK-China war: हमास ने इजरायल के घर में घुसकर करीब सैकड़ों लोगों को मौत के घाट उतार दिया. इजरायल बदले की आग में पूरे गाजा की जमीन को बमबारी करके पाट रहा है. इजरायल और हमास की जंग में दुनिया बंटी हुई दिख रही है. इस भूमिका के बीच आपको बताते हैं उस युद्ध के बारे में जो किसी धार्मिक आधार पर नहीं बल्कि अफीम के लिए लड़ा गया था. इसे आप दुनिया का पहला नारकोटिक्स वार कह सकते हैं. क्योंकि यह पहला अफीम युद्ध था जिसमें हजारों लोग फ्री ट्रेड यानी मुक्त व्यापार के नाम पर मौत के घाट उतार दिए गए थे.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

अफीम की जंग में टकराए यूके-चीन


जंग का ये वाकया करीब 190 साल पुराना है. दुनिया के अधिकांश युद्ध या तो जमीन पर कब्जे (प्राकतिक संसाधनों को हड़पने) या फिर धार्मिक आधार पर लड़े गए. लेकिन इस युद्ध की कहानी रोचक है तो इसमें त्रासदी भी है. दरअसल 1830 के उस दौर में चीन में अफीम का कारोबार एक मुनाफे का धंधा था लेकिन ये अवैध कारोबार था. स्कॉटलैंड की दो हस्तियां इस नशे के कारोबार से जुड़ी थीं. 


19वीं सदी के इस अफीम वॉर को चीन के जिद्दी रवैये की एक मिसाल माना जा सकता है. ये जंग तीन साल चली. इस महासमर में चीन अकेला था तो ब्रिटेन (UK) और फ्रांस (France) की सेनाएं साथ थी. 


अफीम की वजह से खत्‍म हुआ चीनी राजपरिवार


उस दौर में चीन में किंग वंश का शासन था. ये युद्ध दो चरण में हुआ. पहला अफीम वॉर जून 1839 से शुरू होकर अगस्त 1842 को खत्‍म हुआ. वहीं दूसरा अफीम वॉर 1856 में शुरू होकर 1860 में खत्‍म हुआ. दूसरे अफीम युद्ध को एरो वॉर या एंग्‍लो-फ्रेंच वॉर के नाम से भी जाना जाता है.  युद्ध में चीन को मुंह की खानी पड़ी और उसके एक साम्राज्य का पतन हो गया. ब्रिटेन और उसके मित्र देशों की सेनाओं ने इसी जंग के दौरान चीन की काफी जमीन पर कब्‍जा कर लिया था.


चाय-चांदी का व्यापार और अफीम की तस्करी 


स्कॉटलैंड के दो लोगों ने अफीम वॉर की शुरुआत में बड़ी भूमिका निभाई थी. पहले शख्स विलियम जार्डाइन थे जो पेशे से डॉक्टर और कारोबारी थे. उसकी मुलाकात एक वेश्यालय में जेम्स मैथेसन से हुई वो भी बिजनेस मैन था. 1832 में दोनों ने जार्डाइन, मैथेसन एंड कंपनी बनाई जिसका हेडक्वार्टर दक्षिणी चीन का कैंटोन शहर था. कैंटोन को अब ग्वांझगो सिटी के नाम से जाना जाता है. उसी समय पूरे ब्रिटेन में चाय का क्रेज लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा था.  


दरअसल 1700 के अंत में ब्रिटेन की ईस्‍ट इंडिया कंपनी जो हाद में भारत पर राज करने लगी वो चीन से चाय और सिल्‍क का आयात करती थी. जिसकी यूरोप में भारी डिमांड थी. लेकिन चीन को इसके बदले में चांदी चाहिए थी और उसने ब्रिटेन के सामानों को लेने से मना कर दिया था. चीन की इस जिद के चलते ब्रिटेन को कई टन चांदी से हाथ धोना पड़ा था. ऐसे में कारोबारी संतुलन बनाने के लिए ईस्‍ट इंडिया कंपनी ने चीन में अफीम की स्‍मगलिंग शुरू कर दी और बदले में चांदी लेने लगी. धीरे-धीरे लाखों चीनियों को अफीम की लत लग गई. जब चीनी शाषकों को इसका पता लगा तो उन्‍होंने ब्रिटेन को जवाब देने का फैसला किया.


भारत की अफीम के थे दुनिया में चर्चे


इतिहास की किताबों और मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 3 जून 1839 को चीन के प्रशासनिक अधिकारी लिन जू ने 1.2 मिलियन किलोग्राम अफीम को जब्‍त करके उसे नष्‍ट कर दिया था. ब्रिटेन ने इसे अपना अपमान माना और अपने घातक हथियारों के साथ उस पर हमला कर दिया. ब्रिटेन ने चीन के कई शहरों पर कब्‍जा करते हुए हजारों चीनी लोगों को मौत के घाट उतार दिया. जैसे तैसे 1842 को पहला अफीम युद्ध खत्‍म हुआ. इस युद्ध के आखिर में चीन को ब्रिटेन के दबाव में आकर एक युद्ध समझौते यानी संधि पर दस्तखत करने पड़े थे. इसके बाद चीन ने बड़ी मजबूरी में अपने व्‍यापार की बहाली की. उस युद्ध में हार की वजह से चीन को हांगकांग समेत अपने कई बंदरगाहों को ब्रिटेन के हाथों सौंपना पड़ा और साथ 20 मिलियन डॉलर का जुर्माना भी अदा करना पड़ा. जो उस जमाने में बहुत बड़ी रकम थी. 


इस हार के साथ चीन की राजशाही का पतन हुआ. वहां बगावत हुई. भारत में पैदा होने वाली हाईक्वालिटी की अफीम ब्रिटेन के लिए भारतीय भूभाग से इनकम हासिल करने का बड़ा जरिया थी. इस अफीम को चीन के रास्ते यूरोप भेजा जाता था. हालांकि तब भारत पर अंग्रेजों का कब्जा था ऐसे में ब्रिटिश हुकूमत ने अफीम की खेती करने के लिए भारतीय किसानों पर जुल्म ढहाया था. 


उम्मीद है कि रूस-यूक्रेन युद्ध और इजरायल हमास युद्ध के बीच आपको चीन और ब्रिटेन के बीच हुए इस युद्ध की कहानी जरूर पसंद आएगी.