40 years after Bhopal gas tragedy: साल 1984, दो-तीन दिसंबर की आधी रात भोपाल के लोगों के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं थी. भापोल की हवा में मिथाइल आइसोसाइनेट नाम का जहर बहा था. यूनियन कार्बाइड के कारखाने के टैंक नंबर 610 से लीक हुई इस गैस ने पूरे शहर को श्मशान में बदल दिया. इस भोपाल गैस त्रासदी को 2024 में चालीस साल हो गए. सरकार ने रेडियोएक्टिव वेस्ट को अब खत्म करने का प्लान बना लिया है. तो आइए जानते हैं कि आखिर कितना खतरनाक है भोपाल का 377 मीट्रिक टन रेडियोएक्टिव वेस्ट और 40 साल बाद कैसे सरकार करेगी निपटारा.
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Union Carbide toxic waste disposal: भोपाल में हुई ग्रैस त्रासदी को 40 साल हो चुके हैं. दुनिया की सबसे भीषण औद्योगिक त्रासदियों में गिनी जाने वाली भोपाल गैस ट्रेजेडी की घटना में 5,479 लोगों की मौत हो गई थी और पांच लाख से अधिक लोग स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं और दीर्घकालिक विकलांगताओं से पीड़ित हो गए थे. चालीस सालों बाद अब यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री में दबे कचरे को खत्म करने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. जानें कैसे 377 मीट्रिक टन कचरा को किया जाएगा डिस्पोज, क्या है सरकार का प्लान और कितना खतरनाक है भोपाल का 377 मीट्रिक टन रेडियोएक्टिव वेस्ट.
40 सालों बाद क्यों लिया गया कचरा हटाने का फैसला?
मध्य प्रदेश सरकार ने हाई कोर्ट की फटकार के बाद ये एक्शन लिया है. एक सप्ताह पहले ही MP हाईकोर्ट ने सरकार को फटकार लगाई थी. कोर्ट ने भोपाल में फैक्ट्री साइट से कचरा न हटाए जाने पर सवाल उठाए थे. अदालत ने सरकार से पूछा था कि लगातार निर्देश दिए जाने के बाद भी कचरे का निपटारा क्यों नहीं किया जा रहा है? जबकि इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट के साथ-साथ हाई कोर्ट भी निर्देश जारी कर चुका है. सुनवाई के दौरान HC ने कहा था कि 'निष्क्रियता की स्थिति' एक और त्रासदी का कारण बन सकती है.
हाईकोर्ट ने सरकार को लगाई फटकार
मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने भोपाल गैस त्रासदी के 40 साल बाद भी ‘यूनियन कार्बाइड’ कारखाने के जहरीले कचरे का निपटारा नहीं होने पर नाराजगी जताते हुए तीन दिसंबर को राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि इस कचरे को तय अपशिष्ट निपटान इकाई में चार हफ्तों के भीतर भेजा जाए.
377 मीट्रिक टन रेडियोएक्टिव वेस्ट को कहां किया जाएगा डिस्पोज?
मध्यप्रदेश राज्य के गैस राहत और पुनर्वास विभाग के निदेशक स्वतंत्र कुमार सिंह ने न्यूज एजेंसी से बातचीत में बताया था कि भोपाल गैस त्रासदी का कचरा एक कलंक है जो 40 साल बाद मिटने जा रहा है. हम इसे सुरक्षित तौर पर पीथमपुर भेजकर नष्ट करेंगे. उन्होंने कहा कि इस रासायनिक कचरे को भोपाल से पीथमपुर भेजने के लिए करीब 250 किलोमीटर लंबा ‘ग्रीन कॉरिडोर’ बनाया जाएगा. ‘ग्रीन कॉरिडोर’ का मतलब सड़क पर यातायात को व्यवस्थित करके कचरे को कम से कम समय में गंतव्य तक पहुंचाने से है.
कैसे और कब वेस्ट को किया जाएगा डिस्पोज?
सूत्रों का कहना है कि हाईकोर्ट के निर्देश के मद्देनजर यह प्रक्रिया जल्द शुरू हो सकती है. गैस राहत और पुनर्वास विभाग के निदेशक ने बताया कि पीथमपुर की अपशिष्ट निपटान इकाई में शुरुआत में कचरे के कुछ हिस्से को जलाकर देखा जाएगा और इसके ठोस अवशेष (राख) की वैज्ञानिक जांच की जाएगी ताकि पता चल सके कि इसमें कोई हानिकारक तत्व बचा तो नहीं रह गया है.
कितना महीने में खत्म होगा ये कचरा
रेडियोएक्टिव वेस्ट कितना खतरनाक है, इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस कचरे को खत्म करने के लिए पहले इस कचरे का जांच किया जाएगा. अगर जांच में सब कुछ ठीक पाया गया तो कचरे को तीन महीने के भीतर जलाकर भस्म कर दिया जाएगा. वरना इसे जलाने की रफ्तार धीमी की जाएगी जिससे इसे भस्म होने में नौ महीने तक लग सकते हैं.
कचरे के धुंए को चार लेवल पर किया जाएगा फिल्टर
कचरे के जलने से निकलने वाले धुएं को चार स्तरों वाले विशेष फिल्टर से गुजारा जाएगा ताकि आस-पास की वायु प्रदूषित न हो और इस प्रक्रिया के पल-पल का रिकॉर्ड रखा जाएगा. कचरे के भस्म होने और हानिकारक तत्वों से मुक्त होने के बाद इसके ठोस अवशेष (राख) को दो परतों वाली मजबूत ‘मेम्ब्रेन’ (झिल्ली) से ढक कर ‘लैंडफिल साइट’ में दफनाया जाएगा ताकि यह अपशिष्ट किसी भी तरह मिट्टी और पानी के संपर्क में न आ सके.
कितना खतनाक है ‘यूनियन कार्बाइड’ का ये कचरा?
2015 में सरकार ने मात्र 10 टन खतरनाक कचरे को बतौर ट्रायल जलाया था, इससे पैदा हुई 40 टन राख को इंदौर जिले के पीथमुर में दफनाया गया था लेकिन इससे 8 किमी क्षेत्र का भूजल दूषित हो गया था. गैस राहत और पुनर्वास विभाग के निदेशक सिंह ने इस दावे को गलत बताते हुए कहा, "2015 के इस परीक्षण की रिपोर्ट और सारी आपत्तियों की जांच के बाद ही पीथमपुर की अपशिष्ट निपटान इकाई में ‘यूनियन कार्बाइड’ के कारखाने के 337 टन कचरे को नष्ट करने का फैसला किया गया है. इस इकाई में कचरे को सुरक्षित तरीके से नष्ट करने के सारे इंतजाम हैं और चिंता की कोई भी बात नहीं है.’’
पांच हजार से ज्यादा लोंगों की हुई थी मौत
बता दें कि 2 दिसंबर 1984 की रात भोपाल की यूनियन कार्बाइड कीटनाशक फैक्ट्री से जहरीली गैस मिथाइल आइसोसाइनाइट (MIC) का रिसाव हुआ था. इस हादसे में 5,479 लोगों की मौत हो गई थी. गैस लीक की वजह से पांच लाख से ज्यादा लोगों का स्वास्थ्य बुरी तरह से प्रभावित हुआ था. जिसका असर आज भी कई लोगों पर नजर आता है. इस हादसे के बाद कई लोग विकलांगता के शिकार हो गए थे. इनपुट भाषा से भी