Loksabha Chunav: भाजपा से दुश्मनी नहीं, नीतीश कुमार विचारों के पीएम... केसी त्यागी क्या इशारा करना चाहते हैं?
JDU Politics: जनता दल यूनाइटेड के वरिष्ठ नेता केसी त्यागी ने भाजपा को लेकर कहा है कि राजनीति में कोई दुश्मन नहीं होता. इसके साथ ही उन्होंने जेडीयू अध्यक्ष नीतीश कुमार को इंडिया गठबंधन के विचारों का पीएम बताया है. इसके बाद सवाल मौजूं हो गया है कि केसी त्यागी क्या इशारा करना चाहते हैं? पढ़िए, बयानों का `बिटवीन द लाइंस` विश्लेषण...
Nitish Kumar Politics: नीतीश कुमार इंडिया गठबंधन (INDIA) के विचारों के संयोजक हैं और विचारों के प्रधानमंत्री हैं. जेडीयू नेता केसी त्यागी ने नीतीश कुमार (Nitish Kumar) को विचारों का नेता बताने के साथ ही पुरानी सहयोगी बीजेपी को लेकर बड़ा बयान भी दिया है. उन्होंने कहा कि राजनीति में कोई दुश्मन नहीं होता, उनसे हमारे नीतिगत मतभेद हैं, वह दुश्मन नहीं हैं.
इंडिया गठबंधन में बढ़ेगी नीतीश की भूमिका? क्यों चुप रही आरजेडी
दरअसल जेडीयू का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने से विपक्षी दलों के इंडिया गठबंधन में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की भूमिका बढ़ाने की कोशिश की गई है. साथ ही आरजेडी के करीबी राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटाकर जेडीयू ने संकेत दिया है कि जिस तरह इंडिया गठबंधन की पिछली बैठक में मल्लिकार्जुन खरगे को आगे किया गया और नीतीश को नजरअंदाज उसे पार्टी बर्दाश्त नहीं करेगी. भले ही नीतीश कुमार और लालू यादव साथ में मुंह फुलाकर मीटिंग से निकले, लेकिन इसका मतलब सियासी दोस्ती नहीं है. जेडीयू के नेता ये सवाल पूछ रहे हैं कि जब कांग्रेस ने नीतीश को दरकिनार किया तब आरजेडी चुप क्यों रही. उधर ललन सिंह पटना में सार्वजनिक तौर पर कहते रहे कि इंडिया गठबंधन में सब ठीक है. इसका खामियाजा उन्हें उठाना पड़ा.
जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष बदले जाने में दिखता है एक जैसा पैटर्न
विजय चौधरी, संजय झा, वशिष्ठ नारायण सिंह जैसे जेडीयू के बड़े नेताओं ने इस बारे में नीतीश कुमार को आगाह किया. ललन सिंह कहीं आरजेडी के ट्रैप में अपने ही नेता को तो कमजोर नहीं कर रहे. इसलिए नीतीश कुमार ने दिल्ली में जेडीयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी और राष्ट्रीय परिषद की बैठक बुलाकर सीधा संदेश देने का फैसला किया. वो 2016-20 के बीच खुद पार्टी के अध्यक्ष रह चुके हैं. और अध्यक्ष बदलने में एक पैटर्न भी दिखता रहा है. जब 2015 में लालू के साथ आए और 2017 में पलटी मारी तो शरद यादव को नागवार गुजरा. समाजवादी शरद की तमन्ना लालू के साथ रहने की थी. लेकिन 27 जुलाई की शाम अमित शाह के उस फोन ने पटना की सियासी फिजा बदल दी. इसका खामियाजा शरद यादव को भी भुगतना पड़ा. उन्हें पार्टी अध्यक्ष पद से बाहर कर दिया गया.
ऐसे ही अचानक साफ हुआ था राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह का पत्ता
पलटूराम की छवि लिए नीतीश ने 2022 में फिर पलटी मारी क्योंकि उन्हें अचानक लगा कि उनकी पार्टी का अस्तित्व खतरे में है. 2020 के विधानसभा नतीजों ने 43 सीटों पर जेडीयू को सिमटा दिया तो नीतीश ने इसके लिए नरेंद्र मोदी के हनुमान चिराग पासवान को जिम्मेदार ठहराया. फिर एक मुर्गा खोजा गया. अचानक राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह का पत्ता साफ हुआ. ललन सिंह तमतमाए हुए पटना में प्रेस के सामने मुखातिब हुए और बीजेपी पर साजिश रचने का आरोप लगाया. वो यहीं तक नहीं रुके. वहां मौजूद संजय झा को भी लपेट लिया. कहने लगे, ये लोग ही थे जो 2017 में नीतीश को एनडीए के पास ले गए. इसमें उन्होंने एक पत्रकार का भी नाम लिया था जो आज राष्ट्रपति के प्रेस सलाहकार हैं. आज वक्त का पहिया फिर घूमा है.
लालू और राहुल दोनों को नीतीश का साफ संदेश- कमजोर न समझें
अटल बिहारी वाजपेयी को अभिभावक और अरुण जेटली को अपना मार्गदर्शक बताने वाले नीतीश कुमार ने अपनी पोजीशनिंग मजबूत की है. वो लालू को संदेश दे रहे हैं कि उन्हें कमजोर न समझें. क्योंकि राजनीति में कोई स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता. उधर हिंदी पट्टी से फिर साफ हुई कांग्रेस के नेता राहुल गांधी को भी बता रहे हैं कि जिस गठबंधन की अगुआई उन्होंने की उस जेपी के कथित चेले को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.