Maharashtra And Jharkhand Vidhan Sabha Chunav: महाराष्ट्र और विधानसभा चुनाव के बीच शायद परिवारवाद कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं रह गया है. दोनों ही राज्यों में एक-दूसरे से सीधा मुकाबला कर रहे इंडिया गठबंधन और एनडीए गठबंधन दोनों में शामिल दलों ने नेताओं के परिवार के लोगों को अपना उम्मीदवार बनाया है. कोई भी प्रमुख पॉलिटिकल पार्टी इस परिवारवाद के आरोपों से अछूता नहीं रह गया है.


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महाराष्ट्र चुनाव में महायुति और महाविकास आघाड़ी दोनों लगभग बराबर 


एक सर्वे के मुताबिक, महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में सत्तारुढ़ महायुति यानी एनडीए गठबंधन के अब तक घोषित 211 उम्मीदवारों के नामों में से 25 यानी 11 फीसदी उम्मीदवार सियासी परिवारों के जुड़े हुए हैं. वहीं, विपक्षी महाविकास आघाड़ी या इंडिया गठबंधन ने अब तक घोषित अपने 222 उम्मीदवारों में से 28 यानी 12 फीसदी टिकट परिवार के लोगों के बीच बांटी हैं. इसके बाद कोई पार्टी किसी और पर परिवारवाद का आरोप नहीं लगा रहा है.


महाराष्ट्र में पार्टियों के लिहाज से परिवारों में बंटे टिकटों का आंकड़ा


महाराष्ट्र में सियासी पार्टियों के लिहाज से परिवार में बंटने वाले टिकटों का आंकड़ा देखें तो भाजपा ने 121 में 10, एकनाथ शिंदे की शिवसेना ने 45 में से 8 और अजित पवार की एनसीपी ने 45 में 7 टिकट सियासी परिवार से जुड़े नेताओं को दी है. इसके मुकाबले में लड़ रहे इंडिया गठबंधन में शामिल कांग्रेस ने 71 में से 8, शिवसेना (उद्धव ठाकरे ) ने 84 में से 10 और एनसीपी (शरद पवार) ने 67 में से 8 टिकट परिवार के लोगों को दी है. 


महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा के टिकट पर सबकी नजर 


महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा ने पूर्व सीएम अशोक चव्हाण की बेटी श्रीजया चव्हाण को टिकट दिया है. इसके साथ ही महाराष्ट्र में शेलार परिवार को भी खास तवज्जो देते हु एक ही परिवार में दो टिकट दिए हैं. आशीष शेलार को बांद्रा वेस्ट से और उनके छोटे भाई विनोद शेलार को मलाड से उम्मीदवार बनाया गया है. वहीं, पूर्व केंद्रीय मंत्री के नारायण राणे के बेटे नीतीश राणे, पूर्व केंद्रीय मंत्री रावसाहेब दानवे के बेटे संतोष दानवे, राज्यसभा सांसद धनंजय महाडिक के छोटे भाई अमल महाडिक, पूर्व मुख्यमंत्री शिवाजीराव पाटिल निलंगेकर के पोते संभाजी पाटिल निलंगेकर और पूर्व सांसद अनिल शिरोले के पुत्र सिद्धार्थ शिरोले को भाजपा ने उम्मीदवार बनाया है.


परिवारवाद के खिलाफ सबसे मुखर भाजपा का झारखंड में तीखा यू-टर्न


इसके अलावा, परिवारवाद के खिलाफ सबसे ज्यादा मुखर रहने वाली भाजपा ने झारखंड विधानसभा चुनाव में भी इससे अलग कदम बढ़ाया है. भाजपा ने झारखंड में पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में ओडिशा के राज्यपाल रघुवर दास की बहू पूर्णिमा दास, पूर्व सीएम चंपाई सोरेन और उनके बेटे बाबूलाल सोरेन,  पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा, पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा, धनबाद के सांसद ढुल्लू महतो के भाई शत्रुघ्न महतो और बीमार विधायक इंद्रजीत महतो की पत्नी तारा देवी को चुनाव मैदान में उतारा है. आजसू ने अपने सांसद चंद्रप्रकाश चौधरी के भाई रौशन लाल चौधरी को टिकट दिया है.


झारखंड में सत्तारुढ़ झामुमो के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन में भी परिवार


झारखंड की राजनीति में सत्तारुढ़ झामुमो के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन की बात करें तो शिबू सोरेन परिवार से दो बेटा और दो बहुएं चुनावी दंगल में मौजदू हैं. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, उनकी पत्नी कल्पना सोरेन और छोटे भाई बसंत सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा के टिकट पर बरहेट, गांडेय और दुमका से चुनाव लड़ रहे हैं. वहीं, शिबू सोरेन की बड़ी बहू और हेमंत सोरेन की भाभी सीता सोरेन भाजपा के टिकट पर जामताड़ा से चुनाव लड़ रही हैं. भाकपा माले ने पूर्व विधायक महेन्द्र सिंह के बेटे विनोद सिंह और पूर्व विधायक गुरुदास चटर्जी के पुत्र अरुप चटर्जी को प्रत्याशी बनाया है.


झामुमो, कांग्रेस और राजद तीनों में परिवार के लोगों को जमकर टिकट


श्रम नियोजन मंत्री और राजद नेता सत्यानंद भोक्ता का टिकट कटने के बाद उनका परिवार चतरा सीट से राजनीति में प्रवेश कर चुका है. सत्यानंद की बहू रश्मि प्रकाश को राजद ने चतरा से अपना उम्मीदवार बनाया है. समरेश सिंह की बहू कांग्रेस नेता श्वेता सिंह बोकारो सीट से किस्मत आजमाने का प्रयास कर रही हैं. वहीं, कांग्रेस के पूर्व मंत्री स्व. राजेंद्र सिंह के परिवार में बड़े पुत्र अनूप सिंह बेरमो से विधायक हैं. उन्हें इस बार भी टिकट मिल चुका है. अनूप की पत्नी अनुपमा सिंह भी बोकारो से ही टिकट की दावेदार हैं. उनके दूसरे बेटे गौरव सिंह इस बार बोकारो से चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं. 


मंत्री-सांसद-विधायक सबके घर के लोगों को टिकट बंटवारे में प्राथमिकता


कांग्रेस में पूर्व विधायक बंधु तिर्की की पुत्री शिल्पी नेहा तिर्की अभी मांडर से कांग्रेस की विधायक है. पूर्व मंत्री योगेंद्र साव की पुत्री अंबा प्रसाद बड़कागांव से कांग्रेस विधायक हैं. उन्हें फिर से टिकट मिल चुका है. दुमका से सांसद झामुमो के नलिन सोरेन के पुत्र आलोक सोरेन शिकारीपाड़ा से झामुमो के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं. झामुमो सांसद जोबा मांझी के पुत्र जगत मांझी को उनकी मां की सीट मनोहरपुर से टिकट मिला है. वित्त मंत्री और कांग्रेस विधायक दल के नेता डॉ. रामेश्वर उरांव के बेटे रोहित उरांव को लोहरदगा सीट से चुनाव लड़ाया जा रहा है.


बिहार की चार विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव में भी परिवार ही आगे


दूसरी ओर, अगले साल 2025 में विधानसभा चुनाव के लिए तैयार बिहार में 13 नवंबर कोहोने वाले चार विधानसभा सीटों पर उपचुनाव में भी परिवारवाद छाया हुआ है. यहां भी अलग-अलग पार्टियां इस बारे में एक राय हैं कि टिकट परिवार के लोगों को ही मिलना चाहिए.  बेलागंज, इमामगंज, तरारी और रामगढ़ में उपचुनाव में सभी दल 'परिवारवाद' का ही नारा लगाते दिख रहे हैं. 


बेलागंज में राजद सांसद सुरेन्द्र यादव के बेटे विश्वनाथ सिंह यादव और इमामगंज में हम पार्टी के सुप्रीमो, पूर्व मुख्यमंत्री और मौजूदा केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी की बहू दीपा मांझी मैदान में हैं. तरारी में पूर्व विधायक और हाल में भाजपा से जुड़े सुनील कुमार सिंह के बेटे विशाल प्रशांत पर भाजपा ने भरोसा जताया है. साथ ही रामगढ़ में राजद सांसद सुधाकर सिंह के भाी और राजद प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के पुत्र अजीत सिंह को राजद ने गढ़ बचाने के लिए उतारा है. 


लोकतंत्र के लिए वंशवाद-परिवारवाद बुरा, निशाना साधते रहे हैं पीएम मोदी


भाजपा के बाद बाकी पार्टियों में से कांग्रेस, झामुमो, राजद, लोजपा, एनसीपी (शरद पवार), शिवसेना (यूबीटी) वगैरह पर तो परिवारवाद का आरोप लंबे समय से चिपका हुआ है. इसलिए ये सभी दल अब भाजपा पर परिवारवाद के मुद्दे पर हमलावर हो रहे हैं. क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में एक कार्यक्रम में राजनीति में परिवारवाद की खुलकर आलोचना की थी. इसके पहले लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने लोकतंत्र के लिए वंशवाद और परिवारवाद को बुरा बताते हुए निशाना साधा था.


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लोकतंत्र और विकास में रोड़ा, फिर भी क्यों कमजोर नहीं हुआ परिवारवाद?


राजनीतिक सिद्धांतों के तौर पर देखें तो परिवारवाद के आधार पर पद या चुनाव में टिकट बांटना लोकतंत्र और संविधान की मूल भावना पर आघात है. हालांकि. इसका विरोध अब महज रस्मअदायगी की तरह बाकी रह गया है. व्यवहारिक तौर पर देखें तो सभी राजनीतिक दल इसमे बराबर रूप से हिस्सेदार हैं. लोकतंत्र के विकास की राह में रोड़ा होने के बावजूद परिवारवाद की जड़ कमजोर नहीं हो पाने का यह बड़ा कारण हैं. 


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हालांकि, परिचित चेहरों को पसंद करने, राजनीतिक पारिवार की विरासत को स्थिरता से जोड़े जाने, राजनीतिक दलों के हाईकमान की वफादारी बरकरार रहने के साथ ही पैसे और वोट का बंदोबस्त करने की ताकत की वजह से भी परिवारवाद लगातार जारी है. लेकिन अब महज किसी परिवार से जुड़ा होना ही चुनावी जीत की गारंटी नहीं रह गई है. फिर भी पार्टी और उम्मीदवार दोनों किस्मत आजमाने से पीछे नहीं हटती.


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