Loksabha Chunav Result: दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के महापर्व के परिणाम आ गए हैं. इस परिणाम ने सत्ताधारी बीजेपी को भारतीय राजनीति का एक और दुर्लभ दौर दिखा दिया है. शायद ही किसी ने सोचा होगा कि नरेंद्र मोदी को अपने लिए किसी गठबंधन की सरकार को बनाने के लिए नंबर गेम खेलना पड़ेगा. लेकिन ये लोकतंत्र की राजनीति है. तो इस बार जनता ने कुछ ऐसा ही कर दिखाया है. चुनाव परिणाम की तस्वीर साफ हुई तो बीजेपी अपने दम पर सरकार बनाने लायक नहीं रही. लेकिन उसके लिए गनीमत ये रही कि एनडीए के कुनबे ने साथ दे दिया और वादा निभाया कि साथ में सरकार बनाएंगे. अब इस विश्लेषण का समय है कि आखिर क्यों बीजेपी बहुमत के आंकड़े से पीछे रह गई. 


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असल में लोकसभा चुनाव प्रचार में 400 पार के नारे के साथ उतरी बीजेपी को 272 के लिए भी संघर्ष करना पड़ गया. अब देश के तमाम राजनीतिक एक्सपर्ट्स अब उन कारणों को खंगालने में जुट गए हैं कि आखिर क्या कारण रहे जिनके चलते बीजेपी चूक गई. इसके लिए थोड़ा पीछे चलने की जरूरत है. यह बात सही है कि लोकसभा चुनाव प्रचार की शुरुआत में आत्मविश्वास से लबरेज बीजेपी अपने उन मुद्दों पर सवार थी जिसमें विपक्ष बैकफुट पर नजर आ रहा था. 


बीजेपी ने अपने सारे मुद्दे बदल दिए


फिर चुनाव प्रचार में ही देखते ही देखते और आखिरी दौर आते-आते क्या बीजेपी ने अपने सारे मुद्दे बदल दिए थे. फिर ये हुआ कि पीएम मोदी समेत एनडीए के नेताओं को विकास के मुद्दे को छोड़ हिंदू मुस्लिम, मुस्लिम आरक्षण और कांग्रेस की आलोचनाओं को ही हवा देनी पड़ गई. यहां तक कि पीएम मोदी ने खुद खुलकर रैलियों में मुसलमानों का जिक्र करना पड़ गया. उन्होंने ध्रुवीकरण का गेम खेला लेकिन यह दांव पूरी तरह से उल्टा पड़ गया. 


नेताओं की बयान बाजी.. मुसलमान.. आरक्षण और फिर संविधान


रैलियों में पीएम मोदी ने सिर्फ मुस्लिम आरक्षण का विरोध किया लेकिन यूपी बिहार के कई जगहों पर यह देखने को मिला कि कई स्थानीय नेताओं ने आरक्षण पर ही प्रहार किया जिससे कई जगहों पर यह मामला गरमा गया. यहां तक कि गृहमंत्री अमित शाह को एक टीवी इंटरव्यू में बयान देना पड़ा कि जब तक बीजेपी है आरक्षण को खत्म नहीं किया जाएगा और ना ही ऐसे होने देंगे. अमित शाह ने उल्टा कांग्रेस पर ही आरक्षण को लेकर आरोप लगाए. इतना ही नहीं पीएम मोदी खुद बयानबाजी मंगलसूत्र तक ले आए. 


इस बार अल्पसंख्यकों हुआ मोहभंग


बीजेपी के समर्थको तो यह कह देते रहे हैं कि पिछले दो चुनावों में पीएम मोदी को मुस्लिम महिलाओं ने वोट दिए लेकिन इस बार मोहभंग नजर आया. यहां तक कि चुनाव का आखिरी दो चरण आते-आते राजनीतिक पंडितों को यह मानना पड़ा कि बीजेपी को विपक्ष की पिच में आकर खेलना पड़ा और पीएम मोदी समेत सभी बड़े नेता हिंदू मुस्लिम मुद्दे, कांग्रेस की तीखी आलोचना पर उतारू हो गई. यहां तक कि इंडिया गठबंधन के नेता चार सौ पार के नारे का मजाक भी उड़ाते दिख रहे थे. इसी बीच असली खेला जनता ने कर दिया था.


कई मुद्दों पर मूड नहीं भांप पाई बीजेपी


इधर एनडीए के नेता विकास के मुद्दे को छोड़ हिंदू मुस्लिम, मुस्लिम आरक्षण और कांग्रेस की आलोचना पर उतारू हो गए. उधर मौका देखते ही विपक्ष ने उन मुद्दों की हवा दे दी जिनसे जनता कनेक्ट हो पा रही थी. इनमें किसान आंदोलन, आरक्षण और यहां तक कि बीजेपी के कई स्थानीय नेता तो संविधान बदलने की बात भी कहते नजर आए. अयोध्या सीट से प्रत्याशी ने भी संविधान बदलने वाली बात कह डाली थी. इन्हीं सब मुद्दों को इंडिया गठबंधन ने चुनाव में उठाया और जनता के बीच इन मुद्दों की खूब चर्चा रही.


और फिर हो गया खेला.. 


इन बयानबाजियों के बीच विपक्ष के नेताओं ने लगातार संविधान बचाते रहने प्रचार किया और बीजेपी की तरफ से आ रहे तीखे बयान उनको भारी पड़ गए. फिलहाल अब मोदी तो सरकार बना ही रहे हैं लेकिन इस चुनाव ने बीजेपी को सबक जरूर सिखा दिया है. निगाहें नीतीश कुमार और चंद्रबाबू पर टिकी हुई हैं.  एनडीए की बैठक में सभी दलों ने सर्वसम्मति से नरेंद्र मोदी को अपना नेता चुन लिया है. अब देखना होगा कि पीएम मोदी अपनी तीसरी पारी कैसे शुरू करते हैं.