Rajya Sabha Election 2024: राज्यसभा चुनाव कैसे होता है? क्यों तय होता है वोटों का मूल्य, दूसरी वरीयता का क्या है पूरा गणित
राज्यसभा चुनाव प्रक्रिया : देश के 15 राज्यों की 56 राज्यसभा सीटों के लिए 27 फरवरी को मतदान होने वाला है. इन सभी सीटों के लिए 15 फरवरी तक नामांकन दाखिल किए गए हैं. राज्यसभा सीटों के उम्मीदवार 20 फरवरी तक अपना नाम वापस ले सकते हैं. आइए, जानते हैं कि राज्यसभा चुनाव की पूरी प्रक्रिया क्या है?
Rajya Sabha Chunav 2024 News: देश के 15 राज्यों की 56 राज्यसभा सीटों के लिए 27 फरवरी को चुनाव होने वाला है. इन राज्यों में उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, गुजरात, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, ओडिशा, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ का नाम शामिल है. 56 सीटों में ज्यादातर पर उम्मीदवारों के निर्विरोध जीतने की उम्मीद है. हालांकि, जरूरत पड़ने पर कुछ सीटों पर मतदान किया जा सकता है.
संसद के ऊच्च सदन राज्यसभा का चुनाव निचले सदन लोकसभा से बिल्कुल अलग होता है. राज्यसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों की पात्रता, नामांकन, मतदान, वोटों की गिनती, वोटों के मूल्य तय करने और परिणाम की घोषणा तक के लिए आम राय से फॉर्मूला बनाया गया है. आइए राज्यसभा चुनाव की पूरी प्रक्रिया के बारे में विस्तार से जानते हैं.
लोकसभा से कितनी अलग है राज्यसभा चुनाव की प्रक्रिया, कौन हो सकते हैं उम्मीदवार
राज्यसभा की वेबसाइट https://sansad.in/rs पर दी गई जानकारी के मुताबिक, राज्यसभा में क्रमबद्ध तरीके से हर दो साल में लगभग एक-तिहाई सदस्यों के लिए चुनाव होता है. उम्मीदवारों के चयन की प्रक्रिया काफी हद तक लोकसभा चुनावों के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया से अलग होती है.
राज्यसभा चुनाव में उम्मीदवार होने के लिए किसी व्यक्ति का भारत का नागरिक होना सबसे पहली पात्रता है. उनकी आयु 30 वर्ष से ज्यादा होनी चाहिए. इसके अलावा नामांकन के समय भारत सरकार या किसी राज्य सरकार या उनके नियंत्रण के अधीन स्थानीय या अन्य प्राधिकारियों के अधीन किसी लाभ के पद पर नहीं होना चाहिए.
क्या है राज्यसभा चुनाव की पूरी प्रक्रिया, कौन करते हैं मतदान, कैसे होती है वोटों की काउंटिंग
राज्यसभा सांसद चुनने के लिए आम जनता सीधे वोट नहीं देती है, बल्कि राज्य और केंद्रशासित प्रदेश के विधायक उनका चुनाव करते हैं. राज्यसभा चुनाव की पूरी प्रक्रिया को एकल हस्तांतरणीय वोट (एसटीवी) के साथ आनुपातिक प्रतिनिधित्व तय करना बताया गया है. जीतने वालों का निर्धारण करने के लिए इसी एसटीवी नियमों के आधार पर वोटों की गिनती की जाती है. इसके बाद रिटर्निंग ऑफिसर बतौर नतीजा चुने गए उम्मीदवारों की घोषणा करता है.
चुनाव आयोग ही करता है प्रक्रिया का संचालन, नामांकन भरने और वापसी का ये है तरीका
राज्यसभा चुनाव के लिए भी भारतीय निर्वाचन आयोग ही अधिसूचना जारी करता है. अलग-अलग राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में चुनाव के लिए सीटों की संख्या, चुनाव कार्यक्रम और नामांकन प्रक्रिया वगैरह सारे इंतजामों के बारे में आयोग ही प्रशासन को निर्देश जारी करता है. संसद के उच्च सदन के लिए विभिन्न राजनीतिक दलों के उम्मीदवार अपना नामांकन चुनाव आयोग द्वारा नियुक्त रिटर्निंग ऑफिसर के पास ही दाखिल करते हैं. आयोग की ओर से जमानत की रकम और नामांकन की वैधता की जांच की जाती है. एक विशिष्ट या तय समय सीमा से पहले उम्मीदवार चाहें तो अपना नामांकन वापस भी ले सकते हैं.
प्राथमिकताओं या वरीयताओं के सिलसिले का क्या है गणित, एक्स्ट्रा वोट का काफी महत्व
राज्यसभा चुनाव में विधानसभाओं के सदस्य एकल हस्तांतरणीय वोट (एसवीटी) के जरिए आनुपातिक प्रतिनिधित्व की अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली प्रणाली छोटी पार्टियों के लिए भी उचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने में सक्षम है. मतदाता यानी विधायक इस चुनाव में उम्मीदवारों के लिए अपनी प्राथमिकताओं या वरीयताओं को सिलसिलेवार तरीके से चिन्हित करते हैं. अगर किसी उम्मीदवार को जीतने के लिए पर्याप्त वोट (कोटा) मिलता है तो मतदाताओं की प्राथमिकताओं के आधार पर उनके अतिरिक्त वोट दूसरे उम्मीदवारों को ट्रांसफर कर दिए जाते हैं. यह प्रक्रिया तब तक जारी रहती है जब तक सभी सीटें नहीं भर जातीं.
स्थायी और उच्च सदन के चुनाव में नतीजे को प्रभावित करता है दूसरी वरीयता का वोट
लोकसभा की तरह राज्यसभा कभी भंग नहीं की जाती. क्योंकि इसे स्थायी सदन बताया गया है. वहीं, उच्च सदन के सदस्यों का कार्यकाल भी एक साल ज्यादा होता है. इसके अलावा राज्यसभा चुनाव में न तो गुप्त मतदान होता है और न ही इसमें ईवीएम का प्रयोग होता है. राजनीतिक दल और उम्मीदवार इस चुनाव में विधायकों के बीच जाकर प्रचार करते हैं. देश के राज्यसभा की तर्ज पर ही पांच राज्यों में विधान परिषद भी हैं. इसलिए उनके सदस्य राज्यसभा चुनाव में हिस्सा नहीं ले सकते हैं. राज्यसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों के नाम के आगे एक से चार तक का नंबर लिखा होता है. इसमें विधायकों को वरीयता के आधार पर पर चिह्न लगाना होता है. वरीयता का यह क्रम कई बार चुनावी नतीजे को प्रभावित कर देता है.
उत्तर प्रदेश में 2018 की तरह भाजपा ने फिर दिखाया दूसरी वरीयता के वोटों पर भरोसा
साल 2018 में राज्यसभा चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश में भाजपा ने अपने पास आठ प्रत्याशी जिताने के लिए ही वोट होने के बावजूद डॉक्टर अनिल अग्रवाल को 9वें प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतारा दिया था. उन्होंने भाजपा के बाहर तीन दलों के विधायकों की क्रॉस वोटिंग के बल पर सर्वाधिक मतों से जीत हासिल की थी. भाजपा ने दूसरी वरीयता के वोटों पर इस बार भी भरोसा जताया है और यूपी में कारोबारी संजय सेठ को अपने आठवें उम्मीदवार के तौर पर उतार दिया है. अब यूपी की 10 सीटों पर हो रहे राज्यसभा चुनाव में आठवे उम्मीदवार के लिए भाजपा को नौ और सपा को अपने तीसरे प्रत्याशी के लिए तीन वोटों का जुगाड़ करना होगा.
कुल विधायकों की संख्याx100/(राज्यसभा की सीटें+1)= +1 फॉर्मूला क्या है
राज्यसभा चुनाव में जीत के लिए वोटों की जरूरी संख्या पहले से ही तय फॉर्मूले निकाली जाती है. राज्य में कुल विधायकों की संख्या और राज्यसभा सीटों की संख्या के आधार पर जरूरी वोटों की संख्या निकाली जाती है. इस फॉर्मूले में एक विधायक की वोट का मूल्य 100 होता है. इसलिए पहले कुल विधायकों की संख्या को 100 से गुणा किया जाता है. इसके बाद राज्य में जितनी राज्यसभा की सीटें हैं उसमें एक जोड़ कर भाग दिया जाता है. इसके बाद कुल संख्या में एक जोड़ा जाता है. फिर जो संख्या निकलती है वह जीत के लिए जरूरी कम से कम वोटों की संख्या होती है. इसे 'कुल विधायकों की संख्याx100/(राज्यसभा की सीटें+1)= +1' फॉर्मूला कहा जाता है.
वोटिंग के बाद बॉक्स में डालने से अपनी पार्टी के एजेंट को बैलेट पेपर दिखाना जरूरी
राज्यसभा चुनाव के लिए विधायक अपनी वरीयता के आधार पर उम्मीदवारों के आगे लिखे नंबरों पर वरीयता के मुताबिक निशान लगाते हैं. इसके बाद अपने बैलेट पेपर को अपनी पार्टी के एजेंट को दिखाकर बैलेट बॉक्स में डालते हैं. पार्टी के एजेंट को न दिखाने पर यह मतपत्र अवैध हो जाता है. इसी तरह मतपत्र किसी दूसरी पार्टी के एजेंट को दिखा दियाया जाए तब भी अवैध हो जाता है. किसी उम्मीदवार को जीतने के लिए सबसे ज्यादा वोट तो चाहिए ही, साथ ही तय फॉर्मूले के हिसाब से कम से कम जरूरी वोट भी हासिल करने होते हैं.
क्या है सिलसिलेवार वरीयता वोटों का गणित, कैसे करता है हार-जीत पर बड़ा असर
किसी उम्मीदवार को पहली वरीयता के सबसे ज्यादा वोट मिलते हैं, लेकिन तय फॉर्मूले के तहत जीत के लिए जरूरी संख्या से कम होती है तो फिर दूसरी वरीयता के वोटों की गिनती की जाती है. यानी अगर एक नंबर पाने वाले उम्मीदवार के कुल वोट सबसे ज्यादा होने के बावजूद फॉर्मूले पर खरे नहीं उतरते तो दूसरे नंबर वाले उम्मीदवार को मिले वोटों की गिनती होती है. अगर उसको मिले दूसरी वरीयता के वोट जीत के लिए जरूरी वोटों की संख्या के बराबर या उससे ज्यादा होते हैं, तो उसके जीत का एलान कर दिया जाता है. ऐसा नहीं होने पर तीसरी वरीयता के वोट गिने जाते हैं. उसमें भी सफलता न मिलने पर चौथी वरीयता के वोटों की गिनती होती है.
राज्यसभा में कितने सदस्य, राष्ट्रपति किन्हें और क्यों करते हैं मनोनीत
देश में 23 अगस्त, 1954 को गठित राज्यसभा के सदस्यों की संख्या फिलहाल 245 है. संविधान के अनुच्छेद 80 के अनुसार राज्यसभा में कुल सदस्यों की संख्या 250 हो सकती है. इन 250 में से 238 सदस्य किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश से चुने जाते हैं. बाकी 12 सदस्य कला, संस्कृति, खेल, विज्ञान, समाजसेवा आदि क्षेत्र में विशेष योगदान करने वाले कोई भी प्रतिष्ठित व्यक्ति हो सकते हैं. केंद्रीय मंत्रिमंडल की सलाह के बाद उन्हें राष्ट्रपति नामित करते हैं.