Explainer: रेडियो कॉलर या मौसम? आखिर क्यों एक-एक कर मरते जा रहे नामीबिया से लाए गए चीते
Kuno National Park Cheetah: क्या दुनिया के लाजवाब शिकारी को भारत में फिर से आबाद करने का भारत सरकार का प्रोजेक्ट फेल हो जाएगा. यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि कूनो नेशनल पार्क में एक साल के अंदर अब तक 10 चीते दम तोड़ चुके हैं.
Cheetah in Kuno National Park Cheetah: मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में नामीबिया से लाए गए एक और चीते की मौत हो गई. इसके साथ ही इस नेशनल पार्क में एक साल के अंदर मरने वाले चीतों की संख्या 10 हो गई है. आखिर इन चीतों की लगातार मौतों की वजह क्या है. क्या ये चीतों की लोकेशन जानने के लिए उनके गले में लगाए गए रेडियो कॉलर के इंफेक्शन की वजह से जान गंवा रहे हैं या फिर मौसम की मार उन पर भारी पड़ रही है.
बता दें कि दुनिया के सबसे तेज दौड़ने वाले जानवर के रूप में चर्चित चीता भारत से बरसों पहले लुप्त हो गया था. उन्हें दोबारा आबाद करने के लिए भारत सरकार ने प्रोजेक्ट शुरू करके दक्षिण अफ्रीका से 12 और नामीबिया से 8 चीते भारत मंगाए थे. इन चीतों को एमपी के श्योपुर जिले में बने कूनो नेशनल पार्क में रखा गया. अब नामीबिया से आए चीते 'शौर्य' की मौत के साथ ही वहां पर वयस्क चीतों की संख्या 10 और शावकों की 4 बची है.
कूनो में 10वें चीता ने तोड़ा दम
कूनो नेशनल पार्क की ओर से जारी बयान के मुताबिक मंगलवार सुबह करीब 11 बजे 'शौर्य' जंगल में अचेतावस्था में पड़ा दिखाई दिया. उसे बेहोशी वाला इंजेक्शन लगाकर बेहोश किया गया और फिर उसका इलाज शुरू हो गया. लेकिन वह बेहद कमजोर लग रहा था. उसे सांस देने के लिए सीपीआर दिया गया लेकिन कुछ देर बाद उसके शरीर ने रिप्लाई करना बंद कर दिया और उसकी मौत हो गई. उसकी बॉडी को पोस्टमार्टम के लिए मॉर्चुरी में भिजवाया गया है. वहां से रिपोर्ट आने के बाद ही मौत की असल वजहों के बारे में पता चल सकेगा.
क्यों हो रही चीतों की मौतें
चीतों की लगातार हो रही मौतों से जहां वन विभाग के अधिकारी परेशान हैं. वहीं इससे चीतों को दोबारा से आबाद करने के भारत सरकार के प्रयासों को भी झटका लग सकता है. आखिरकार धीरे- धीरे करके ये अफ्रीकी चीते भारत में दम क्यों तोड़ते जा रहे हैं. क्या इनके पीछे अवैध शिकार वजह है या फिर कोई ओर कारण. वन विभाग के अधिकारी कहते हैं कि चीतों की मौत के पीछे अवैध शिकार जैसी कोई बात नहीं है. वे अपनी स्वाभाविक मौत रहे हैं. इस बात की पुष्टि अब तक मरे चीतों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी कर रही है.
इस दिन हुई थी पहले चीते की मौत
पीएम मोदी ने 17 सितंबर 2022 को नामीबिया से लाए गए चीतों को कूनो नेशनल पार्क में छोड़ा था. इन्हें जंगल में छोड़ने के करीब 6 महीने बाद 27 मार्च 2023 को 'साशा' नाम की मादा चीता की मौत हो गई थी. पोस्टमार्टम में पता चला कि 'साशा' गुर्दे की बीमारी से पीड़ित थी. उसे यह बीमारी भारत लाए जाने से पहले से थी
इसके बाद 23 अप्रैल 2023 को उदय नाम के चीते की मौत हो गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि कार्डियोपलमोनरी फेल होने की वजह से उसकी मौत हुई. इसके बाद 9 मई को दक्षा नामम मादा चीता की मौत हुई. वह घायल अवस्था में पाई गई थी. पोस्टमार्टम में पता चला कि मेटिंग के दौरान नर चीते के हिंसक व्यवहार की वजह से उसकी मौत हुई.
कहीं इन वजहों से तो नहीं गई जान
इसी प्रकार बाकी चीतों की मौत के मामले में कमजोरी, ट्रॉमेटिक शॉक और दूसरे चीता से हुई हिंसक झड़प को वजह बताया गया. कुछ रिपोर्टों में दावा किया गया कि चीतों की लोकेशन ट्रेस करने के लिए गले में बांधे गए रेडियो कॉलर की वजह से उनकी गर्दन में घाव हो गए, जिससे उनकी मौत हो गई. वन विभाग ने ऐसी रिपोर्टों को पूरी तरह अफवाह बताया. साथ ही किसी तरह की शंका को दूर करने के लिए बाद में 6 चीतों के गले से रेडियो कॉलर हटा दिए गए.
कहीं मौसम तो नहीं बना रहा बड़ा विलेन
इसके बावजूद कूनो नेशनल पार्क में चीतों का मरना नहीं रुक पा रहा है. ऐसा में चीतों की अचानक मौतों की वजह पर एक बार फिर चर्चाएं तेज हो गई हैं. वन विभाग के एक्सपर्टों के मुताबिक चीतों की अचानक मौत के पीछे एक नहीं अनेक वजहें हो सकती हैं. इनमें बड़ी वजह ये हो सकती है कि अफ्रीका से आए चीते भारतीय मौसम के हिसाब से अपने आप को ढाल नहीं पा रहे हैं.
धीरे-धीरे घट रही हो चीतों की इम्यूनिटी
एक्सपर्टों के मुताबिक अफ्रीका में गर्मी ज्यादा पड़ती है और वहां घास के ऊंचे मैदान हैं. जबकि भारत में तेज गर्मी के साथ भीषण ठंड का भी सामना करना पड़ता है. ऐसे में हो सकता है कि यह बदला हुआ मौसम अफ्रीकी चीतों को सूट न कर पा रहा हो और वे धीरे-धीरे बीमारी की चपेट में आ रहे हों.
नामीबिया से चीता विशेषज्ञों को बुलाया गया
दूसरी वजह ये हो सकती है कि चीते कूनो नेशनल पार्क से अब तक परिचित नहीं हो पाए हों और वे अब भी यहां पर परायापन महसूस कर रहे हों. इसके चलते उनमें निराशा और जंगल में भटकने जैसी घटनाएं हो रही हों. जिसकी वजह से वे एक-एक करके दम तोड़ रहे हों. इसे देखते हुए नामीबिया से चीता विशेषज्ञों को उनकी देखभाल के लिए बुलाया गया है.
प्रोजेक्ट चीता पर न लग जाए ब्रेक?
हालांकि ये सब केवल संभावनाएं हैं. चीतों की मौत की असल वजहें अब तक अज्ञात ही बनी हुई हैं. ऐसे में अगर इस अप्रिय ट्रेंड पर ब्रेक नहीं लगा तो भारत सरकार के प्रोजेक्ट चीता को बड़ा झटका भी लग सकता है और यह लाजवाब शिकार एक बार फिर भारत की भूमि से विदा हो सकता है.