Saheli: महिलाओं की `सहेली` की कहानी, गुमनामी में हुआ इस कॉन्ट्रासेप्टिव पिल बनाने वाले साइंटिस्ट का निधन
Saheli Contraceptive Pills: `सहेली` एक ऐसी दवा है जिसने भारतीय महिलाओं की जिंदगी में बड़े बदलाव लाए, आज वक्त है इसे तैयार करने वाले साइंटिस्ट डॉ. नित्यानंद को याद करने का, जो निधन के बाद भी अमर हो चुके हैं.
Dr. Nityanand Death: एक वक्त था जब भारत में बर्थ कंट्रोल जैसी कोई बात नहीं होती थी, एक दंपति के लिए 8 से 10 या इससे ज्यादा बच्चे होना कोई ताज्जुब की बात नहीं थी. महिलाएं भी पति और ससुराल वालों की इच्छा के खिलाफ नहीं जा सकती थीं, इसलिए उन्हें न चाहते हुए भी कई बार गर्भवती होना पड़ता था, जिसका उनकी सेहत पर काफी बुरा असर पड़ता था. ऐसे में डॉ. नित्यानंद और उनकी टीम ने दुनिया की पहली नॉन-स्टेरॉयड कॉन्ट्रासेप्टिव पिल बनाई थी जिसका नाम 'सहेली' रखा.
'सहेली' के जनक का निधन
27 जनवरी 2024 को डॉ. नित्यानंद ने लखनऊ के एसजीपीजीआई अस्पताल में आखिरी सांस ली. डॉक्टर्स ने बताया कि 99 साल की उम्र में दिल की धड़कन रुकने की वजह से उनका निधन हो गया. गौरतलब है कि 29 नवंबर 2023 को उनकी तबीयत बिगड़ गई थी, तब उन्हें इसी अस्पताल के आईसीयू में एडमिट कराया गया था. मौजूदा दौर के लोग भले ही उनका नाम से वाकिफ न हों, लेकिन उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता. आइए जानते हैं कि क्या है सहेली और उनके जनक का इतिहास.
पाकिस्तान में जन्म, भारत बनी कर्मभूमि
डॉ. नित्यानंद (Dr. Nityanand) का जन्म पाकिस्तान (Pakistan) के लायलपुर (Lyallpur) में 1 जनवरी 2025 को हुआ था, इस शहर को मौजूदा वक्त में फैसलाबाद (Faislabad) कहा जाता है. भारत की आजादी के वक्त उनको भी देश के विभाजन का दंश झेलना पड़ा जिसके बाद वो परिवार के साथ मुंबई आ गए. वो इंडिया को फार्मास्युटिकल साइंस में टॉप पर ले जाना चाहते थे. उन्हें पता था कि इस फील्ड के जरिए आजाद भारत को कहां तक पहुंचाया जा सकता है.
CDRI के डायरेक्टर रहे
डॉ. नित्यानंद अपनी दूसरी पीएचडी करने के लिए इंग्लैंड के कैम्ब्रिज (Cambridge) गए जहां उन्होंने बाइलॉजिकल साइंस में कई अहम जानकारी जुटाई. इसके बाद वो भारत लौटे और फिर रोजाना दोपहर का वक्त स्टडीज में बिताने लगे. वो देर शाम तक पढ़ाई और रिसर्च में खुद को झोंक देते थे. उन्होंने साल 1951 में सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टीट्यूट (Central Drug Research Institute) ज्वाइन किया था. 1974 से लेकर 1984 तक वो सीडीआरआई (CDRI) के डायरेक्टर रहें.
भारतीय महिलाओं को दी 'सहेली'
अपने कार्यकाल के दौरान डॉ. नित्यानंद ने नॉन-स्टेरॉयड कॉन्ट्रासेप्टिव पिल बनाने में अहम रोल अदा किया. ये पिल का नाम Ormeloxifene रखा गया, फिर वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) ने इसे Centchroman नाम दिया. जिसे बाद में ट्रेड नेम 'सहेली' के नाम से बेचा जाने लगा. आज के दौर में ये छाया (Chhaya) के नाम से बिकती है, हालांकि सरकारी अस्पताल और स्वास्थ्य क्रेंद्र में ये बिलकुल मुफ्त दी जाती है.
पद्मश्री अवॉर्ड से सम्मानित
इसके अलावा डॉ. नित्यानंद ने मलेरिया, कुष्ठ रोग और टीबी की बीमारियों पर रिसर्च किया और इसकी दवाई तैयार करने में अहम रोल अदा किया. उन्हें जेनेरिक फार्मा का जनक भी कहा जाता है. मेडिसिन के फील्ड में डॉ. नित्यानंद के योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें साल 2012 में पद्मश्री अवॉर्ड देकर सम्मानित किया था.
'सहेली' ने लाया बदलाव
भारत की आबादी आजादी के बाद से ही लगातर बढ़ रही थी, ऐसे में सरकार ने नारा दिया 'हम दो, हमारे दो' यानी एक दंपति को 2 ही बच्चे हों, लेकिन इस मिशन को पूरा करना आसान काम नहीं था, ऐसे में गर्भनिरोधक गोली 'सहेली' ने देश में क्रांतिकारी बदलाव लाया. साथ ही इसने इंडिया में पॉपुलेशन कंट्रोल में भी अहम रोल निभाया.
1990 के दशक में हुई पॉपुलर
'सहेली' दवा एस्ट्रोजन रिसेप्टर के तौर पर काम करती है, जो भारत में 1990 के दशक से ही मिल रही है. इसे कई और ट्रे़ड नेम से भी बेचा गया है जिनके नाम हैं Ormalin, Novex-DS, Centron और Sevista. शुरुआत में इस मेडिसिन को कॉन्ट्रासेप्टिव के तौर पर इस्तेमाल किया गया लेकिन ये गर्भाशय की असामान्य ब्लीडिंग (Dysfunctional Uterine Bleeding) और एडवांस्ड ब्रेस्ट कैंसर (Advanced Breast Cancer) के लिए असरदार है.
साइड इफेक्ट्स क्या हैं?
'सहेली' को हफ्ते में एक बार या डॉक्टर की सलाह पर इससे ज्यादा बार खाया जा सकता है. कई मामलों में इसे पहले 3 महीने में हफ्ते 2 बार खाने कहा जाता है. 30 एमजी इसका स्टैंडर्ड डोज है, लेकिन 60 एमजी के डोज से प्रेग्नेंसी का चांत 38 फीसदी तक बढ़ जाता है. जबकि इस पिल का फेलियर रेट महज 1 से 2 फीसदी है. अगर साइड इफेक्ट्स के बारे में बात करें तो ये पीरियड्स में देरी (Delayed Menstruation) की वजह बन सकता है.