200 सालों तक तटस्थ रहा स्वीडन..अब बना NATO का सदस्य, दुनिया पर क्या होगा असर?
NATO: इसको ऐसे भी समझना जरूरी है कि स्वीडन के इस फैसले के साथ ही सुरक्षा के लिहाज से जबरदस्त वैश्विक परिवर्तन हुआ है. बाल्टिक तट रूस के एक छोटे से हिस्से और कैलिनिनग्राद को छोड़कर पूरी तरह से नाटो क्षेत्र बन गया है.
Sweden Joins NATO: दूसरे विश्व युद्ध के बाद जब सोवियत रूस के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए 12 देशों ने एक ग्रुप का गठन किया तो उस समय शायद रूस ने भी नहीं सोचा होगा कि यह ग्रुप आगे चलकर कैसा स्वरूप हासिल कर लेगा, यह कितना शक्तिशाली होगा. यह ग्रुप नाटो ही था. नाटो चर्चा में है क्योंकि स्वीडन इसका हिस्सा बन गया है. व्हाइट हाउस की वेबसाइट पर प्रकाशित एक बयान के अनुसार, स्वीडन गुरुवार 7 मार्च को आधिकारिक तौर पर नाटो का सदस्य बन गया है. अब इस फैसले के बाद दुनिया की राजनीति में क्या असर होगा, इसे भी समझा जाना चाहिए.
असल में सच तो यह भी है कि नाटो में शामिल होकर स्वीडन ने 200 साल की गुटनिरपेक्षता को खत्म कर दिया है. लेकिन इसके कारण भी एक नहीं, बल्कि कई हैं. यह कदम यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के बाद उठाया गया है जो क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए भी एक महत्वपूर्ण मोड़ है. स्वीडिश प्रधानमंत्री उल्फ क्रिस्टर्सन ने नाटो में प्रवेश को "स्वतंत्रता की जीत" बताया.
अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर गहरी नजर रखने वालों को यह समझने में देर नहीं लगेगी की यह रूस के लिए झटका भी है. स्वीडिश प्रधानमंत्री उल्फ क्रिस्टर्सन ने कहा कि यह सदस्यता स्वीडन के लिए एक स्वतंत्र, लोकतांत्रिक और संप्रभु विकल्प है. अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने भी स्वीडन के इस कदम का स्वागत किया. उन्होंने कहा कि यह नाटो को मजबूत बनाता है और यूरोप और उत्तरी अमेरिका के बीच सुरक्षा संबंधों को मजबूत करता है.
बाल्टिक तट अब नाटो का गढ़
स्वीडन के नाटो में शामिल होने के साथ ही, बाल्टिक तट, रूस के एक छोटे से हिस्से और कालिनिनग्राद को छोड़कर, पूरी तरह से नाटो क्षेत्र बन गया है. यह रणनीतिक कदम बाल्टिक राज्यों - एस्टोनिया, लात्विया और लिथुआनिया - की सुरक्षा को मजबूत करेगा, जो पहले रूसी आक्रमण की आशंका से चिंतित थे.
आसान सैन्य पहुंच
स्वीडन की सदस्यता से नाटो सदस्यों के लिए एस्टोनिया, लात्विया और लिथुआनिया तक सैन्य बलों और उपकरणों को जहाज द्वारा आसानी से पहुंचाना संभव हो जाएगा. यह रक्षा क्षमता को बढ़ाएगा और किसी भी संभावित खतरे का सामना करने के लिए त्वरित प्रतिक्रिया सुनिश्चित करेगा.
रणनीतिक महत्व का गॉटलैंड द्वीप
स्वीडन का गॉटलैंड द्वीप, जो बाल्टिक सागर में स्थित है, रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है. यह द्वीप नाटो को रूस के खिलाफ एक मजबूत स्थिति प्रदान करता है और बाल्टिक राज्यों को सुरक्षा प्रदान करता है.
सुरक्षा की बढ़ती भावना
पिछले साल, रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण के बाद, स्वीडन और फिनलैंड ने नाटो सदस्यता के लिए आवेदन किया था. फिनलैंड पहले ही नाटो का हिस्सा बन चुका है, और स्वीडन के शामिल होने से बाल्टिक क्षेत्र में सुरक्षा की भावना बढ़ेगी.
तुर्की और हंगरी की बाधा
हालांकि, तुर्की और हंगरी ने स्वीडन के नाटो सदस्यता आवेदन पर अपनी वीटो शक्ति का इस्तेमाल किया था, जिसके कारण स्वीडन की सदस्यता में देरी हुई. लेकिन बाद में, इन दोनों देशों ने भी स्वीडन की सदस्यता को स्वीकृति दे दी, जिसके बाद स्वीडन आधिकारिक तौर पर नाटो का 32वां सदस्य बन गया.
स्वीडन: तटस्थता का त्याग, सुरक्षा का चुनाव
200 साल की तटस्थता का अंत
कुछ दिन पहले, स्वीडन के प्रधानमंत्री उल्फ क्रिस्टरसन ने एक ऐतिहासिक घोषणा करते हुए कहा कि स्वीडन 200 साल की तटस्थता और सैन्य गुटनिरपेक्षता को त्यागकर नाटो में शामिल हो रहा है. यह निर्णय यूरोपीय सुरक्षा परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण बदलाव लाएगा.
सुरक्षा का चुनाव
क्रिस्टरसन ने इस निर्णय के पीछे की वजह बताते हुए कहा कि स्वीडन अपनी स्वतंत्रता, लोकतंत्र और मूल्यों की रक्षा के लिए नाटो में शामिल हो रहा है. उन्होंने कहा, "हम दूसरों के साथ मिलकर अपनी स्वतंत्रता, अपने लोकतंत्र और अपने मूल्यों की रक्षा कर रहे हैं."
लगे हाथ नाटो को भी समझ लीजिए
(साथ में- शीत युद्ध का प्रतीक, बदलती दुनिया में उसकी भूमिका)
1949: रूस को रोकने के लिए
में दूसरे विश्व युद्ध के बाद 1949 में सोवियत रूस के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए 12 देशों के एक समूह ने मिलकर नाटो (उत्तर अटलांटिक संधि संगठन) की स्थापना की. इस समूह में अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन और फ्रांस जैसे प्रमुख देश शामिल थे.
शीत युद्ध का प्रतीक
नाटो शीत युद्ध का प्रतीक बन गया. यह एक सैन्य गठबंधन था जिसके तहत सदस्य देशों ने एक दूसरे की रक्षा करने का वादा किया था. इसका मतलब था कि यदि किसी सदस्य देश पर हमला होता है, तो सभी सदस्य देश उसकी रक्षा के लिए युद्ध में शामिल होंगे.
वॉरसा पैक्ट: सोवियत रूस का जवाब
1955 में, सोवियत रूस ने नाटो के जवाब में अपना अलग सैन्य गठबंधन बनाया, जिसे वॉरसा पैक्ट नाम दिया गया. इसमें पूर्वी यूरोप के साम्यवादी देश शामिल थे.
शीत युद्ध का अंत और नाटो का विस्तार
1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद, वॉरसा पैक्ट का हिस्सा रहे कई देशों ने दल बदल लिया और नाटो में शामिल हो गए. आज नाटो में 32 सदस्य देश हैं, जिनमें से अधिकांश यूरोप में स्थित हैं. शीत युद्ध के बाद नाटो की भूमिका बदल गई है. अब यह केवल रूस को रोकने के लिए नहीं, बल्कि आतंकवाद, साइबर हमलों और अन्य खतरों से भी निपटने के लिए काम करता है.
स्वीडन और नाटो: बढ़ती सुरक्षा या गहराते खतरे?
(रूस को झटका, स्वीडन को सुरक्षा)
स्वीडन का नाटो में शामिल होना रूस के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है. सोवियत संघ के विघटन के बाद, नाटो न केवल सक्रिय रहा है, बल्कि उसने अपना दायरा भी बढ़ाया है. रूस नाटो के किसी भी तरह के विस्तार का विरोध करता है और राष्ट्रपति पुतिन का दावा है कि पश्चिमी देश नाटो का इस्तेमाल रूस के इलाकों में घुसपैठ करने के लिए कर रहे हैं.
खतरे की आशंका
कुछ लोगों का मानना है कि स्वीडन के नाटो में शामिल होने से रूस और पश्चिमी देशों के बीच तनाव बढ़ सकता है. यह तनाव युद्ध का रूप भी ले सकता है. रूस ने पहले ही चेतावनी दी है कि यदि स्वीडन और फिनलैंड नाटो में शामिल होते हैं तो वह "सैन्य-तकनीकी" जवाब देगा.
सुरक्षा में वृद्धि
हालांकि, स्वीडन और नाटो का मानना है कि स्वीडन की सदस्यता से क्षेत्रीय सुरक्षा में वृद्धि होगी. नाटो के सदस्य देशों के बीच एक समझौता है कि यदि किसी एक देश पर हमला होता है, तो सभी सदस्य देश उसकी रक्षा के लिए युद्ध में शामिल होंगे.