Privilege Motion against PM Modi: देश की संसद में जाति जनगणना (Caste census) संग्राम मचा है. इस बीच कांग्रेस ने सांसद अनुराग ठाकुर के भाषण का वीडियो X पर पोस्ट करने के लिए PM मोदी (Narendra Modi) के खिलाफ विशेषाधिकार प्रस्ताव (Privilege Motion) लाने का नोटिस दिया है. इसमें कथित तौर पर सदन की कार्यवाही से निकाले गए अंश का मुद्दा शामिल है. लोकसभा (Lok Sabha) में बजट पर अपने भाषण के दौरान भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर की कुछ टिप्पणियों को स्पीकर ओम बिरला ने हटवा दिया था. जाति जनगणना से जुड़ी मांग को लेकर राहुल गांधी पर अनुराग ठाकुर (Anurag Thakur on caste census) की एक टिप्पणी ने बवाल मचा दिया था.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING


गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) के खिलाफ राज्यसभा में विशेषशाधिकार हनन का नोटिस (Privilege notice against Amit Shah) लाया गया है. वहीं केरल से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के तीन सांसदों ने राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ से अनुरोध किया है कि वो केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को वायनाड त्रासदी पर ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के दौरान अपने बयान को स्पष्ट करने का निर्देश दें. शाह ने कहा था- 'राज्य ने केंद्र के मौसम संबंधी अलर्ट को नजरअंदाज कर दिया.'


ऐसे में सवाल उठ रहा है कि आखिर ये विशेषशाधिकार हनन (what is Privilege motion) क्या होता है? 


संसद की कार्रवाई चलाने के लिए कुछ नियम होते हैं. कुछ नियम सांसदों को कुछ अधिकार देते हैं. हालांकि इन विशेषाधिकारों की कोई संहिताबद्ध सूची नहीं है. लेकिन इसमें संसदीय बहस के दौरान स्वतंत्र अभिव्यक्ति का अधिकार शामिल है, ताकि सांसद इस पर अदालती कार्यवाही के लिए उत्तरदायी न हों.


पंजाब से कांग्रेस सांसद चरणजीत सिंह चन्नी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का नोटिस दिया है. कांग्रेस सांसद ने अनुराग ठाकुर के भाषण के एक्सपंज्ड हिस्से को ट्वीट करने पर आपत्ति जताई है. अब लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को ये तय करना है कि प्रधानमंत्री के खिलाफ प्रस्ताव लाया जाए या नहीं. 


पंजाब के जालंधर से लोकसभा सदस्य चन्नी ने इस नोटिस में दावा किया है कि प्रधानमंत्री मोदी ने ठाकुर के भाषण के उस अंश वाला वीडियो सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर साझा किया जिसे सदन की कार्यवाही से हटा दिया गया था. उन्होंने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री मोदी का यह कदम सदन के विशेषाधिकार का हनन है.


लोकसभा नियमावली की नियम संख्या 222 जान लीजिए


गौरतलब है कि लोकसभा की कार्यवाही सदन की नियम पुस्तिका (रूलिंग) से चलती है. रूलबुक में एक अध्याय विशेषाधिकार प्रस्ताव से संबंधित है. संसद की रूलबुक में वर्णित नियम संख्या 222 में कहा गया है, 'कोई भी सदस्य, लोकसभा अध्यक्ष की सहमति से किसी दूसरे सदस्य या लोकसभा या किसी समिति के खिलाफ विशेषाधिकार उल्लंघन का प्रस्ताव ला सकता है.' नियम 225(1) में कहा गया है कि अगर लोकसभा अध्यक्ष नियम 222 के तहत विशेषाधिकार प्रस्ताव के नोटिस से सहमत होते हैं तो वो सदन की कार्यवाही के दौरान नोटिस देने वाले सदस्य को प्रस्ताव लाने की अनुमति दे सकते हैं. उनके कहने पर नोटिस देने वाला सदस्य अपनी सीट पर खड़ा होकर प्रस्ताव के बारे में संक्षिप्त बयान दे सकता है. वहीं अगर लोकसभा के सभापति ने नोटिस अस्वीकार करके उस कथित प्रस्ताव से अपनी सहमति नहीं जताई तो वह तत्काल अपने आसन से अपना फैसला सुना सकते हैं. ऐसा करते वक्त वो सदस्य का दिया नोटिस पढ़ सकते हैं और आखिर में यह बता सकते हैं कि इसे ठुकरा दिया गया है.


कांग्रेस का नोटिस राजनीति के अलावा और कुछ नहीं: BJP


सरकार के सूत्रों के हवाले से खबर है कि प्रधानमंत्री के खिलाफ कांग्रेस सांसद चन्नी के नोटिस पर आगे कदम उठाए जाने की संभावना नहीं है. इसके पीछे ये कहा जा रहा है कि ठाकुर ने अपने संबोधन में किसी का नाम नहीं लिया, जब उन्होंने कहा कि ‘जिनकी जाति पता नहीं, वो गणना की मांग कर रहे हैं’.


सूत्रों ने कहा कि ठाकुर की इस टिप्पणी को कार्यवाही से हटाया नहीं गया है, क्योंकि इसमें सीधे तौर पर किसी का जिक्र नहीं था. उन्होंने ने बताया कि ठाकुर के भाषण का एकमात्र हिस्सा जिसे हटाया गया, वह ‘झूठ’ शब्द का इस्तेमाल था, जिसे सदन के नियमों के अनुसार असंसदीय माना जाता है.


सूत्रों ने कहा कि यह विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव का मामला ही नहीं बनता, हालांकि इस मामले में अंतिम निर्णय लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को लेना है.


भाजपा से जुड़े सूत्रों ने कहा कि विपक्ष के नेता राहुल गांधी समेत कांग्रेस सांसदों द्वारा ऐसे भाषणों के वीडियो लिंक साझा करने का इतिहास रहा है, जिसके बड़े हिस्से कार्यवाही से हटा दिए जाते हैं. उन्होंने दावा किया कि कांग्रेस का नोटिस राजनीति के अलावा और कुछ नहीं है.


पहले भी कई बार विशेषाधिकार हनन नोटिस का सामना कर चुके मोदी समेत अन्य प्रधानमंत्री


विशेषाधिकार प्रस्ताव किसी भी सदस्य द्वारा लाया जा सकता है और सभापति द्वारा स्वीकार किया जा सकता है. जिसके बाद वे इसे विशेषाधिकार समिति के पास भेज सकते हैं. साल 2000 से शुरू हुई नई सदी के ऐसे मामलों की बात करें तो देश की एनडीए सरकार के प्रधानमंत्री के खिलाफ ऐसा पहला नोटिस मई 2002 में आया था. तब कांग्रेस के मुख्य सचेतक प्रिय रंजन दासमुंशी ने तत्कालीन PM अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ विशेषाधिकार प्रस्ताव पेश किया था. उसमें लिखा था कि गुजरात दंगों के संदर्भ में गोवा में उनके द्वारा दिए गए एक विवादित भाषण पर प्रधानमंत्री वाजपेई को सदन में जवाब दाखिल करना चाहिए क्योंकि उन्होंने अपने बयान में लोकसभा को गुमराह किया था.


'इंडियन एक्सप्रेस' की एक रिपोर्ट के वाजपेयी के खिलाफ लाए गए विशेषाधिकार हनन नोटिस में कहा गया था- 'वाजपेई ने अपने भाषण में मुस्लिमों की गलत व्याख्या की थी.'


नोटिस आया तो वाजपेई ने अपने स्पष्टीकरण में जोर देते हुए कहा कि उनके भाषण की भावना में कुछ गलत नहीं था. उन्होंने लोकसभा में कहा-  'इस्लाम दो प्रकार के हैं, एक 'सहिष्णु' और दूसरा 'जिहादी'. ऐसे में उनका इरादा इस्लाम का अनादर करने का नहीं था.'


कांग्रेस ने उनके जवाब को अपनी नैतिक जीत बताया और स्पीकर के आदेश को स्वीकार कर लिया. 


मार्च 2011 में भाजपा ने तत्कालीन यूपीए सरकार की अगुवाई कर रहे PM मनमोहन सिंह के खिलाफ एक विशेषाधिकार प्रस्ताव पेश किया, जिसमें उन पर कैश-फॉर-वोट घोटाले में सदन को 'गुमराह' करने का आरोप लगाया. वो प्रस्ताव सुषमा स्वराज ने पेश किया था. सुनवाई के बाद स्पीकर ने उस विशेषाधिकार प्रस्ताव को खारिज कर दिया.


नवंबर 2013 में पूर्व केंद्रीय मंत्री और पूर्व कांग्रेस नेता नटवर सिंह ने तत्कालीन PM मनमोहन सिंह के खिलाफ विशेषाधिकार प्रस्ताव पेश किया, जिसमें उनकी सरकार पर तेल के बदले भोजन मामले में संयुक्त राष्ट्र द्वारा नियुक्त पैनल के निष्कर्षों में न्यायमूर्ति पाठक समिति की रिपोर्ट को लीक करने का आरोप लगाया गया. सद्दाम हुसैन शासन के दौरान इराक से हुए एक समझौते में नटवर सिंह के बेटे जगत का नाम था.


न्यायमूर्ति पाठक समिति की रिपोर्ट में कहा गया था कि नटवर सिंह और उनके बेटे ने जगत के दोस्त अंदलीब सहगल और उनके रिश्तेदार आदित्य खन्ना ने UN द्वारा स्वीकृत सद्दाम शासन से तीन क्रूड ऑयल कांट्रैक्ट हासिल करने में मदद करने के लिए अपने पद का दुरुपयोग किया. इसके बदले में जिस कंपनी को कांट्रैक्ट मिला उसने उन्हें कमीशन का दिया. संसद में हंगामा हुआ और उसके बाद स्पीकर ने प्रस्ताव खारिज कर दिया.


जुलाई 2018: लोकसभा में मल्लिकार्जुन खड़गे ने राफेल जेट की कीमत पर उनकी टिप्पणियों को लेकर पीएम मोदी और तत्कालीन रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण के खिलाफ विशेषाधिकार प्रस्ताव पेश किया, जिसमें दावा किया गया कि राफेल जेट्स को यूपीए सरकार के दौरान तय किए भाव से ज्यादा दाम पर खरीदा जा रहा है. प्रधानमंत्री ने रक्षा मंत्री के साथ मिलकर जानबूझकर सदन को गुमराह किया है, इसलिए सभापति से अनुरोध किया जाता है कि विशेषाधिकार हनन के इस नोटिस को स्वीकार किया जाए और आगे की कार्यवाही के लिए विशेषाधिकार समिति को भेजा जाए.


अध्यक्ष ने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया, लेकिन मामला विशेषाधिकार समिति के सामने कभी नहीं गया.


फरवरी 2021 में तेलंगाना राष्ट्र समिति (अब भारत राष्ट्र समिति) के सांसदों ने राज्य को आंध्र और तेलंगाना में विभाजित करने वाले आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम के पारित होने पर उनकी टिप्पणियों को लेकर पीएम मोदी के खिलाफ विशेषाधिकार प्रस्ताव पेश किया. उस नोटिस में कहा गया था कि उनका बयान संसद भवन को सबसे खराब और अपमानजनक तरीके से दिखाने का प्रयास करता है, सदन की प्रक्रियाओं और कार्यवाही और उसके कामकाज को बदनाम और अपमानित करता है. हालांकि इस प्रस्ताव को विशेषाधिकार समिति द्वारा कभी नहीं लिया गया.


मार्च 2023 में कांग्रेस नेता के सी वेणुगोपाल ने नेहरू परिवार के कथित अपमान को लेकर पीएम मोदी के खिलाफ विशेषाधिकार प्रस्ताव पेश किया था. उसमें लिखा था कि प्रथम दृष्टया मजाक में की गई टिप्पणियां न केवल अपमानजनक हैं बल्कि नेहरू परिवार के सदस्यों विशेषकर सोनिया गांधी और राहुल गांधी के लिए अपमानजनक और मानहानिकारक भी हैं. तब मोदी ने सवाल किया था कि गांधी और प्रियंका गांधी ने नेहरू उपनाम क्यों नहीं अपनाया? विशेषाधिकार समिति ने कभी इस मामले को नहीं उठाया.


जुलाई 2024 में अब जाति जनगणना पर अनुराग ठाकुर के बयान को अपने सोशल मीडिया हैंडल पर शेयर करने की वजह से पीएम मोदी के खिलाफ मोदी 3.0 में लाया गया ये पहला विशेषाधिकार हनन नोटिस है. इस नोटिस का क्या नतीजा निकलेगा ये अभी भविष्य के गर्भ में है.


अब बात गृह मंत्री शाह की


गृह मंत्री अमित शाह पर वायनाड त्रासदी को लेकर गलतबयानी करने का आरोप केरल के कम्युनिस्ट पार्टी के सांसदों ने लगाया है. केरल CM पी विजयन ने बुधवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के उस दावे को खारिज कर दिया कि राज्य सरकार को भारी बारिश के कारण वायनाड में प्राकृतिक आपदा के बारे में 23 जुलाई को ही चेतावनी दे दी गई थी.


विजयन ने कहा कि भूस्खलन से पहले भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने जिले के लिए केवल ‘ऑरेंज अलर्ट’ जारी किया था. हालांकि, जिले में 500 मिलीमीटर से अधिक बारिश हुई, जो आईएमडी द्वारा लगाए गए पूर्वानुमान से बहुत अधिक थी.


विजयन ने यहां संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘मंगलवार सुबह भूस्खलन के बाद ही जिले के लिए रेड अलर्ट जारी किया गया था.’ मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि यह ‘दोषारोपण’ का समय नहीं है और वह शाह की टिप्पणियों को प्रतिकूल रूप से नहीं ले रहे हैं.


(पीटीआई इनपुट के साथ)