Jammu-Kashmir Election 2024: जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव का बिगुल क्या बजा, फिजाओं में जैसे नई बहार सी आ गई. एक दशक बाद घाटी में चुनाव होने जा रहे हैं. तमाम राजनीतिक पार्टियां रणनीति बनाने से लेकर उम्मीदवार उतारने में जुट गई हैं. चुनावों के लिए कांग्रेस और एनसी ने भी हाथ मिला लिया है और सीट बंटवारे पर भी सहमति बन गई है. सीट-बंटवारे के फॉर्मूले के मुताबिक, नेशनल कांफ्रेंस 51 जबकि कांग्रेस 32 सीट पर चुनाव लड़ेगी. इसके अलावा दोनों पार्टियों के गठबंधन में शामिल मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) और जम्मू-कश्मीर नेशनल पैंथर्स पार्टी को एक-एक सीट दी गई है. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

हालांकि पांच सीटें ऐसी हैं, जहां दोनों ही पार्टियों के बीच दोस्ताना मुकाबला होगा. हालांकि कांग्रेस की जम्मू-कश्मीर इकाई के अध्यक्ष तारिक हामिद कर्रा ने कहा कि मुकाबला सौहार्दपूर्ण एवं अनुशासित तरीके से होगा. नेताओं ने कहा कि आने वाले समय में बताया जाएगा कि किस सीट पर कौनसी पार्टी चुनाव लड़ेगी, साथ ही उम्मीदवारों की सूची भी जारी की जाएगी. 


लेकिन इन दोनों ही पार्टियों के गठबंधन से बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी हो गई हैं. भले ही बीजेपी दावा करती रही है कि घाटी में 370 हटने के बाद परिस्थितियों में तेजी से सुधार आया है. लेकिन विपक्षी पार्टियां लगातार कश्मीर में बढ़ते आतंकवाद, बेरोजगारी समेत अन्य मुद्दे उठाती रही हैं. 


कश्मीर में बीजेपी के लिए सबसे बड़ी मुश्किल विपक्ष की नेगेटिव पॉलिटिकल रणनीति है. कश्मीर में मुस्लिम आबादी ज्यादा है और माना जाता है कि कश्मीर में मुस्लिमों के साथ बीजेपी की कैमिस्ट्री ज्यादा खास नहीं रही है.


गठबंधन के बाद से विपक्षी पार्टियों ने बीजेपी को घेरना शुरू कर दिया है. जम्मू-कश्मीर में प्रशासन की कमान फिलहाल एलजी के हाथों में है. जम्मू-कश्मीर कांग्रेस के प्रवक्ता रविंदर शर्मा ने कहा कि कांग्रेस और एनसी के गठबंधन से बीजेपी डर गई है.  उन्होंने बीजेपी और गृह मंत्री अमित शाह की आलोचना की कि वे उन पार्टियों पर उंगली उठा रहे हैं, जिनके साथ वे पहले जम्मू-कश्मीर और केंद्र में गठबंधन कर चुके हैं. शर्मा ने कहा, "भाजपा और गृह मंत्री को पहले यह बताना चाहिए कि उन्होंने पीडीपी के साथ सरकार क्यों बनाई, जिस पार्टी पर वे अब इन मुद्दों पर एनसी से कहीं ज़्यादा समस्या पैदा करने का आरोप लगा रहे हैं."


बात अगर कश्मीर में 2014 में हुए विधानसभा चुनाव की करें तो पीडीपी को 28 सीटें मिली थीं, जबकि बीजेपी ने 25 सीटें जीती थीं और 15 सीटें उमर अब्दुल्ला की एनसी को मिली थीं. जबकि कांग्रेस ने 12 सीटें जीती थीं. इस चुनाव में बीजेपी ने पीडीपी के साथ मिलकर सरकार बनाई थी, लेकिन कई मुद्दों को लेकर समर्थन वापस ले लिया था. 


जम्मू-कश्मीर में कुल 90 विधानसभा सीटें हैं. कांग्रेस और एनसी के गठबंधन से यकीनन न सिर्फ बीजेपी को झटका लगेगा बल्कि उसकी कश्मीर में स्थिति और भी खराब हो सकती है. हालांकि बीजेपी ने घाटी में कमल खिलाने के मकसद से मुस्लिम उम्मीदवार भी उतारे हैं. भाजपा ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के लिए सोमवार को अपने उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी की. 


पार्टी ने सोमवार सुबह एक लिस्ट जारी की और बाद में उसे वापस लेते हुए पहले चरण के लिए 16 उम्मीदवारों की नई सूची जारी की. जम्मू में पार्टी के कुछ कार्यकर्ता उम्मीदवारों की लिस्ट से नाखुश थे और चाहते थे कि शीर्ष नेतृत्व इस पर पुनर्विचार करे. बाद में भाजपा ने पहले चरण के लिए ही 16 उम्मीदवारों की नई सूची जारी की. इसके अलावा पीडीपी पहले चरण की सभी 24 सीटो पर चुनाव लड़ रही है. महबूबा मुफ्ती की बेटी इल्तिजा मुफ्ती भी इनमें शामिल हैं. वहीं आप पार्टी ने अब तक 13 सीटों की घोषणा की है.


बीजेपी के लिए सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि उसका बड़ा सियासी आधार जम्मू क्षेत्र में है. जबकि कश्मीर में उसके पास उतना समर्थन नहीं है. जबकि कांग्रेस और एनसी कश्मीरी सियासत के पुराने खिलाड़ी रहे हैं. दोनों पार्टियों के साथ आने से मुस्लिम वोट एकमुश्त उनको मिल सकते हैं. इसी कारण से बीजेपी ने पहले चरण की 15 सीटों में से 8 पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं. 


कश्मीर रीजन में मुस्लिम वोटों का दबदबा ज्यादा है. ऐसे में तमाम पार्टियों की कोशिश यही है कि ज्यादा से ज्यादा वोट हासिल किए जाएं. बीजेपी यह फॉर्मूला पंचायत चुनाव में भी अपना चुकी है, जो कुछ हद तक कामयाब रहा था. बीजेपी मुस्लिम बहुल इलाकों में मुसलमान उम्मीदवारों पर दांव लगाया था. इसलिए विधानसभा चुनाव में भी एनसी-कांग्रेस की काट के लिए बीजेपी वही फॉर्मूला लाई है.


हालांकि अगर विधानसभा चुनाव में नतीजे चौंकाने वाले आए तो पीडीपी एक बार फिर किंगमेकर बन सकती है. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता.पीडीपी का राज्य में मजबूत वोटबैंक है. पिछली बार के चुनाव में सबसे ज्यादा सीटें पीडीपी को ही मिली थीं. लेकिन पिछले 10 वर्ष में झेलम में काफी पानी बह चुका है. बीजेपी और पीडीपी की विचारधारा अलग होने के बावजूद दोनों ही पार्टियों ने गठबंधन कर सरकार बनाई थी. लेकिन जब से 370 हटा है, पीडीपी लगातार बीजेपी को घेर रही है. ऐसे में इस बार अगर उलटफेर होता है तो बीजेपी के लिए पीडीपी खुद मुश्किल बढ़ा सकती है.   


ऐसे में बीजेपी 370 हटने के बाद कश्मीर में बदले माहौल, डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स को आधार बनाते हुए चुनावी मैदान में है. अब देखना होगा कि क्या वह इनके सहारे एनसी-कांग्रेस के गठबंधन के चक्रव्यूह से पार पा सकेगी या नहीं.