दुनियाभर में मेडिकल रिपोर्ट्स अक्सर मरीजों के लिए एक जटिल और डरावना अनुभव बन जाती हैं. हालांकि यह रिपोर्ट्स चिकित्सकों द्वारा लिखी जाती हैं, जिसका उद्देश्य मेडिकल विशेषज्ञों को जानकारी देना होता है, न कि सामान्य मरीजों को समझाना. इस वजह से, मरीज अक्सर रिपोर्ट के जटिल शब्दों और तकनीकी भाषा से घबरा जाते हैं, और उनकी चिंता बढ़ जाती है, जिससे तबीयत के और बिगड़ने का जोखिम अधिक होता है.


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एक हालिया अध्ययन ने यह साबित किया है कि अगर मेडिकल रिपोर्ट्स को मरीजों के लिए सरल और समझने योग्य तरीके से लिखा जाए, तो उनकी चिंता कम हो सकती है. मिशिगन यूनिवर्सिटी की डॉक्टर कैथरीन लैपेडिस और उनके सहयोगियों द्वारा किए गए इस अध्ययन में पाया गया कि मरीजों के लिए तैयार की गई "मरीज-केंद्रित रिपोर्ट्स" उनकी स्थिति को बेहतर तरीके से समझने में मदद करती हैं.


क्या है पूरी स्टडी 

मिशिगन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन किया जिसमें यह पता लगाने की कोशिश की गई कि क्या मरीज सामान्य पैथोलॉजी रिपोर्ट्स को समझ सकते हैं और क्या मरीज-केंद्रित रिपोर्ट्स उनके समझने में सुधार ला सकती हैं. अध्ययन में 55 से 84 साल के 2,238 वयस्कों को शामिल किया गया। इन वयस्कों का प्रोस्टेट कैंसर का कोई इतिहास नहीं था, और उन्हें यूरिन से जुड़ी समस्याओं के लिए एक काल्पनिक बायोप्सी रिपोर्ट दी गई. इन रिपोर्ट्स को सामान्य मेडिकल भाषा और मरीज-केंद्रित भाषा में प्रस्तुत किया गया. 


मेडिकल रिपोर्ट से बढ़ता है स्ट्रेस

अधिकारियों ने इन लोगों से पूछा कि रिपोर्ट पढ़ने के बाद उनकी चिंता का स्तर क्या है. परिणामों ने यह स्पष्ट किया कि अधिकांश लोग सामान्य मेडिकल रिपोर्ट को नहीं समझ पाए और उनकी चिंता का स्तर अधिक था. वहीं, मरीज-केंद्रित रिपोर्ट पढ़ने वाले 93% लोगों ने अपनी स्थिति को सही तरीके से समझ लिया और उनकी चिंता में कमी आई.

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मरीज की तबीयत पर रिपोर्ट्स की भूमिका

अध्ययन में सामने आया कि जब मरीजों को जटिल मेडिकल शब्दों का सामना करना पड़ता है, तो वे घबराते हैं और अपनी स्थिति को लेकर चिंता महसूस करते हैं. उदाहरण के लिए, एक सामान्य रिपोर्ट में "प्रोस्टेटिक एडेनोकार्सिनोमा" जैसे शब्द होते हैं, जिसे समझना मरीजों के लिए कठिन होता है. इसके बजाय, मरीज-केंद्रित रिपोर्ट में इसे सीधे "प्रोस्टेट कैंसर" के रूप में पेश किया जाता है, जो सरल और समझने में आसान होता है. अध्ययन में यह भी पाया गया कि रिपोर्ट पढ़ने के बाद मरीजों की चिंता का स्तर उनके वास्तविक स्वास्थ्य खतरे से मेल खाता था.

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एक्सपर्ट का सुझाव 

अधिकारियों का कहना है कि मरीजों की मानसिक स्थिति और स्वास्थ्य पर असर डालने वाली रिपोर्ट्स के लिए इसे बदलने की आवश्यकता है. अध्ययन के लेखक यह सुझाव देते हैं कि अस्पतालों और स्वास्थ्य संस्थानों को मरीज-केंद्रित रिपोर्ट्स को अपनी प्रक्रिया का हिस्सा बनाना चाहिए. इससे मरीजों को अपनी स्वास्थ्य स्थिति को सही तरीके से समझने में मदद मिलेगी और उनकी चिंता में भी कमी आएगी. 

-एजेंसी-