नई दिल्ली: हर साल देश के आठ करोड़ लोगों की आर्थिक सेहत सिर्फ बीमारियों की वजह से बिगड़ जाती है. स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था ऐसी है कि 40 फीसदी मरीजों को इलाज के लिए खेत-खलिहान तक बेचने पड़ जाते हैं. एम्स की स्टडी ने भी इस बात को साबित भी किया है. दिल्ली एम्स और हरियाणा के कॉम्प्रहेंसिव रुरल हेल्थ सर्विसेज प्रोजेक्ट में इलाज कराने आए 374 मरीजों पर अध्ययन किया गया.


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बीमारी की वजह से पहले 53.3% लोग नौकरी में थे
ग्रामीण क्षेत्रों में बीमारी की वजह से पहले 53.3 फीसदी लोग नौकरी कर रहे थे लेकिन बीमारी होने के बाद ऐसे लोगों की संख्या आधी रह गई. वहीं शहरी क्षेत्र में 65.5 फीसदी मरीज नौकरी कर रहे थे जबकि बीमारी के बाद 23.4 फीसदी ही नौकरी में रह पाए. 


बीमारी के चलते हर दिन 4300 रुपए तक का घाटा
दिल्ली समेत अलग-अलग राज्यों से एम्स आने वाले 456 मरीजों पर हुए अध्ययन के मुताबिक दिल्ली के मरीज को एक विजिट पर 1900 रुपए का नुकसान होता है जबकि बाहर से आए मरीज को 4300 रुपए का नुकसान होता है. इसमें मरीज और तीमारदार की एक दिन की आय और आने-जाने और खाने का खर्च जुड़ा है. 


बजट में बहुत बड़ा आवंटन
आम बजट 2018-19 में मोदी सरकार ने स्वास्थ्य क्षेत्र में क्रांतिकारी कदम उठाने की घोषणा की है, लेकिन सवाल उठ रहा है कि आखिर इसके लिए पैसे कहां से आएंगे. बजट को बारीकी से देखने पर पता चलता है कि सरकार ने इस मद में आवंटन में कोई बहुत बड़ा आवंटन तो किया ही नहीं है. इसमें स्वास्थ्य मंत्रालय का कुल बजट 56,226 करोड़ रुपए है, जो पिछले बजट की तुलना में केवल 12 फीसदी अधिक है.


खर्च को बढ़ाकर जीडीपी का 2.5 फीसदी
वर्ष 2017 के आम बजट में स्वास्थ्य सेक्टर के लिए आवंटन में 25 फीसदी तक की वृद्धि की गई थी. वर्ष 2017 में राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति में इसका संकेत दिया गया था कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में खर्च को बढ़ाकर जीडीपी का 2.5 फीसदी किया जाएगा लेकिन यह अब भी इससे आधा है.


(इनपुट एजेंसी से भी)