अमेरिका ने आखिरकार विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) से अपनी सदस्यता वापस ले ली है. सरसरी निगाह से देखें तो 194 सदस्यो वाले संगठन में एक देश के निकलने का सीधा प्रभाव नजर नहीं आता. लेकिन सिर्फ एक अमेरिका के निकल जाने से करोड़ो लोगों पर पड़ने वाला है. दुनियाभर में खास तौर से गरीब जनता में फैली बीमारियों का कोई सुध लेने वाला नहीं बचेगा. हर साल लाखों लोगों की मौत हो सकती है. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

सबसे ज्यादा पैसा देने वाला देश है अमेरिका
प्राप्त जानकारी के मुताबिक WHO को सबसे ज्यादा पैसा अमेरिका से ही मिलता रहा है. WHO के कुल बजट का 15 प्रतिशत (लगभग 893 मिलियन डॉलर) अमेरिका से ही आता है. यानि सालाना खर्च में सबसे ज्यादा पैसा अमेरिका ही देता रहा है. 2021 से ये फंडिंग भी खत्म हो जाएगी. इसके बाद जर्मनी और जापान जैसे देश ही बड़े फंड देने वाले बच जाते हैं लेकिन अमेरिका के मुकाबले ये बेहद कम पैसा देते हैं.


इन गंभीर बीमारियों से हार सकते हैं जंग
जानकारों का कहना है कि अमेरिका द्वारा पैसा रुकने के बाद दुनियाभर में चल रहे परंपरागत बीमारियों से जंग हारने की आशंका है. कोरोना वायरस महामारी (Coronavirus Pandemic) इस वक्त हम सभी के लिए चैलेंज है. लेकिन पिछले कई दशकों से टीबी (TB), मलेरिया (Malaria), कालाजार (Kalazar) और एचआईवी एड्स (HIV AIDS) की बीमारी गरीब और विकासशील देशों के लिए सबसे बड़ी चुनौती बने हुए हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन ऐसी ही बीमारियों के रोकथाम की मुहिम चलाता रहा है ताकि अमीरों की भीड़ में गरीब लोगों की मौत न हो जाए. विशेषज्ञ बता रहे हैं कि विकासशील देशों और गरीब देशों में इन बीमारियों के बढ़ने का खतरा गई गुना बढ़ जाएगा. 


ये भी पढ़ें: कोरोना: मार्केट में आई सबसे सस्ती जेनेरिक Remdesivir, भारतीय कंपनी ने बनाई


उल्लेखनीय है कि कोरोना वायरस संक्रमण को महामारी घोषित करने में देरी और चीन के इशारों पर काम करने का आरोप लगाते हुए अमेरिका ने अप्रैल महीने से ही WHO की फंडिंग रोक दी है. हालांकि तय समझौते के तहत अमेरिका 2021 तक WHO को पैसा देता रहेगा. लेकिन जल्द इसका समाधान नहीं निकाला गया तो गरीब देशों में चल रहे स्वास्थ्य कार्यक्रमों पर बुरा असर पड़ सकता है.


वीडियो भी देखें...