जीवन में मकसद की कमी से हो सकती है ये दिमागी बीमारी, जानिए क्या कहती है लेटेस्ट स्टडी
यह बात जानकर आपको हैरानी होगी कि कोई मकसद न होना आपको बीमारा बना सकता है. जीवन में मकसदों की कमी होने से अल्जाइमर और डिमेंशिया का खतरा होता है. लक्ष्यों के प्रति सजग रहने से इन बीमारियों से दूर रहा जा सकता है.
जीवन में लगभग हर किसी का कोई न कोई मकसद तो जरूर होता है, हालांकि कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जिसका कोई मकसद नहीं होता. यह बात जानकर आपको हैरानी होगी कि कोई मकसद न होना आपको बीमारा बना सकता है. जीवन में मकसदों की कमी होने से अल्जाइमर और डिमेंशिया का खतरा होता है. लक्ष्यों के प्रति सजग रहने से इन बीमारियों से दूर रहा जा सकता है. मेडिकल पत्रिका जामा नेटवर्क ओपन में प्रकाशित एक अध्ययन में ये निष्कर्ष सामने आए हैं.
अध्ययन की प्रमुख लेखिका एंजेलिना सुतिन ने कहा कि जीवन में किसी मकसद का होना हमें दिशा देता है. यह हमारे मस्तिष्क की भलाई का काम करता है. जीवन के नकारात्मक घटनाक्रमों के ये लक्ष्य मस्तिष्क पर हावी नहीं होने देते. अध्ययन में पाया गया कि अधिक मकसद रखने वाले व्यक्तियों में डिमेंशिया, अल्जाइमर और अन्य मनोरोग विकसित होने की संभावना कम है.
30 हजार लोगों पर किया अध्ययन
30 हजार लोगों के पर हुए अध्ययन में ये जानकारी सामने आई है. इसके लिए प्रतिभागियों का वर्ष 2006 से 2021 तक का स्वास्थ्य डाटा की जांच की गई. अध्ययन के दौरान प्रतिभागियों को शोधार्थियों द्वारा पूछे गए कई प्रश्नों का जवाब देना पड़ा.
जीने की इच्छा नहीं रहती
विशेषज्ञों ने कहा, किसी व्यक्ति के लिए जीवन में मकसद की मजबूत भावना होना बहुत महत्वपूर्ण है. जीवन में लक्ष्य नहीं होने से उदासीनता दिमाग पर भारी पड़ने लगती है. इससे व्यक्ति डिमेंशिया में चला जाता है और कई बार जीवन जीने की उसकी इच्छा खत्म होने लगती है. उदासीनता से बचने के लिए जीवन में अपने लक्ष्य को बनाए रखना बेहद महत्वपूर्ण है. यह जीवन की गुणवत्ता को अच्छा करता है.
दिमागी खेल जरूरी
मोनाश यूनिवर्सिटी में स्थित स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ एंड प्रीवेंटिव मेडिसिन में हुए एक अन्य शोध में बताया गया कि दिमागी खेल जैसे क्रॉसवर्ड और शतरंज खेलने से बुजुर्गों में डिमेंशिया की बीमारी का खतरा काफी कम हो जाता है. इन खेलों के साथ कुछ शारीरिक गतिविधियों से बुजुर्गों में 11 प्रतिशत तक डिमेंशिया का खतरा कम किया जा सकता है. 70 साल और उससे ज्यादा के 10,318 ऑस्ट्रेलिया लोगों पर यह शोध किया.