कोरोना महामारी के दौरान यह साफ हो गया कि हवा में मौजूद खतरनाक वायरसों का पता लगाने के लिए तत्काल अलर्ट करने वाले उपकरणों की बेहद जरूरत है. इसी दिशा में साइंटिस्ट ने बड़ी कामयाबी हासिल की है.
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कोरोना महामारी के दौरान यह साफ हो गया कि हवा में मौजूद खतरनाक वायरसों का पता लगाने के लिए तत्काल अलर्ट करने वाले उपकरणों की बेहद जरूरत है. इसी दिशा में वैज्ञानिकों ने बड़ी कामयाबी हासिल की है. रूस, अमेरिका जैसे देशों ने ऐसे अत्याधुनिक सेंसर विकसित किए हैं, जो हवा में वायरस की उपस्थिति का तुरंत पता लगाने में सक्षम हैं. भारत भी इस तकनीक के विकास में पीछे नहीं है. आईआईटी चेन्नई जैसे संस्थान भी इस दिशा में तेजी से काम कर रहे हैं.
अमेरिका के मियामी यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक डॉ. प्रतिम विश्वास ने हाल ही में दून यूनिवर्सिटी में आयोजित राष्ट्रीय एयरोसोल कॉन्फ्रेंस में इस तकनीक की डिटेल जानकारी दी. उन्होंने बताया कि ये सेंसर हवा में मौजूद खतरनाक कण और वायरसों की सटीक पहचान कर सकते हैं. सेंसर न केवल वायरस का पता लगाएंगे, बल्कि यह भी बताएंगे कि वायरस कितना खतरनाक हो सकता है. इस तकनीक का उपयोग वायरस के स्रोत पर ही इसे खत्म करने के लिए भी किया जाएगा. डॉ. विश्वास का कहना है कि अमेरिका और रूस जैसे देशों में इन सेंसरों को कोरोना काल के दौरान विकसित किया गया था. अब इन्हें और उन्नत बनाने का काम चल रहा है, ताकि भविष्य में किसी भी वायरस के प्रसार को रोका जा सके.
भारत में भी हो रहा विकास
दून यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर डॉ. विजय श्रीधर ने बताया कि भारत में भी कुछ बड़े संस्थान इस तकनीक को विकसित करने में जुटे हैं. आने वाले समय में इन सेंसरों का उपयोग देश के प्रमुख शहरों और अस्पतालों में किया जाएगा. यह सेंसर वायरस का तुरंत पता लगाकर संक्रमण को फैलने से रोकने में मदद करेंगे.
बीमारियों की रोकथाम में मददगार
वैज्ञानिकों का दावा है कि इन सेंसरों के माध्यम से कोरोना जैसी घातक बीमारियों को रोकने में बड़ी मदद मिलेगी. हवा में मौजूद वायरसों की पहचान करके समय रहते उचित कदम उठाए जा सकेंगे. खास बात यह है कि ये सेंसर नए वायरस की पहचान और उससे निपटने के उपायों में भी सहायक होंगे.
प्रदूषण रोकने में भी बड़ी भूमिका
इसके अलावा, प्रोफेसर श्रीधर ने बताया कि दुनिया भर में कार्बन कैप्चर तकनीक का भी तेजी से विकास हो रहा है. यह तकनीक वायु प्रदूषण को कम करने में एक बड़ी क्रांति साबित हो सकती है. भारत में एनटीपीसी जैसे संस्थान इस तकनीक का उपयोग कर रहे हैं.
Disclaimer: प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में सामान्य जानकारियों की मदद ली है. आप कहीं भी कुछ भी अपनी सेहत से जुड़ा पढ़ें तो उसे अपनाने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें.