मुंबई में एक 18 साल के लड़के को जब सीने में दर्द उठा और हल्के पसीने की शिकायत के साथ मलाड में स्थित एक अस्पताल के इमरजेंसी रूम में लाया गया, तो उनके माता-पिता को डॉक्टरों के शब्द सुनकर यकीन नहीं हुआ. डॉक्टरों ने उस लड़के के पैरेंट्स को बताया कि उनके बच्चे को दिल का दौरा पड़ा है.


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TOI की एक न्यूज के मुताबिक, पीड़ित एक एथलेटिक किशोर था, रोज क्रिकेट खेलता था और उसके परिवार में किसी को भी हार्ट अटैक नहीं पड़ा हुआ था. लेकिन ईसीजी रीडिंग, इको स्कैन और बढ़े हुए एंजाइम के लेवल ने यह साफ कर दिया कि पीड़ित को तत्काल स्टेंट की जरूरत है.


आपको बता दें कि यह कोई पहला मामला नहीं है. शोध बताते हैं कि पश्चिमी देशों के लोगों की तुलना में भारतीयों को हार्ट अटैक एक दशक पहले होता है और अब चिंताजनक बात ये है कि दिल की बीमारियां कम उम्र में ही पनपने लगी हैं. पीड़ित बच्चे का इलाज करने वाले डॉ. अभिषेक वाडकर ने बताया कि उस बच्चे के केस को एक सफल कहानी माना जाना चाहिए क्योंकि उन्हें समय पर इलाज मिल गया. कई युवाओं का इलाज देर से पहुंचने के कारण गंभीर परिणाम भुगतने पड़ते हैं.


पीड़ित को लगाया गया स्टेंट
डॉ. अभिषेक ने बताया कि पीड़ित लड़के की एक धमनी में 80% रुकावट पाई, जिसे हटाने के बाद स्टेंट लगाया गया. उन्होंने बताया कि पीड़ित को नियमित रूप से जंक फूड खाता था, जिससे उसके कोलेस्ट्रॉल का लेवल बढ़ गया था. उसे कुछ महीनों के लिए कार्डियक रिहैबिलिटेशन प्रोग्राम की आवश्यकता होगी.


कम उम्र में आम हो गया हार्ट अटैक
डॉ. वाडकर ने चिंता जताई कि हाल के वर्षों में दिल के दौरे की शुरुआत की उम्र काफी कम हो गई है. उन्होंने कहा कि पहले 30 साल की उम्र में दिल का दौरा असामान्य था, लेकिन अब टीनएजर्स में भी ऐसे मामले आम हो रहे हैं. उन्होंने बताया कि कुछ समय पहले यह धारणा थी कि कोविड वैक्सीन ने हार्ट अटैक के मामलों में वृद्धि की है, लेकिन नवंबर 2023 में किए गए एक अध्ययन ने इस बात को गलत साबित कर दिया. अध्ययन के अनुसार, कोविड वायरस ही इसके लिए जिम्मेदार है, जो थक्के बनने की संभावना बढ़ाता है. इसके अलावा, खराब लाइफस्टाइल भी एक बड़ा कारण है.


सीने में उठे दर्द को हो जाएं सावधान
KEM अस्पताल के डॉ. अजय महाजन का कहना है कि जब कोई युवा सीने में दर्द के साथ आता है, तो डॉक्टरों को थक्के की संभावना पर भी विचार करना चाहिए. उन्होंने कहा कि सभी युवाओं को स्टेंट की जरूरत नहीं होती है. कई मामलों में क्लॉट-बस्टर्स से भी स्थिति सुधर जाती है. हालांकि, हाइपरहोमोसिस्टिनिमिया (एक एमिनो एसिड का बढ़ा हुआ स्तर जो धमनी की दीवारों को नुकसान पहुंचाता है) जैसी स्थितियों की भी जांच जरूरी है.