Arvind Kejriwal bail news: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में अरविंद केजरीवाल को जमानत दिलाने के लिए दलीलों का दौर जारी है. केजरीवाल के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने धारदार दलीलों से अपने क्लाइंट को बेल दिलाने के लिए मजबूती से अपना पक्ष रखा. मुख्यमंत्री केजरीवाल को कथित शराब घोटाले में अगर जमानत मिल जाती है तो हरियाणा विधानसभा चुनावों के लिए होने वाली वोटिंग से पहले आया ये फैसला आम आदमी पार्टी (AAP) के लिए मॉरल बूस्टर का काम करेगा.


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सिंघवी की पांच सबसे धारधार दलील


केजरीवाल की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी उनकी पैरवी कर रहे हैं वहीं सीबीआई की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल सीबीआई का पक्ष रख रहे हैं. सिंघवी ने कहा, जब ईडी केस में जमानत मिल गई तो सीबीआई केस में क्यों नहीं मिली. वहीं SC ने सवाल उठाया कि केजरीवाल की ज़मानत अर्जी पर दिल्ली HC ने फैसला क्यों नहीं लिया?


दरअसल HC ने ज़मानत के लिए निचली अदालत जाने को कहा था. SC ने कहा - जहां सवाल व्यक्तिगत स्वतंत्रता हो, वहां HC अपने स्तर पर सुनवाइ करते हुए फैसला दे सकता है. तब ASG राजू ने सवाल उठाया कि क्या ऐसा प्रिविलेज आम आदमी को भी हासिल है? या ऐसा सिर्फ इसलिए क्योंकि केजरीवाल के पास रुतबा है, संसाधन है, सिर्फ इस वजह से उन्हें HC में सीधे सुनवाई के अधिकार नहीं मिल जाता.


सिंघवी ने कहा-


  1. केजरीवाल संवैधानिक पद पर हैं वो कहीं देश छोड़ कर नहीं भाग सकते. 

  2. CBI के पास केजरीवाल के खिलाफ कोई पुख्ता सबूत नहीं है, सिवाय मगुंटा रेड्डी के बयान के.

  3. केजरीवाल बेल की शर्तों पर खरा उतरते हैं.

  4. FIR के दो साल बाद गिरफ्तारी की गई. CBI ने जेल में रखने के लिए गिरफ्तार किया.

  5. ED केस में बेल मिल चुकी है, CBI केस में HC ने बेल नहीं दी.


'केजरीवाल समाज के लिए खतरा नहीं'

SC में केजरीवाल के वकील सिंघवी ने कहा, 'हमारी पहली याचिका गिरफ्तारी को चुनौती देने की है, दूसरी याचिका जमानत के लिए है. आज का मामला सिर्फ CBI केस से जुड़ा हुआ है. संवैधानिक पद पर बैठे केजरीवाल समाज के लिए खतरा नहीं है. वो मौजूदा मुख्यमंत्री हैं. 


'इंश्योरेंस अरेस्टिंग'


इस केस में सिंघवी ने दलीली दी कि शुरुआती एफआईआर में केजरीवाल का नाम नहीं था. उन्हें दो साल बाद गिरफ्तार किया गया. यह PMLA के तहत दोहरी शर्तों का प्रावधान है. इन सख्त नियमों के बावजूद हमारे पक्ष मे दो फैसले हुए हैं. ये CBI की इंश्योरेंस अरेस्टिंग है जो पूरी तरह अवैध है. जांच एजेंसी के मनमाफिल जवाब न देने का मतलब ये नहीं कि ये अपने आप मे गिरफ्तारी का आधार हो जाएगा. 


सिंघवी ने कोर्ट को ये भी बताया कि मनी लॉन्ड्रिंग केस जहां पर ज़मानत की दोहरी सख्त शर्तो का प्रावधान है, वहां तो ज़मानत मिल गई लेकिन CBI केस, जहां पर ऐसी शर्तो का प्रावधान भी नहीं है, वहां HC ने ज़मानत देने से इंकार कर दिया. इसलिए हमें मजबूरी में सुप्रीम कोर्ट आना पड़ा.


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