Asaram Parole: नाबालिग के साथ दरिंदगी करने वाला आसाराम 11 सालों से जेल की सलाखों के पीछे है. रेप के दोषी आसाराम ने गिरफ्तारी के बाद से कई बार जमानत पर रिहाई की याचना की और हर बार अदालत ने उसे राहत देने से इनकार कर दिया. इस बार तबीयत ज्यादा बिगड़ने पर आसाराम को इलाज के लिए 7 दिन की पैरोल मिली है. आसाराम को पुलिस ने 2013 में गिरफ्तार किया था.


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7 दिन की पैरोल मिली


किशोरी के साथ रेप के दोषी आसाराम को जोधपुर की अदालत ने 2018 में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. उसकी गिरफ्तारी 2013 में ही हो गई थी. गिरफ्तारी के 11 साल बाद राजस्थान हाइकोर्ट से आसाराम को बड़ी राहत मिली है. उसे उपचार के लिए 7 दिन की पैरोल मिली है. आसाराम को इलाज के लिए पुलिस कस्टडी में महाराष्ट्र ले जाया जाएगा. आसाराम की अंतरिम पैरोल हाइकोर्ट जस्टिस डॉक्टर पुष्पेंद्र सिंह भाटी की खंडपीठ ने मंजूर की है.


आसाराम को नहीं मिल रही थी पैरोल


रेप के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे आसाराम को इससे पहले हाई कोर्ट ने पैरोल देने से साफ इनकार कर दिया था. अदालत ने कहा था कि उसकी रिहाई से कानून व्यवस्था की समस्या हो सकती है. इस साल फरवरी में आसाराम को तेज सीने में दर्द के बाद एम्स जोधपुर ले जाया गया था.


आश्रम में की थी किशोरी से दरिंदगी


जोधपुर की एक पोस्को अदालत ने आसाराम को अपने आश्रम में एक किशोरी के साथ बलात्कार का दोषी ठहराया था. दोष सिद्ध होने पर उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. वह जोधपुर की केंद्रीय जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहा है.


कई मामले में दोषी है आसाराम


पिछले साल आसाराम को गुजरात की एक ट्रायल कोर्ट ने 2013 में अपने सूरत आश्रम में एक महिला शिष्या से कई बार बलात्कार करने का दोषी ठहराया था. मार्च में, सुप्रीम कोर्ट ने आसाराम द्वारा दायर एक याचिका पर हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था. जिसमें उसने मेडिकल आधार पर सजा पर रोक लगाने के राजस्थान उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी थी. याचिका में आसाराम ने कहा था कि उसका स्वास्थ्य खराब है और तेजी से बिगड़ रहा है.


11 साल से जेल में


याचिका में यह भी कहा गया था कि आसाराम 11 साल से जेल में हैं और उसे कई दिल के दौरे पड़ चुके हैं. वकीलों ने 14 जनवरी को उसकी कोरोनरी एंजियोग्राफी रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा था कि इसमें 99 प्रतिशत तक की धमनी रुकावटें दिखाई गई हैं.


क्या कहा याचिका में


याचिका में कहा गया था कि याचिकाकर्ता अपने जीवन के अंत में 85 साल से अधिक उम्र का है. उसे यह आशंका है कि अगर वह अपनी पसंद के अस्पताल/डॉक्टर से इलाज नहीं कराया तो उसकी जेल में मौत हो सकती है. जो कि हर व्यक्ति को दिया गया एक मौलिक अधिकार है, भले ही वह दोषी हो या अदालती हिरासत में हो.