Bakhri Pandal Durga Puja: बिहार के बेगूसराय के बहुरा मामा की धरती बखरी पर नवरात्रि में तीन दिनों का मेला आयोजित हो रहा है. इस मेले के लिए मंदिर को फूलों से सजाया जा रहा है. पुराना दुर्गा मंदिर का पंडाल केदारनाथ मंदिर की तर्ज पर बनाया जा रहा है.
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बेगूसरायः Durga Puja 2024: जादू टोने के लिए प्रसिद्ध बहुरा मामा की धरती बखरी में नवरात्रि का विशेष महत्व है. बखरी के शक्तिपीठ का दर्जा प्राप्त है. बखरी अनुमंडल मुख्यालय में माता के तीन मंदिर स्थापित है, जो बाजार के मध्य एवं दोनों छोर पर हैं. यहां वर्ष भर मैया की पूजा आराधना होती है. नवरात्र के मौके पर यहां तीन दिवसीय मेला आयोजित होता है. माता के आगमन के लिए बखरी को दुल्हन की तरह सजाया जाता है. सजावट के लिए तीनों मंदिर पूजा समितियों में गला काट प्रतिस्पर्धा रहती है. सभी ऊंचे-ऊंचे आकर्षक तोरण द्वारों, भव्य पंडालों और सजावट में एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ रहती है. इसलिए ये पंडाल देश के किसी नामचीन मंदिर या पर्यटन स्थल की तर्ज पर बन रहे हैं, इसे अंतिम समय तक गुप्त रखते हैं.
इस वर्ष भी नवरात्र को लेकर सभी पूजा समितियां पूजा पंडालों के निर्माण की होड़ में लगी हुई हैं. पुराना दुर्गा मंदिर का पंडाल देश के प्रसिद्ध केदारनाथ मंदिर के तर्ज पर बन रहा है. इसका निर्माण बंगाल से आए कारीगर कर रहे हैं. पुराने दुर्गा मंदिर की महिमा अपरंपार है. यह मंदिर तंत्र मंत्र की सिद्धि और मनोकामना पूर्ति के लिए आसपास के राज्यों के साथ पड़ोसी देशों में भी प्रसिद्ध है. यहां हर वर्ष दूर-दूर से साधक आते हैं. इन्हें तंत्र मंत्र की सिद्धि मिलती है.
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महाअष्टमी की रात देवी के महागौरी रूप की पूजा करने पर साधकों को तंत्र मंत्र की सिद्धि प्राप्त होती है. महा अष्टमी को ही माता को छप्पन प्रकार का भोग लगाया जाता है. पूरे नवरात्र मंदिर को फूलों से सजाया जाता है. नवरात्रि के एक दिन पहले से ही यहां फूलों की सजावट की महाआरती इस मंदिर की बड़ी विशेषता है. नवरात्रि के नौ दिनों तक वाराणसी के अस्सी घाट के पंडितों को दुर्गा महाआरती के लिए बुलाया जाता है, जो नवमी तक माता दुर्गा की आरती करते हैं. इसके लिए वाराणसी के गंगा घाट पर बनाए गए मंच की तर्ज पर मंदिर परिसर में मंच तैयार किए जाते हैं. उन्हें विशेष रोशनी और लाइटों से सजाया जाता है.
इस मंदिर के संबंध में कहा जाता है कि यहां देवी दुर्गा की पूजा सैकड़ों वर्षों से हो रही है, लेकिन कब से हो रही है, इसका कोई सटीक प्रमाण नहीं है. कहा जाता है कि मुगल काल के पहले से ही यहां मां दुर्गा की पूजा हो रही है. जबकि कुछ लोगों के अनुसार, मध्य प्रदेश के धार नगरी के राजाओं द्वारा माता की पूजा आरंभ करने की बात कही जाती है. तब उन परमार वंशीय राजाओं ने यहां मां दुर्गा की अष्टधातु की प्रतिमा स्थापित की थी. लेकिन, कालांतर में मूर्ति के चोरी हो जाने के बाद पुजारी को मिले मैया के आदेश से यहां वर्ष भर शून्य की पूजा होती है.
इस दौरान अमित परमार कहते हैं कि यहां माता हमेशा विराजमान रहती हैं. यहां से माता का कोई भी भक्त खाली हाथ नहीं लौटता है. इस मंदिर में निसंतान दंपतियों की मन्नतें मां दुर्गा पूरी करती हैं. महा अष्टमी की रात यहां मां के हाथ पर फूल दिया जाता है. यह फूल भक्तों की आराधना के कुछ समय बाद स्वयं गिर जाता है, जो भक्तों की मुरादें पूरी होने का सूचक होता है.
वहीं पूजा समिति के सचिव तारानंद सिंह कहते हैं कि पुराना दुर्गा मंदिर का निर्माण इसकी आस्था और महत्व के अनुरूप अयोध्या धाम मंदिर की तर्ज पर होगा. इसलिए मंदिर के पुराने भवन को हटा दिया गया है, लेकिन पूजा उसी आस्था और मेला उसी धूमधाम से लगेगा. इसके लिए भव्य और आकर्षक पूजा पंडाल का निर्माण कार्य चल रहा है. इसमें मेला घूमने और पूजा करने आने वाले भक्तों के लिए सभी सुविधाओं का ध्यान रखा जा रहा है.
इनपुट- जितेन्द्र कुमार
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