Bhagalpur News: भागलपुर के पीरपैंती और शिवनारायणपुर का इलाका कभी गुड़ उत्पादन के लिए मशहूर था. यहां के ज्यादातर किसान गन्ने की खेती पर निर्भर थे. 1980-90 के दशक में इस क्षेत्र में करीब 50 हजार हेक्टेयर में गन्ने की खेती होती थी और यहां का गुड़ कर्नाटक, दिल्ली, पश्चिम बंगाल, चेन्नई और ओडिशा जैसे राज्यों में भेजा जाता था.
जानकारी के अनुसार 1980-90 के दशक में यहां 50,000 हेक्टेयर में गन्ने की खेती होती थी. किसान गुड़ बनाकर इसे देश के विभिन्न राज्यों में भेजते थे. आज यह क्षेत्र सिर्फ 50 एकड़ तक सिमट गया है.
किसानों को सिंचाई, बाजार और उचित मूल्य जैसी बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं. चीनी मिल की अनुपस्थिति और समर्थन मूल्य में मामूली वृद्धि ने हालात को और खराब किया है.
गन्ने की खेती से मुनाफा न होने के कारण किसान अब मक्का, गेहूं और आलू जैसी फसलों की ओर रुख कर रहे हैं.
पीरपैंती के बाजार में गुड़ के ऑर्डर अब कम हो गए हैं. व्यापारियों और किसानों को अपने उत्पाद का उचित मूल्य नहीं मिल रहा है.
किसान ललन उपाध्याय ने बताया कि कभी उनकी 20 एकड़ भूमि पर गन्ने की खेती होती थी, जो अब 5 एकड़ तक सिमट गई है. सिंचाई की व्यवस्था और बाजार की कमी ने उन्हें आम के पेड़ लगाने पर मजबूर कर दिया है.
कृषि विभाग ने 25 किसानों को गन्ने की उन्नत खेती का प्रशिक्षण देने के लिए लखनऊ भेजा है. नई तकनीकों से उत्पादन बढ़ाने और गुणवत्ता सुधारने की योजना है.
डॉक्टर भी गुड़ खाने की सलाह देते हैं. चीनी से महंगे होने के बावजूद गुड़ की गुणवत्ता इसे एक बेहतर विकल्प बनाती है.
सिंचाई की उचित व्यवस्था के बिना गन्ने की खेती में बढ़ोतरी संभव नहीं है.
क्षेत्र में चीनी मिल की स्थापना से न केवल किसानों को सहूलियत होगी, बल्कि गन्ने की खेती को भी पुनर्जीवित किया जा सकता है.
सरकार यदि सिंचाई, बाजार और चीनी मिल जैसी समस्याओं का समाधान करे, तो पीरपैंती और शिवनारायणपुर के खेत फिर से गन्ने से लहलहा सकते हैं. यह समय है कि सरकार और संबंधित विभाग इस क्षेत्र की खेती और किसानों पर ध्यान दें, ताकि गन्ने और गुड़ की खुशबू फिर से इस इलाके में महसूस की जा सके.
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