शिल्पकला उद्योग के रूप में विकसित होकर प्रदेश के किस्मत बदल सकती है. यह कहना है अहमदाबाद के नेशल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन के प्रोफेसर डॉ मिहिर भोले का है.
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पटनाः बिहार में भले ही बड़े उद्योग नहीं लगे हैं, लेकिन यहां की शिल्पकला उद्योग के रूप में विकसित होकर प्रदेश के किस्मत बदल सकती है. यह कहना है अहमदाबाद के नेशल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन के प्रोफेसर डॉ मिहिर भोले का है.
बिहार से ताल्लुक रखनेवाले मिहिर भोले इन दिनों अपने प्रदेश की यात्रा पर हैं और लोगों को क्राफ्ट का महत्व समझा रहे हैं. क्राप्ट से कैसे किस्मत बदल सकती है.
बदलते जमाने और डिमांड के हिसाब से हम अपने आसपास बिखरी चीजों को संयोजित कर लेते हैं और उन्हें डिजाइन का रूप दे देते हैं, तो बिहार की किस्मत बदल सकती है. इसके लिए जरूरत एक ऐसे केंद्र की है. जहां इस तरह की चीजों को निखारने और तराशने की कला सिखायी जाये, तो ये बिहार के उद्योग के सूनेपन को भर सकता है.
इसके लिए बहुत ज्यादा पूंजी की जरूरत भी नहीं होगी, लेकिन इससे इतनी पूंजी आ जायेगी, जिसकी सहज कल्पना नहीं की जा सकती है. ये शक्ति है बिहारी शिल्प में.
डॉ मिहिर भोले कहते हैं कि शिल्प ऐसी चीज है, जिसमें डिजाइन को जोड़ा जाता है, तो अद्भुत चीजें सामने आती हैं और अगर इसको आज की दुनिया की जरूरतों से जोड़ दें, तो बड़ा बाजार बन जायेगा, ये सब करने की ताकत बिहार के कलाकारों में है.