भ्रमण अर्थात घूमना, जैसे जीवन का पहिया काल के चक्र के साथ घूमता है. वैसे ही प्राकृतिक और सांसारिक जगत में विचरण करना, आपको क्या से क्या बना सकता है.
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पटना: पटना सेंट्रल में पुलिस अधीक्षक पद पर तैनात आईपीएस (IPS) विनय ओम तिवारी का साहित्य सा अलग ही लगाव है. इसकी तस्वीर समय-समय पर देखने को मिलती रही है. अपनी सृजनात्मक लेखनी के जरिए वह कई बार लोगों को प्रेरित करते रहे हैं. ऐसे में उन्होंने एक बार फिर अपनी कलम से 'विचरण' को लेकर अपने विचार प्रकट किए हैं.
विचरण करना क्यों महत्वपूर्ण है
उन्होंने बताया है कि 'सीखने के अनंत तरीके हैं. सीखने का अनंत ब्रह्मांड है. अनंत तरीकों से अनंत जगत को जानने की प्रक्रिया जीवन को सार्थक और सिद्ध कर सकती है. जगत को जानने का पहला तरीका 'विचरण' करना अर्थात भ्रमणशील रहना है. भ्रमण अर्थात घूमना, जैसे जीवन का पहिया काल के चक्र के साथ घूमता है. वैसे ही प्राकृतिक और सांसारिक जगत में विचरण करना, आपको क्या से क्या बना सकता है.
उत्तर कैसे मिलेगा
तिवारी ने आगे लिखा, 'विचरण विचारों को अनन्य दृष्टिकोण देता है. विचरण स्वाभाविक है, विचरण साधारण है. विचरण आपको स्वयं की ओप अन्य के विभिन्न रूप दिखाता है. जगत के अनंत स्वरूप की ओर ले जाता है. विशाल और अनंत को देखने पर व्यक्तित्व साधारण और सरल हो जाता है. विभिन्न और विशेष को जानने पर सोच विविध और विकसित होती रहती है. विविधता गहराई लाती है. गहराई आपको अपने सूक्ष्म से मिलाती है. सूक्ष्म की तरफ अग्रसर व्यक्ति परतों के पार देखने लगता है. परतों के पार प्रश्नों के उत्तर मिलने लगते हैं. उत्तर समझ आते हैं और उत्तर देना आने लगता है. उत्तर आपको कुछ पूरा करता है और कुछ रिक्त भी करता है.'
मूल क्या है
वैसे पूरा होना तो असम्भव- सा है. पर कुछ कुछ पूरा होते रहना संभव है. उत्तर कुछ जोड़ता है और कुछ घटाता है. जो जुड़ता है, उसका जुड़ना महत्वपूर्ण है और जो घटता है उसका घटना अत्यधिक महत्वपूर्ण है. जुड़ते-घटते नया बनते रहना आनंद की अनुभूति देता रहता है. यह आनंद जीवन के मूल आनंद जैसा होता है. क्योंकि आप मूल की ओर अग्रसर होते हैं. मूल तक आते-आते विविधता समझ आने लगती है. विविधता समझते-समझते मूलता भी समझ आने लगती है. समस्त विविध का मूल एक दिखता है और इसी मूल से विविध जन्म लेता है. विविध होकर भी समस्त ब्रह्माण्ड एक है, सबकी जननी एक है, सबका मूल एक है.
एक के अनंत रूप
एक के अनंत रूप के दर्शन होने लगते हैं. अगर विविधता अनेकता में एकता दिखाती है तो विकासशीलता आपको उधेड़ती रहती है. बने-बनाए सिद्धांतों को चुनौती देती रहती है. नए सिद्धांतों की परीक्षा लेती है. सिद्धांत सिद्ध होते रहते है। असिद्ध सिद्धांतों में पुनिर्माण और नवाचार की संभावना दिखती रहती है. सिद्ध असिद्ध की परीक्षा सफलता सिखाती है और किसी हिस्से की असफलता पुनः परीक्षयमान बनाती है.
विचरण से विवेक का क्या संबंध
विचरण से जन्मी विविधता और विकासशीलता विवेक को विकेंद्रित करती है. विकेंद्रीकरण विवेक को स्वतंत्र और स्वाभिमानी बनाता है. स्वतंत्र विवेक आयामों की सीमा के पार जाकर खड़ा होता है, पुराने आयामों के बंधनों को तोड़ता है और नए आयाम बनाता है. स्वतंत्र और स्वाभिमानी विवेक समाज के पुनरूत्थान का पर्याय बनता है. रूढ़िवाद का तिरस्कार करते हुए नई व्यवस्था के सृजन का स्रोत बनता है. नवनिर्माण की आकांक्षा को जन्म देता है. सभ्यताओं में आने वाले बड़े बदलाव को मूर्त करता है. विकेंद्रित विवेक अपनी सृजनशीलता को अविभाज्य रखता है. अविभाज्य सृजनशीलता विवेक को विक्रम बनाती है. विक्रम विवेक विभाज्यकारी शक्तियों को पहले समझता है, फिर विरोधी तत्त्वों से टकराता है, उनको परास्त करता है और पराक्रमी बन विजय पथ की ओर प्रशस्त होता है.
विचरण अनेक पहुलओं को जन्म देता है
विचरण विजय की संभावनाओं को समृद्ध करता है और विचारों में नवीनता लाता है. विवेक के विकेंद्रीकरण से उसके अंशों में निहित विचार प्रकट होने लगते है, सामने आने लगते हैं और उन विचारों को जगह मिलने लगती हैं. भिन्न विचारों को जगह मिलना लोकतात्रिक व्यवस्था को सुदृढ़ करता है. विचरण लोकतंत्र को जन्म दे सकता है या बने हुए लोकतंत्र को और मजबूत कर सकता है. वह एकल प्रवृत्ति का नाश कर, सामूहिकता को महत्व भी देता है. विचरण आवश्यकताओं को पूरा करने का मौका देता है तो नई जरूरतों के लिए उत्तेजना पैदा भी करता है. आवश्यकताओं का जन्म विचरण को व्यापारिक बनाता है. विचरण स्वयं का अन्य से और अन्य का स्वयं से परिचय कराता है. फलस्वरूप स्वयं के अस्तित्व के बहुत निकट ले जाता है और अन्य में अनंत संभावनाएं देखने लगता है और सार्थक जीवन की भावना को मूर्तरूप देता है.
बता दें कि आईपीएस अधिकारी विनय ओम तिवारी के कई लेख सोशल मीडिया पर वायरल भी होते रहे हैं. साथ ही उनके सृजनात्कम लेखन को सोशल मीडिया को बहुत सराहा जाता रहा है.